राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्र सेवा में बढ़ते कदम

विजयादशमी : संघ स्थापना दिवस विशेष

राष्ट्र को परमवैभव पर ले जाने के जिस उद्देश्य को लेकर विजयादशमी के दिन नागपुर में प्रखर राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। वह संघ आज अपनी विकास यात्रा के 96 वर्ष पूर्ण कर चुका है, नागपुर से शुरू हुआ संघ विशाल वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। इस वटवृक्ष की छांव में भारत की संस्कृति और परम्परा पुष्पित पल्लवित हो रही है। आज विभिन्न संगठन विविध क्षेत्रों में संघ से प्रेरणा लेकर कार्य कर रहे हैं, विविध क्षेत्रों में कार्य करने वाले संघ के आनुषांगिक संगठन विश्व के शीर्ष संगठनों में शुमार हैं, विजयादशमी के दिन स्थापित संघ के स्वयंसेवक आज भारत के कोने-कोने में देश-प्रेम, समाज-सेवा, हिन्दू-जागरण और राष्ट्रीय चेतना की अलख जगा रहे हैं। भारत की सर्वांग स्वतंत्रता, सर्वांग सुरक्षा और सर्वांग विकास के लिए संघ सन् 1925 से बिना रुके और बिना झुके कार्य कर रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज अपरिचित नाम नहीं है,भारत में ही नहीं, विश्वभर में संघ के स्वयंसेवक फैले हुए हैं। भारत में विभिन्न स्थानों पर नियमित शाखायें हैं तथा वर्ष भर विभिन्न तरह के कार्यक्रम चलते रहते हैं, स्वयंसेवकों द्वारा समाज के उपेक्षित वर्ग के उत्थान के लिए, उनमें आत्मविश्वास व राष्ट्रीय भाव निर्माण करने हेतु विभिन्न सेवा कार्य चल रहे हैं।

संघ के स्वयंसेवकों ने अपनी 96 वर्षों की सतत तपस्या के बल पर भारत में सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद अर्थात् हिन्दुत्व के जागरण का एक ऐसा सशक्त आधार तैयार कर दिया है, जिसमें से राष्ट्र-जागरण के अनेक अंकुर प्रस्फुटित होते जा रहे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लगभग साढ़े नौ दशकों का इतिहासवृत उठाकर देख लें, तो इस बात का प्रमाण हर पल, हर समय और संघ के प्रत्येक विचार-कार्य में देखने को मिलता है कि वे हर विषय, मुद्दे, समस्या और यहां तक कि प्रकृति जनक हो अथवा मानव निर्मित, हर तरह के संकट में धैर्य धारण करते हुए अनुशासन के साथ राष्ट्रीय साधना के जरिए अपने अभियान को गति देते हैं, क्योंकि संघ का कार्य वैसे भी राष्ट्र आराधना से कम नहीं है यह संघ कार्य चाहे संघ शाखाओं में वैचारिक मंथन के जरिए या फिर विविधितापूर्ण खेल व अन्य गतिविधियों के द्वारा अथवा संघ के विचारी संगठनों, फिर चाहे वह सेवा भारती हो, धर्म जागरण हो, शिक्षा अधिष्ठान हो या फिर किसानों से लेकर मजदूरों और ग्राहकों के लिए काम वाले प्रकल्प हो, इन सभी का एक मत और मूल ध्येय यही है कि कैसे भी राष्ट्र को परम वैभव की उस सत्ता का अनुभव करवाना, जिसके लिए शाश्वतकाल से भारत की पहचान रही है, एकांत में साधना और लोकांत में लोक साधना ही संघ का स्वरूप है, वैभवन् नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम, यानी संघ का उद्देश्य राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाना है, यह संघ के स्वयंसेवको वर्षों की तपस्या का फल है कि आज संघ निरंतर बढ़ता जा रहा है।

अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए समय के साथ संघ ने सामाजिक समरसता, ग्राम विकास, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण व जल संरक्षण जैसी अन्यान्य गतिविधियां शुरू की हुई है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा को देखते हैं तो पाते हैं कि हर पड़ाव, हर संघर्ष के बाद इसकी आभा और निखरती गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वास्तविक कार्य राष्ट्र के उत्थान के लिए समाज को अनुशासित, संस्कारित व राष्ट्र भक्त बनाते हुए उन्नति के शिखर की ओर लेकर जाने का है, राष्ट्र व समाज पर आने वाली हर विपदा में स्वयंसेवकों द्वारा सेवा के कीर्तिमान खड़े किये गये हैं। संघ ने सम्पूर्ण भारतीय समाज को एक नई दिशा प्रदान की है, जिसने राष्ट्र जीवन की उस दशा को बदल डाला है जिसके कारण भारत निरंतर हजारों वर्षों तक विदेशियों के हाथों पराजित होता रहा।

गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग, वनवासी, गिरिवासी, झुग्गी-झोपडियों व मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों का दु:ख दर्द बांटने, उनमें आत्मविश्वास निर्माण करने, उनके शैक्षिक व आर्थिक स्तर को सुधारने के लिए भी सेवा भारती, सेवा प्रकल्प संस्थान, वनवासी कल्याण आश्रम व अन्य विभिन्न संस्थानों द्वारा आज भी हजारों स्वयंसेवक लगे हुए है । राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर हर बार स्वयंसेवक खरे उतरे हैं संघ का इतिहास ,नि:स्वार्थ देश सेवा ,त्याग, तपस्या, बलिदान, सेवा व समर्पण का इतिहास है, अन्य कुछ नहीं है एक बार सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था -”राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का रक्षक भुजदंड है।” संघ शाखाओं व संघ के विभिन्न कार्यक्रमों में गाए जाने वाले एकात्मता स्त्रोत, एकता मंत्र और गीतों में भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय एकता, सामाजिक सौहार्द और राष्ट्र की आध्यात्मिक परंपराओं के दर्शन होते हैं .राष्ट्रीय महापुरुषों का स्मरण करते हुए संघ के स्वयंसेवक भारत माता की वंदना करते हैं. नित्य राष्ट्र साधना (प्रतिदिन की शाखा) व समय-समय पर किये गये कार्यों व व्यक्त विचारों के कारण ही दुनियां की नजर में संघ राष्ट्रशक्ति बनकर उभरा है।

इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस देश की राष्ट्रीय आवश्यकता है। हिन्दू संगठन को नकारना, उसे संकुचित आदि कहना राष्ट्रीय आवश्यकता की अवहेलना करना ही है। संघ के स्वयंसेवक अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का पालन कर रहे हैं, संघ की प्रतिदिन लगने वाली शाखा व्यक्ति के शरीर, मन, बुध्दि, आत्मा के विकास की व्यवस्था तथा उसका राष्ट्रीय मन बनाने का प्रयास होता है। ऐसे कार्य को अनर्गल बातें करके किसी भी तरह लांक्षित करना उचित नहीं है या संघ के कार्य को किसी पंथ या मत विरोधी कहना संगठन की मूल भावना के ही विरुद्ध हो जायेगा ,क्योंकि हिन्दू के मूल स्वभाव उदारता व सहिष्णुता के कारण दुनिया के सभी मत-पंथों को भारत में प्रवेश व प्रश्रय मिला है, हिन्दू संगठन शब्द सुनकर जिनके मन में इस प्रकार के पूर्वाग्रह बन गये हैं उनके लिए संघ को समझना कठिन ही होगा, तब उनके द्वारा संघ जैसे प्रखर राष्ट्रवादी संगठन को, राष्ट्र के लिए समर्पित संगठन को संकुचित, साम्प्रदायिक आदि शब्द प्रयोग आश्चर्यजनक नहीं है। क्योंकि संघ आज अपने स्वयंसेवकों के पसीने के अमृत बूंद के साथ अपनी स्थापना के 100 वर्ष की ओर अग्रसर हो रहा है इतने लंबे कालखंड को देखकर सत्यार्थ है रोज की तपस्या एंव साधना का ही नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है।

  • पवन सारस्वत मुकलावा
    कृषि एंव स्वंतत्र लेखक
    बीकानेर, राजस्थान
पवन सारस्वत मुकलावा: कृषि एंव स्वंतत्र लेखक , राष्ट्रवादी ,
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