वाम-इस्लाम बुद्धिजीवियों की निंजा तकनीकी से पैदा हुए दानवीर हबीब मियां?

अभी भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर गोंड रानी कमलापति के नाम पर किया गया है। पिछले 15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में भारत के इसे पहले वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया है।

इस पूरी खबर के बीच जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहा वह था– भोपाल के नवाब हबीबुल्लाह खान उर्फ हबीब मियां! दावा है कि हबीब मियां ने हबीबगंज रेलवे स्टेशन के लिए अपनी जमीन दान में दी थी। चूंकी स्टेशन के नाम में हबीब जुड़ा हुआ है और स्टेशन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया है। सो इतना कारण वाम-इस्लाम बुद्धजीवियों को रोने के लिए पर्याप्त है।

कुछ ने लिखा कि धर्म के नाम पर लोगों को बरगलाना भाजपा का काम है, कुछ ने लिखा चुनाव आ गया है, कुछ ने लिखा नाम बदलने के अलावा ये क्या कर सकते हैं? कई लोगों ने तो भक्तों को भी आड़े हाथों लिया और कुछ ने मुसलमानों को हर बार देशभक्ति का सबूत देना पड़ता है, जैसे भावुक लेख भी लिखे। कुल मिलाकर इस जमात ने स्टेशन की सूरत बदलने व उसे वर्ल्ड क्लास बनाने के एवज में तारीफ कौन कहे बल्कि उसके लिए भी पानी पी-पीकर कोसा, क्योंकि सरकार ने स्टेशन का नाम भोपाल की आखिरी हिंदू रानी कमलापति के नाम पर कर दिया है।    

वाम-इस्लाम बुद्धजीवियों की मानें तो तब के भोपाल के नवाब हबीबुल्लाह खान उर्फ हबीब मियां ने इस रेल स्टेशन को बनाने के लिए अपनी 100 एकड़ जमीन दान में दी थी। इसलिए यह स्टेशन जब 1979 में बनकर तैयार हुआ तो इसका नाम हबीबगंज रखा गया। यह तथ्य द प्रिंट, नवभारत टाइम्स, पंजाब केसरी जैसे बड़े मीडिया समूहों ने भी अपनी वेबसाइट पर खबर के साथ प्रकाशित किया है।

अब हबीब मियां ने जमीन दी या नहीं दी, वह बाद की बात है! दान के कोई कागजात हैं? कोई पुख्ता डॉक्यूमेंट हैं, कोई रिकार्ड है? यह भी बाद कि बात है, लेकिन वास्तव में ये दानवीर हबीब मियां थे कौन? फिलहाल यह बताना इन्होंने जरूरी नहीं समझा है। आप सन 1672 से लेकर 1949 तक यानि भोपाल के भारतीय गणराज्य में शामिल होने तक भोपाल के नवाबों की सूची को देख लें। इस पूरी सूची में भोपाल में हबीबुल्लाह खान उर्फ हबीब मियां नाम के कोई नवाब नहीं हैं।

हां भोपाल के अंतिम नवाब के तौर पर जिस व्यक्ति को जाना जाता है, वो नवाब हमीदुल्ला खान थे, जिनकी मौत 1960 में ही हो गई थी। यहां ध्यान देने वाली बात है कि भोपाल में नवाबी 1949 में भोपाल के भारतीय गणराज्य में विलय के साथ ही खत्म हो गई थी!

इस तरह एक बार हम यह भी मान लें कि रेल स्टेशन के लिए जमीन हबीबुल्लाह खान ने न देकर नवाब हमीदुल्ला खान ने दी थी, तो भी यही सवाल उठता है कि जिस नवाब की नवाबी 1949 में ही खत्म हो गई और उसकी खुद की मृत्यु 1960 में हो गई हो, वह 1979 में रेल स्टेशन के लिए जमीन कैसे दान दे दी?

दरअसल यह कहानी है ही नहीं. समाचार चैनलों ने बिना तथ्यों की जांच किए सब कुछ उल्टा पुल्टा लिखा है, जबकि इसकी कहानी कुछ अलग है। दस्तक नाम के एक समाचारपत्र में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट के हवाले से भोपाल के इतिहासकार खालिद गनी कहते हैं कि दरअसल भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्ल्ला खान रिश्ते में हबीबुल्ला खान उर्फ हबीब मियां के चाचा लगते थे। भोपाल में साल 1901 से लेकर 1926 तक शासन करने वाली नवाब सुल्तान जहां बेगम के तीन बच्चे थे, जिसमें सबसे बड़े नसरू उल्लाह खान, दूसरे ओबेदुल्लाह खान और तीसरे लड़के का नाम हमीदुल्ल्ला खान था।

