असुरक्षित दिल्ली और सरकार का रिसता इकबाल

क्या यह केंद्रीय गृहमंत्रालय की नाकामी नहीं है कि तथाकथित किसान आंदोलन के नाम से दिल्ली के सीमाई इलाकों में चल रहे उत्पात से आम लोगों को राहत नहीं मिल रही है? हर दिन करोड़ों रुपयों का नुकसान हो रहा है। लोगों के आने जाने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं। हजारों रोजगार बंद हो गए हैं। कंपनियां अपना सामान समेटने लगी हैं। पिछले साल आंदोलनजीवी दिल्ली को ट्रैक्टर से रौंदते हुए लालकिले तक पहुंच गए थे। वहां तिरंगा उखाड़ कर अपना तथाकथित खालिस्तानी झंडा गाड़ दिया था। और अब तो इस तथाकथित किसान आंदोलन के विरोध में हरियाणा में लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं और मांग कर रहे हैं कि फर्जी आंदोलन को बंद किया जाए जिससे आम लोगों की रोजी-रोटी चल सके। दिल्ली के चारों ओर लोग मुश्किल में हैं और दिल्ली पुलिस…?

Anti-Hindu riots and violence in Delhi

इससे पहले शाहीन बाग में फर्जी आंदोलन ने पूरी दिल्ली को बंधक लिया था। दिल्ली के लाखों लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था। लाखों नागरिकों, बुजुर्गों और  बच्चों की जिंदगी को इस तथाकथित सीआईए विरोधी आंदोलन ने परेशानी में डाल दिया था। आंदोलन में जमकर देश विरोधी और हिंदु विरोधी भाषण होते रहे। पूर्वोत्तर को भारत से काटने की बातें होती रही और दिल्ली पुलिस….?

इसके बाद दिल्ली के दंगे भड़काए गए। आम आदमी पार्टी के मुस्लिम नेताओं ने गोला-बारूद-पत्थर मस्जिदों और घरों की छतों पर कई सप्ताह पहले से इकट्ठा करना शुरू कर दिया। हिंदु बस्तियों में जमकर मारकाट की गई। घरों से गोला-बारूद दागा गया। लोगों को सरेआम मारा-काटा गया। आईबी के अधिकारी को चाकू गोदकर मारा गया। दिलबर नेगी को उसी की मिठाई की दुकान के अंदर जिंदा जला दिया। कई दिनों तक पूरी दिल्ली मुस्लिम आतंकियों की गिरफ्त में रही। और दिल्ली पुलिस…?

दिल्ली के एक फ्लाई ओवर पर अवैध मजार रातों-रात खड़ी हो जाती है। शिकायत करने पर मौलवी उसे अपने परदादा के जमाने की बताते हैं। बीच बचाव में सफाई देने आते हैं आजाद नगर थाने का थाना प्रभारी भारद्वाज। शिकायतकर्ता को गालियां देता है और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की धमकी देता है। और दिल्ली पुलिस….?

इन चारों घटनाओं, चारों जगहों और चारों वक्त पर पर कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधीन वाली दिल्ली पुलिस की थी। दिल्ली पुलिस कोई भी बड़ा निर्णय खुद लेती हो, यह मान लेना असंभव है। फिर…? फिर क्या! शायद नई रणनीति ईजाद की गई है- दुश्मन को अपनी मौत मरने दो! गलने दो! टूटने दो! मरने दो और मारने दो। और कुछ नहीं हो तो सर्वोच्च न्यायालय और निचली अदालतों में याचिका दाखिल कर टकटकी लगाए ताकते रहो। न्यायाधीशों से अपेक्षा करते रहो- मी लॉर्ड, हमें कुछ समझ नहीं आ रहा। प्लीज आप ही कुछ कह दो इनसे। इनसे कहो कि ये रास्ता छोड़ दे। आप ही इन किसानों से कहो कि ये टैंट खाली कर दे। आप ही रोहिंग्याओं से कहो कि वे शांति से दिल्ली छोड़कर अपने घर चले जाए। आप ही सड़क पर कब्जा करने वाले मौलवियों से कहो कि वे अपनी अवैध मजारें हटा लें…।

देश के गृह मंत्रालय को न जाने किस घड़ी का इंतजार है! दो बड़े काम करके और हजारों छोटे मगर उतने ही महत्वपूर्ण कामों को अटकाकर और लटकाकर कोई लौहपुरुष नहीं हो सकता। राष्ट्रहित में हर छोटे, मगर राष्ट्रीय महत्व के काम को भी उसी इंटेनसिटी के साथ करना जरूरी है।

क्या ये तथाकथित आंदोलनकारी इतने फौलादी हो गए हैं कि इनसे निपटने के लिए आपके तरकश में कोई तीर नहीं है। क्या मौलवी इतने ताकतवर हो गए हैं कि किसी भी फ्लाईओवर पर मजारों के नाम पर सरकारी जमीनों पर कब्जा कर लें। क्या रोहिंग्याओं को इतना ताकतवर बना दिया गया है कि वे दिल्ली में सरकारी जमीनों पर टैंट और मस्जिद बनाकर रहने लगें। अगर ऐसा है तो पूरे खुफिया तंत्र और सरकार के रणनीतिकारों से तुरंत इस्तीफा लेकर उन्हें घर भेज देना चाहिए।

वह लोग क्यों नागरिकों से वसूले टैक्स से मोटी सैलरी ले रहे हैं। क्या ऐसे लोगों के भरोसे आम नागरिकों की जिंदगी को छोड देना चाहिए? अगर दिल्ली पुलिस या उनके आलाकमान उत्तरप्रदेश के योगी मॉडल का ही अनुसरण कर लेती तो दिल्ली कभी इतनी असुरक्षित नहीं होती। क्या यह जरूरी नहीं है कि दिल्ली पुलिस और केंद्रीय गृहमंत्रालय को उत्पातियों, उपद्रवियों और आतंकियों से निपटने के लिए अपनी रणनीति को बदलना चाहिए। अन्यथा लोगों में सरकार और पुलिस का इकबाल तेजी से रिसता जाएगा और अविश्वास की खाई बहुत गहरी हो जाएगी।  

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