एक महामारी ने उजाड दिया इस खुशहाल गाँव को!

हम आपको राजस्थान के एक गाँव की हकिकत कहानी बताने जा रहे है जिसे स्वतंत्र पत्रकार जीतेन्द्र मीना ने खोजा है। यह कोई किताबी किस्सा नहीं है बल्कि हकीकत है। महामारी का वो सच, जो लील गई गौरव गाथा

यह कहानी है मण्डरायल तहसील के गुरदह गांव की, मंडरायल तहसील जिला करौली के अन्तर्गत आती है। इस गांव के बारे में कहा जाता है कि एक महामारी फैलने से यह उजड़ गया। इस गांव में अब हवेली तथा दुकानों के खंडहर है, ये खंडहर हवेली अतीत की दास्तां बयां करती हैं।

बुजुर्गो के अनुसार गुरदह गांव ब्राह्मण, मीना जाति के परिवारों का आबाद गांव था। बताते हैं यहां 1200 परिवार रहते थे। लेकिन लगभग 500 साल पहले गांव में महामारी फैलने से सैकड़ों की संख्या में मौत हुई जिससे गांव वीरान हो गया। यहां के मकान, हवेली खण्डर हो गए। इसके बाद से इसका नाम उजड़ गुरदह पड़ गया। हालांकि बाद में नया गुरदह बस गया। उजड़ गुरदह गांव में जन्म लेने वाले कुंजीलाल मीना बताते है कि गांव में महामारी फैली थी, जिसकी चपेट में पूरा गांव आ गया।

सैकड़ों की संख्या में लोगों की बीमारी से मौत हो गई, इससे दहशत फैल गई, जो बचे वो घरों को छोड़ मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश सहित करौली, हिण्डौनसिटी आदि जगह दूर दूर जा बसे, जो ग्रामीण दूसरे स्थानों पर नहीं गए, वे उजड़ गुरदह को छोड़ समीप के जंगलों में बस गए। तब से ये गांव वीरान है।

उजड़ गुरदह गांव में प्राचीनकाल की कई ऐतिहासिक हवेली है, जिनका निर्माण वर्तमान समय में मुश्किल है। प्रत्येक हवेली में 15 से 20 कमरे, सीढ़ी, चौक, गोदाम तथा रसोई बनी हुई हैं। हवा के लिए झरौखे हैं। प्रत्येक हवेली में पत्थर पर बेजोड़ नक्काशी और कलाकृतियां हैं। आज भी यह गांव दूर से सुन्दर दिखाई देता है। पुरातत्व विभाग इसे संरक्षण में लेता तो गांव की धरोहर को बचाया जा सकता था और इसे पर्यटन के लिए भी विक्सित किया जा सकता था लेकिन अब यह पूरी तरह से खँडहर मे तब्दील हो चुका है लोग हवेली के पत्थरों को ले जा रहे है और पूरी तरह से क्षत विक्षत कर दिया है।

इतिहास मे गुरदह

यादव और लोधाओं में हुआ था संघर्ष
इलाके के ग्रामीण सुनी हुई किवदंतियों के आधार पर बताते हैं कि ब्राह्मण और मीनाओं से पहले गुरदह गांव मे यादव और लोधा रहते थे। किसी बात पर दोनों पक्षों में झगड़ा हुआ। लोधाओं ने यादवों को मार-पीट दिया, यादवों ने मीनाओं से गुहार लगाई, जिस पर गंगापुर सिटी क्षेत्र के पीलोदा गांव के मीनाओं ने गुरदह गांव आकर लोधाओं से युद्ध किया। जिसमें लोधाओं को परास्त किया। ऐसी मान्यता है गांव की एक देवी के श्राप से यादव गांव से चले गए, पूजा-अर्चना के लिए एक मात्र परिवार बचा था, जो अभी तक गांव में है अभी उस देवी पर गाँव मे दो दिन का मेला भरता है वो प्राचीन समय से लगातार भरता आ रहा है।

कोयले और चावल का था व्यापार
उजड़ गुरदह गांव 500 साल पहले इतना विकसित था कि आज जिले के बड़े गांव और कस्बे नहीं है। गांव में धौ की लकड़ी की प्रचुरता तथा संसाधन होने से यहां लोहे का उत्पादन होता था। यहाँ एक पहाड़ी पर लोहे को पकाने वाली भट्टी बनी हुई हैं, पहाड़ी के नीचे नदी है, जहां से पानी की आपूर्ति होती। कोटरा के जंगल में आज भी लोहे के अवशेष काफी संख्या में देखे जा सकते हैं। कोटरा से लोहे को पकाने के बाद गुरदह गांव में लाया जाता, जहां दुकानों से उसे बेचने की व्यवस्था की जाती।

महामारी लील गई गांव की गौरव गाथा
ग्रामीण बताते है की गांव में धान की खेती होती थी, ऊंटगाडिय़ों से चावल को धौलपुर, मध्यप्रदेश बेचने के लिए लेकर जाते तथा वहां से वापस आते समय लोहे को पकाने वाली मिट्टी लेकर आते, इस कारण लोहे और चावल का व्यापार खूब था। गुरदह गांव को देखने पर पता चला कि वहां सुव्यविस्थत बाजार, सड़कें चौड़ी थी तथा गांव में चारों तरफ से रास्ते हैं। बताते हैं कि उम्दा व्यापार के कारण गुरदह के ब्राह्मण काफी अमीर थे। काफी सोना-चांदी जमीन में गाड़कर रखा हुआ था। गांव खाली होने के बाद काफी लोग यहां सोने की तलाश में आए और खुदाई करके सोना ले गए।

आप इस वीडियो को देखो और जाने-

वर्तमान हालात – अब यह गाँव पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया गया है लोग पत्थरों को निकालकर अपने नए घरो मे ले जा रहे है। यहा अवैध खनन का कार्य भी शुरु किया जा चुका है, जिससे यहा की शोभा घट गई है यह इस गाँव के लिये इतिहासिक क्षति है जिसे पूरा नही किया जा सकता।

Jitendra Meena: Independent Journalist | Freelancers .
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