वास्तव में हबीबुल्ला खान उर्फ हबीब मियां जहां बेगम के सबसे बड़े लड़के नसरूउल्लाह खान के बेटे थे। यानि हबीब मियां भोपाल के अंतिम नवाब हमीदुल्ल्ला खान के भतीजे थे, जो कि उनके लगभग हमउम्र ही थे। इसलिए बड़े बेटे होने के कारण रियासत पर सबसे पहला हक हबीब मियां के पिता नसरूउल्लाह खान का बनता था, लेकिन उनकी मृत्यू 1924 में ही हो गई। इसलिए रियासत पर पहला हक नसरूउल्लाह खान के बेटे हबीब मियां का ही बनता था, लेकिन नवाब जहां बेगम का प्रेम अपने नाती के लिए नहीं, बल्कि अपने छोटे बेटे हमीदुल्ल्ला खान के लिए जाग गया। उन्हें रियासत का नवाब बनाने के लिए बेगम इंग्लैंड तक गई और अंततः हबीब मियां भोपाल के नवाब न बन सके, बल्कि उनके चाचा हमीदुल्ल्ला खान 1926 में बने, जो कि 1949 तक भोपाल के भारतीय गणराज्य में शामिल होने तक रहे।

सुल्तान जहां बेगम (1901-1926 भोपाल रियासत)

यहां ध्यान देने वाली बात है कि सैफ अली खान के पिता मंसूर अली खान पटौदी की मां साजिदा सुल्तान भोपाल के इन्हीं आखिरी नवाब हमीदुल्ला खान की ही बेटी थीं। मंसूर अली खान का जन्म भी भोपाल में हुआ था। सैफ अली खान ने अपनी दादी साजिदा सुल्तान के उत्तराधिकारी के तौर पर भोपाल के नवाब परिवार का जिम्मा संभाला था।

चूंकि भोपाल के अंतिम नवाब हमीदुल्लाह खां की बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान बंटवारे के बाद पाकिस्तान चली गई थीं। इसलिए आबिदा के पाकिस्तान जाने पर उनकी छोटी बहन साजिदा ही संपत्ति की हकदार बनी थीं और साल 2017 में आबिदा के बेटे पाकिस्तान से भारत आकर अपनी संपत्ति का दावा ठोक दिया था। साल 1968 में लागू हुए शत्रु संपत्ति कानून को 2017 में ही भारत सरकार ने संशोधित किया था और तब से सैफ अली इस संपत्ति को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच इस पूरे परिदृश्य में भी हबीबगंज रेल स्टेशन के लिए तथाकथित जमीन देने वाले हबीबुल्ला खान या हबीब मियां दूर-दूर तक कहीं नहीं है।

क्रमशः सैफ अली खांन, नवाब हमीदुल्ला खान और शर्मिला टैगोर

हालांकि इतिहासकार खालिद गनी आगे कहते हैं कि हमीदुल्ल्ला खान को रियासत का वारिस बनाने के बाद भी हबीब मियां की दादी सुल्तान जहां बेगम ने उन्हें कुछ जागीरें सौंपी थीं, लेकिन बाद में हबीब मियां का परिवार अपने पारिवारिक झगड़ों से परेशान होकर पूणे में शिफ्ट हो गए थे। उन्होंने कहा कि हबीब मियां की बड़ी रियासतों में हबीबगंज, ईदगाह स्थित हबीब मंजिल शामिल थे। हबीबगंज में स्थित हबीबिया स्कूल भी उनकी संपत्ति का हिस्सा था। खालिद गनी कहते हैं कि जब हबीबगंज क्षेत्र में अंग्रेजों ने रेलवे स्टेशन को बनाने की योजना तैयार की तो हबीब मियां व अंग्रेजों के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत रियासत कायम रहने तक एक बड़ी राशि नवाब परिवार को देने का करार हुआ था, जो कि मिलती भी रही।  

अब हम भोपाल के इतिहासकार खालिद गनी की बात को मानें तो एक बात यह स्पष्ट होती है कि हबीब मियां ने दरअसल रेलवे के लिए कोई जमीन दान नहीं की थी, बल्कि एक करार हुआ था, जिसके एवज में उनको राशि मिलती रही। रेलवे स्टेशन के संदर्भ में जो दूसरी बात आती है, वह भी हबीब मियां की दादी यानि सुल्तान जहां बेगम की मां नवाब शाहजहां बेगम से संबधित है।

