माटी की ओर लौटें


हमारी भारतीय संस्कृति में दान-पुण्य की शानदार पंरपरा रही है। स्वतंत्रता के बाद भामाशाहों की बदौलत ना जाने कितने शैक्षिक संस्थान, धर्मशाला, सराय, अस्पताल आदि खुलवाए गए।दानदाताओं या उनके किसी सदस्य के नाम पर ये संस्थाएं आज भी संचालित हो रही है। बदलते दौर में जरूर इसमें बहुत कमी आई है। फिर भी ऐसा कोई सरकारी तंत्र भी नहीं रहा है, जहां कोई संपर्क करके अपने या स्वजनों के नाम कोई सरकारी काम में हाथ बंटा सके।अब इसका व्यवस्थित मंच बन चुका है।

गांवों के विकास कार्यों में आमजन की सहभागिता बढ़ाने के लिए ‘उत्तर प्रदेश मातृभूमि योजना’ शुरू हो रही है। इसके सारथी पंचायत सहायक होंगे। दानदाताओं को योजना की जानकारी और कार्यों के विवरण का आदान-प्रदान इन्हीं के माध्यम से होगा। इसके बदले उन्हें सरकार व दानकर्ता की अनुदान राशि से अधिकतम 10 हजार रुपये फीस मिलेगी। ज्ञात हो कि योगी सरकार ने पहली बार हर ग्राम पंचायत में पंचायत सहायक की तैनाती की है।

उत्तर प्रदेश मातृभूमि योजना की शुरूआत करके प्रदेश सरकार ने उन सुविधा संपन्न लोगों को एक बडा अवसर प्रदान किया है, जो अपने गांव के लिए कुछ करना चाहते हैं। वे अपने गांव मे जो भी विकास कार्य, सेवा या निर्माण आदि कराना चाहते है,उनका साठ प्रतिशत खर्चा स्वंय उठाना होगा। शेष चालीस प्रतिशत खर्च सरकार वहन करेगी। उन्हें ने केवल काम का पूरा श्रेय मिलेगा,बल्कि शिलापट या बोर्ड आदि में भी अपना या उनके किसी अन्य बुजुर्ग का नाम भी दर्ज किया जाएगा। वे सरकारी संस्था के बजाय स्वंय निर्माण कार्य कराना चाहते है तो इसकी भी छूट मिलेगी।इसके लिए शर्त यही रहेगी कि निर्माण का नक्शा और डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) की मंजूरी लेनी होगी तथा उसी के अनुरूप कार्य कराया जाए। योजना के सुचारू संचालन के लिए पंजीकृत कराई जा रही उत्तर प्रदेश मातृभूमि सोसायटी की गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष मुख्यमंत्री और उपाध्यक्ष पंचायतीराज मंत्री के रखे जाने से नियंत्रण शीर्ष स्तर का रहेगा। यही नहीं, शासन स्तर से वरिष्ठ अधिकारियों की टीम योजना के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करेगी। इसके लिए सौ करोड रूपये का कार्पस फंड भी बनाया गया है, ताकि अगर किसी सरकारी हिस्से वाले खर्च को पुरा करने के लिए विभागीय बजट की कमी पडे तो उसकी तात्कालिक पूर्ति यहां से हो सके।देश-विदेश में अपनी मेधा की खुशबू बखेर रहे साधन संपन्न लोग इसके जरिये अपने गांव की उन्नति में सहभागी बन सकते है। आखिरकार जिस समाज ने बुलंदी तक पहुंचाने में बडी मदद की है, आज सक्षम बन जाने पर उसे कुछ तो लौटाया ही जाना चाहिए। अपनी मातृभूमि के लिए कुछ करने के लिए इच्छा रखने वालों के लिए प्रदेश सरकार का ये कदम बहुत ही कारगार साबित होगा।समक्ष हो जाने पर अपनी मातृभूमि को कभी भूलना नहीं चाहिए।द्वापर युग में भगवान श्रीराम ने सोने की लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भी उसपर अपना आधिपत्य नहीं स्थापित किया था अपितु अयोध्या लौटने पर वहां की भूमि की वंदना करते हुए कहा था जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं।

लेख – अभिषेक कुमार

Abhishek Kumar: Politics -Political & Election Analyst
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