सदियों का भेदभाव और अत्याचार

ये जो सदियों से भेदभाव और अत्याचार वाली कहानियां सुनाई जाती हैं ना हिन्दूओं को, ये सब हिन्दुओं को आपस में लड़ाने के षड्यंत्र हैं बस।

देश दुनिया में चर्चा कोई भी हो लेकिन हिन्दू नाम वाले हिन्दू विरोधी (वामपंथी, नवबौद्ध, नास्तिक) और खुद को खुद ही दलित चिंतक घोषित करने वाले लोग ये सदियों के भेदभाव और अत्याचार वाली कहानियों को mention करना नहीं भूलते हैं और वो इस बात को सिर्फ हर बात में mention ही नहीं करते हैं बल्कि वर्तमान में भी सारे काम इन्हीं कहानियों को आधार मानकर किये जाने की वकालत करते हैं।

हालांकि ये नवबौद्ध और बाकी इन सारी प्रजातियों के लोग स्वघोषित प्रगतिशील और आधुनिक विचार वाले भी हैं लेकिन इन सदियों से अत्याचार वाली कहानियां सुनाने में ना तो इन्हें प्रगतिशीलता की याद रहती है और ना ही आधुनिकता की। है ना double standard अर्थात दोगलेपन वाली बात।

अच्छा इसमें एक जरुरी बात ये है कि वैज्ञानिक सोच और बुद्धिजीवी होने का खुद को खुद ही certificate दे देने वाले ये जातिवादी नवबौद्ध लोग इन सदियों से भेदभाव वाली कहानियों में तर्क को बिल्कुल भुला देते हैं और खुद शायद ये भूल जाते हैं कि इन सदियों से अत्याचार और भेदभाव वाली कहानियों का ना तो कोई भी ऐतिहासिक आधार है और ना कोई ऐतिहासिक प्रमाण।

हां ये बात सच है कि कुछ लोगों द्वारा कुछ लोगों के साथ कुछ गलत व्यवहार किये जाने के प्रमाण जरूर मिलते हैं लेकिन अब इसमें मुद्दे की बात यह है कि कुछ बुरे लोगों द्वारा किये गए गलत काम पूरे भारतीय इतिहास का आइना कैसे हो सकते हैं और इन्हीं बातों को बार बार highlight में क्यों लाया जाता है?

उसके साथ ही एक सोचने वाली बात यह भी है कि बीते समय में कुछ लोगों ने कुछ लोगों के साथ अगर कुछ गलत किया भी तो उन बुरे लोगों की बुराइयों से आज की दुनिया को क्या लेनादेना और उन बुराइयों का दोषी और कोई इंसान तो नहीं तो आखिर उन बुरे लोगों की बुराइयों का इतना प्रचार क्यों किया जाता है, हम सबको तो महापुरुषों की अच्छाइयों का प्रचार करना चाहिए ना ताकि हम बुराई से दूर रहें।

वैसे जब इन हिन्दू नाम वाले हिन्दू विरोधियों (नास्तिक, नवबौद्ध, वामपंथी, अम्बेडकरवादी) से इन सदियों से भेदभाव और अत्याचार वाली कहानियों के प्रमाण मांगे जाते हैं तो ये हज़ारों लाखों सालों की सदियों में से बस भीमराव अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, एकलव्य, कर्ण, शम्बूक, इन चंद नामों के आसपास ही घूमते रहते हैं।

तो है ना कमाल की बात कि कहानियां हैं सदियों की और उनमें प्रमाण के तौर पर बस 5 या 6 नाम जिनमें भीमराव अम्बेडकर और ज्योतिबा फुले ऐसे नाम हैं जो जीवन भर अंग्रेजों के प्रशंसक रहे तो हम समझ सकते हैं ये नाम इन कहानियों में क्यों शामिल किए गए होंगे और एक नाम शम्बूक का जो मात्र कुछ लोककथाओं का पात्र है जिसकी कहानी समय के साथ पुस्तकों का हिस्सा बन गयी, बाकी बचे कर्ण और एकलव्य, जिनके बारे में महाभारत ग्रन्थ पढ़ने पर असली बातें पता लग जाती हैं कि एकलव्य तो खुद एक राजा का पुत्र था और कर्ण ने बुरे कामों में भी दुर्योधन का साथ दिया था।

वैसे अब लगभग सब कुछ साफ समझ में आ गया होगा कि हजारों सालों का लिखित इतिहास जिसमें ज्यादातर वामपंथियों और अंग्रेजों द्वारा निर्देशित है, उसमें भी प्रमाण के तौर पर सिर्फ 4 या 5 बातें और वो भी आधी अधूरी। फिर भी महापुरुषों की अच्छाइयों का प्रचार करने की जगह वामपंथी-नवबौद्ध प्रजातियों द्वारा हर बात में इन्हीं बुराइयों का प्रचार किया जाता है और ना सिर्फ इन बुराइयों का प्रचार किया जाता है बल्कि ऐसी घटनाओं को जातिवाद के चोले में लपेटकर पूरी कोशिश की जाती है हिन्दुओं में हिन्दुओं के ही प्रति नफरत भरने की।

तो ऊपर की बातों से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि हिन्दू नाम वाले हिन्दू विरोधियों (नास्तिक, नवबौद्ध, वामपंथी, अम्बेडकरवादी) का एक ही उद्देश्य है कि कुछ भी किया जाए बस हिन्दुओं को हिन्दुओं से कैसे भी करके आपस में लड़ाया जाए और हिन्दुओं को आपस में लड़ाने की बेचैनी वामपंथी नवबौद्ध प्रजाति के लोगों की बातों और व्यवहार से साफ नजर आती है।

और हिन्दूओं को आपस में लड़ाने का सबसे बढ़िया तरीका है खुद को हिन्दूओं की कुछ जातियों का हितैषी घोषित करके हिन्दूओं की कुछ अन्य जातियों के खिलाफ जहर उगला जाए तथा हर घटना को जातिवाद का रंग दे दिया जाए और व्यवहारिक रूप में आजकल यही चारों ओर देखने में आ रहा है।

तो अब इसमें हम सब हिन्दूओं की जिम्मेदारी ये है कि हम जातिवाद, छुआछूत, ऊंचनीच, पाखंड जैसी कुरीतियों से पूरी तरह दूर रहें, लेकिन साथ ही कुरीतियों की दुहाई देकर सनातन हिन्दू धर्म की बुराई कर अपने पूर्वजों की आत्मा को और हिन्दुओं के भाईचारे को कष्ट ना पहुंचाएं।

आपस में मिलजुलकर रहें क्योंकि सनातन धर्म एक परिवार है और हर हिन्दू इस परिवार का सदस्य।

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