भारतीय रेलवे के इतिहास को देखें तो भोपाल स्टेशन (वर्तमान में रानी कमलापति रेलवे स्टेशन) का इतिहास 1868 ईस्वी से शुरू होता है। 1868 तक उत्तर भारत में आगरा तक और दक्षिण की तरफ खंडवा तक रेलवे ट्रैक था, लेकिन बीच में कोई रेलवे ट्रैक नहीं था और आवागमन सड़क मार्ग से होता था। इसलिए तब की भोपाल की नवाब सुल्तान जहां बेगम की मां शाहजहां बेगम (शासन 1868-1901 तक) से ब्रिटिश अधिकारी हेनरी डेली ने ट्रेन चलाने के लिए करार किया था।

इसके लिए उस समय बेगम ने अंग्रेजी सरकार के साथ अपने करार के तहत रेलवे में 34 लाख रुपए का निवेश किया था, जिसके तहत 1882 में भोपाल से इटारसी के बीच ट्रेन रवाना हुई थी और भोपाल को स्‍टेशन बनाया गया था। इसके काफी साल बाद भोपाल के नजदीक 1905 में एक और छोटे स्टेशन का निर्माण किया गया, जो कि शाहपुर नाम के स्थान पर था और बाद में हबीबगंज और अब रानी कमलापति स्टेशन के नाम से जाना जाता है। जिस वक्त इस स्टेशन का निर्माण किया गया था, उस वक्त इस पर दो प्लेटफार्म थे। यानि यह भी स्पष्ट है कि रानी कमलापति स्टेशन भोपाल में 1979 पहले से मौजूद था और इसे शाहपुर के नाम से जाना जाता था।

हालांकि बाद के सालों में इसका विस्तार किया गया, जो कि 1979 में बनकर तैयार हुआ था, जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। कहा जाता है कि पास में ही स्थित एमपी नगर को पहले गंज के नाम से जाना था। इसलिए उद्घाटन के वक्त हबीब व गंज दोनों को मिलाकर एक नया नाम यानि- हबीबगंज दिया गया और इंदिरा गांधी सरकार ने इस नए नाम पर मुहर लगाई। यानि जो जगह पहले शाहपुर के नाम से जाना जाता था। वह अब हबीबगंज के नाम से जाना जाने लगा।

इस पूरे तथ्य से 5 सवाल उठते हैं-

पहला- रेलवे स्टेशन के लिए करार हबीब मियां ने किया था या शाहजहां बेगम ने किया था या अलग-अलग अवसरों पर दोनों ने अलग-अलग करार किया था? अर्थात क्या भोपाल के लिए शाहजहां बेगम ने अलग करार किया था और शाहपुर के लिए हबीब मियां ने क्या अलग करार किया था?

दूसरा- जब करार हुआ और उसके एवज में अंग्रेजी सरकार से राशि ली जाती रही, तो फिर यह दान कहां से और कैसे हुआ?

तीसरा- हबीबगंज (शाहपुर) रेलवे स्टेशन तो मूलतः 1905 में ही बन गया था, लेकिन रियासत की संपत्ति का बटवारा 1926 में नवाब हबीबुल्ला के नवाब बनने के वक्त हुआ। बाद में हबीब मियां घरेलू झगड़े से परेशान होकर पूणे शिफ्ट भी हो गए, तो उन्होंने रेलवे के लिए जमीन कब दान दे दी? क्या तब जब 1905 में संपत्ति का बटवारा नहीं हुआ था या क्या तब जब वे सब कुछ छोड़कर पूणे शिफ्ट हो गए थे?

चौथा- एक और सवाल उठता है कि जब हबीब मियां के परिवार के सदस्य पाकिस्तान से आकर संपत्ति पर दावा ठोंक रहे हैं, भारत में शर्मिला टैगोर और सैफ अली खान कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, तो हबीब मियां के लड़के आदि पूणे में होकर भी कुछ क्यों नहीं कर रहे हैं, क्या वजह हो सकती है? जबकि तथ्य यह है कि हबीब मियां की संपत्ति का विवाद नवाब हमीदुल्ला खान के साथ काफी दिनों तक चला था। क्या उनके बच्चों को अब संपत्ति की कोई जरूरत नहीं है? आप पहले अपने चाचा से उनकी मां द्वारा दी गई संपत्ति के लिए झगड़ा किए। फिर अपनी भी पूरी संपत्ति छोड़कर पूणे चले गए? क्या मजाक है?

