खेल भावना के आगे सब कुछ गौण

23 वर्षीय एथलीट नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का एथलेटिक्स में ओलंपिक पदक जीतने का पिछले 100 साल से भी अधिक का इंतजार समाप्त कर दिया। इस जीत से नीरज चोपड़ा ने न केवल इतिहास रचा बल्कि हमारे राष्ट्र भारत को भी गौरान्वित किया है। कल जैसे ही यह घोषणा हुयी मन प्रफुल्लित हो गया। सभी खेल प्रेमी आपस में बधाई देने लग गये। सभी खेल प्रेमियों ने अपने अपने ट्विटर पर या फिर फेसबुक पर बधाई संदेश पोष्ट करने शुरू कर दिये। स्वर्ण पदक जीतने के बाद उसने अपनी इस उपलब्धि को महान धावक दिवंगत मिल्खा सिंह को समर्पित करते हुये कहा, ”मिल्खा सिंह स्टेडियम में राष्ट्रगान सुनना चाहते थे। वह अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनका सपना पूरा हो गया”। उसकि इस अद्भुत खेल भावना वाले कृत्य के लिये भी ये निश्चित  तौर पर बधाई के पात्र हैं।

यहाँ एक और तथ्य सांझा करना चाहूँगा वो यह है कि इस बार वाला ओलंपिक हम सभी के लिये बहुत ही गौरव वाला रहा है क्योंकि पहली बार ओलंपिक इतिहास के 125 साल में  हमारे राष्ट्र भारत के लिये सर्वाधिक 7 पदक जीते गये  हैं क्योंकि अभी तक ओलंपिक में 6 पदक तक ही जीत पाये थे। इसके अलावा तीन महिलाओं ने भी पदक जीते हैं वो भी अभी तक ओलंपिक इतिहास में सर्वाधिक हैं।

जैसा मैंने ऊपर लिखा खेल जगत से हर क्षेत्र के खिलाड़ीयों ने खेल भावना प्रदर्शित करते हुये सोशल मीडिया पर लगातार सभी भारतीय खिलाड़ियों को बधाइयाँ दीं, यह अवर्णनीय खेल भावना को प्रकट तो करता ही है साथ ही साथ धर्मों, रंगों और सीमाओं को अप्रासंगिक बना देता है।

अब जब हम खेल भावना की बात करते हैं तो आप सभी प्रबुद्ध पाठकों के ध्यान में एक अनोखी अद्भुत खेल भावना वाले कृत्य को बताना चाहता हूँ, जो इस प्रकार है- 
यह दृश्य टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों की ऊंची कूद के फाइनल का है। ऊंची कूद स्पर्धा के फाइनल के में इटली के 29 वर्षीय गियानमार्को टम्बेरी और कतर के 30 वर्षीय मुताज एशा बरशीम ने 2.37 मीटर (लगभग 7 फीट 9 इंच) की छलांग लगाई और बराबरी पर रहे! दोनों एथलीट्स को एक-दूसरे पर बढ़त बनाने के लिए 2.39 मीटर की छलांग पूरी करनी थी इसलिये ओलंपिक अधिकारियों ने उनमें से प्रत्येक को तीन-तीन अतिरिक्त प्रयास के अवसर दिए लेकिन वे दोनों ही 2.37 मीटर से अधिक ऊंचाई की छलांग नहीं लगा पाए यानि तीन प्रयासों के बाद भी कोई भी एथलीट निर्धारित ऊंचाई तक पहुंच नहीं सका।

इसके बाद उन दोनों को एक अंतिम प्रयास और दिया गया, लेकिन टम्बेरी  के पैर में गंभीर चोट के कारण, उन्होंने स्वयं को अंतिम प्रयास से अलग कर लिया। उस समय जब बरशीम के सामने कोई दूसरा प्रतिद्वंदी नहीं था, तब वेआसानी से अकेले स्वर्ण पदक  विजेता बन सकते थे!

लेकिन बर्शिम ने अधिकारी से पूछा, “अगर मैं भी अंतिम प्रयास से पीछे हट जाऊं तो क्या स्वर्ण पदक हम दोनों के बीच साझा किया जा सकता है?” 

आधिकारी जाँच के बाद पुष्टि करते हुए कहते हैं “हाँ तो स्वर्ण पदक और प्रथम स्थान आप दोनों के बीच साझा किया जाएगा”। बर्शिम ने बिना एक पल गंवाए अंतिम प्रयास से हटने की घोषणा कर दी। यह देख इटली का प्रतिद्वन्दी ताम्बरी दौड़ा और बरसीम को गले लगाने के बाद चीख-चीख कर रोने लगा!

बर्शिम ने भले ही गोल्ड मैडल साझा कर लिया हो लेकिन इंसानियत के तौर पे वे बहुत आगे निकल गए और इस खेल की दुनिया में अपना नाम अमर कर लिया।

यह दृश्य हमारे दिलों को छूने वाला और अद्भुत खेल भावना प्रकट करने वाला है जो धर्मों, रंगों और सीमाओं को बहुत बौना बना देता है, सौहार्द और आपसी साहचर्य ही मानवता की कसौटी है! इसलिये ही कहा जाता है कि खेल के मैदान से अच्छा कोई भावनाओं को जोड़ने का स्थान नहीं।

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