पांचवां – इसके अलावा नाम बदलने को लेकर दुनिया भर का विरोध हो रहा है, तमाम तरह के दावे हो रहे हैं, लेकिन खुद पूणे में बसे हबीब मियां की संतानें, उनके परिवार के सदस्य यानि सैफ अली खान और शर्मिला टैगोर आदि क्यों चुप हैं? अरे भाई आपके पूर्वजों के नाम पर स्टेशन था? उसे बदला जा रहा है। आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं? आखिर क्या वजह है?

फिलहाल इन 5 सवालों का जवाब मिल जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि वास्तविकता क्य़ा है।

इस स्टेशन के नाम को लेकर कुछ और भी तथ्य सामने आते हैं और जैसा कि पहले ही बताया कि 1979 के पहले हबीबगंज को शाहपुर के नाम से जाना जाता था, तो सबसे पहले शाहपुर के नाम को लेकर भी बहस कर लेते हैं। बाद में हबीबगंज पर करते हैं। वास्तव में शाहपुर का नाम किसके नाम पर रखा गया था, इस पर बहस की जा सकती है। हो सकता है कि शाहपुर का नाम भोपाल की नवाब सुल्तान शाहजहां बेगम के नाम पर हो, लेकिन यह तर्कसंगत नहीं है। यह नाम कोई इस्लामिक नाम होता, हबीबगंज ही होता तो सोचा जा सकता था।

नवाब शाहजहां बेगम (1868-1901, भोपाल रियासत)

वास्तव में शाहपुर का नाम गोंड रानी कमलापति के पति निजाम शाह या उनके पूर्वजों के नाम पर रखा गया था, यह तर्कसंगत हो सकता है, क्योंकि गोंड वंश में मदन शाह और संग्राम शाह जैसे कई शक्तिशाली राजा थे, जिनके नाम के आगे शाह लगा था। यहां तक कि निज़ाम शाह को जहर देने वाले उसके भतीजे का नाम भी चैन शाह था, जबकि निजाम शाह व रानी कमलापति के पुत्र का नाम भी नवल शाह था। इसलिए शाहपुर कमलापति के ही खानदान से जुड़ा हुआ है। इसकी संभावना सबसे ज्यादा है। अब यहां किसी के भी नाम पर रखा गया हो, लेकिन यह तो तय है कि हबीबगंज को पहले शाहपुर के नाम से ही जाना जाता था।

ज्यादा जानकारी जुटाने पर हबीबगंज नाम को लेकर एक और तथ्य सामने आता है। एशियननेटन्यूज वेबसाइट में प्रकाशित हुई खबर के मुताबिक रेलवे स्टेशन के आसपास की सुंदरता, यहां की हरियाली और झीलें इसकी सुंदरता को बढ़ा देती थी। अरबी भाषा में हबीब का अर्थ- प्यारा और सुंदर होता है। भोपाल के नबाव की बेगम ने यहां की हरियाली और झीलों के बीच बसे इस रेलवे स्टेशन की सुंदरता को देखते हुए इसे हबीबगंज नाम दिया था।

गोंड रानी कमलापति की मूर्ति

इसी तरह का एक मिलता जुलता लेख गूगल पर हबीबगंज सर्च करने पर वीकिपीडिया पर प्राप्त होता है, जिसका अनुवाद कुछ इस प्रकार है-

“हबीबगंज भारत के भोपाल शहर में भेल टाउनशिप में एक उपनगर है, जो कि हबीबगंज रेलवे स्टेशन के लिए भी जाना जाता है। यह स्टेशन भोपाल जंक्शन के बाद शहर का दूसरा सबसे व्यस्त स्टेशन है। हिंदुस्तानी में हबीबगंज का मतलब होता है – द लवली सिटी। यह नाम भोपाल की बेगम ने दिया था। वे भोपाल शहर की हरियाली और जल संसाधनों से काफी प्रभावित थीं।“

अब यहां फिर से सवाल उठ रहा है कि जब इस जगह की खूबसूरती को देखते हुए बेगम ने इस जगह को हबीबगंज नाम दिया था तो अब तक हबीब मियां द्वारा दी गई जमीन के कारण इसका नाम जो हबीबगंज नाम पड़ गया की कहानी चल रही है? उसका क्या? क्या वाम-इस्लाम बुद्धजीवियों की निंजा तकनीकी से पैदा हुए रेलवे स्टेशन के लिए जमीन देने वाले दानवीर हबीब मियां?

इस तरह सवाल का जवाब आपको स्वतः मिल गया होगा कि वास्तव में हबीब मियां को लेकर तरह-तरह सोर्स के माध्यम से तरह-तरह की कहानी बताई जा रही है, जिसका कोई ठोस आधार नहीं है।

दीपक पाण्डेय (लेखक पत्रकार हैं)

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