न्यायपालिका का आँख चुराना

अभी तक न्यायपालिका की तरफ़ लोगों का नज़रिया वैसा नहीं है जैसा लोकतंत्र के बाक़ी तीन स्तंभों के लिए है, लेकिन यह दौर सूचना का दौर है इसलिए कोई भी संस्थान लगातार अपने मन की नहीं कर सकता।

कुछ ऐसा ही न्यायपालिका के साथ भी है, अभी तो लोगों में चर्चा शुरू हुई है की क्या देश की अदालतें भी वामपंथी ताक़तों के सामने झुक जाती है। लेकिन जिससे पहले यह बड़े विमर्श का केंद्र बने न्यायपालिका को सतर्क और निडर हो के अपनी साख को बचाना चाहिए क्योंकि न्यायपालिका ही लोकतंत्र के चार मुख्य स्तंभों में सबसे अधिक आत्मनिर्भर, भरोसेमंद और शक्तिशाली है बाक़ी तीन स्तंभ तो पहले ही वोट और धन के लिए एक दूसरे पर निर्भर होने के कारण अपनी गरिमा खोते जा रहे है।

लेकिन बात यहाँ न्यायपालिका की है जिसके फ़ैसलों को अब देश का एक बड़ा वर्ग संदेह की दृष्टि से देखने लगा है, और इसके लिए न्यायपालिका स्वयं ज़िम्मेदार है। केरल और बंगाल में होने वाली राजनैतिक हत्याएँ अब सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे देश में चर्चित रहती है लेकिन न्यायपालिका का संविधान के नियमों का हवाला देते हुए लगातार बचते रहना, देश की बहुसंख्यक आबादी के मामलों में स्वतः संज्ञान लेना या टाल-मटोल करना अब लोगों तक पहुँचने लगा है।

अभी हाल में ही उत्तरप्रदेश में कांवर यात्रा पर स्वतः संज्ञान लेके सुरक्षा कारणों से पाबंदी और केरल में वामपंथी दबाओ के आगे झुकने वाली सरकार के आगे झुक जाना और करोना के हालात उत्तरप्रदेश के मुक़ाबले अत्यधिक ख़राब होते हुए भी कोई आदेश ना दे पाना और ग़ुस्से का नाटक करना, शाहीनबाग़ मामले में वार्ताकार नियुक्त करके फ़र्ज़ी धरने को वैधानिकता प्रदान करना, फिर किसान आंदोलन में सड़क जाम से एक आम देशवासी को मुक्ति ना दिला पाना, पंजाब में तीन महीने तक रेल की पटरी पर बैठे हुए किसानों पर कोई ठोस निर्णय ना दे पाना, और उस पर संसद द्वारा किसानो के हितों के लिए बनाए गए क़ानून को बिना गुण दोष जाने छः महीने के लिए लटका देना, बंगाल से जुड़े मसलो पर जजों का स्वयं को अलग कर लेना आदि।

और सबसे ख़तरनाक एक आतंकी के लिए कुछ बड़े वक़ीलों के दबाओ में आ कर आधी रात को सुनवाई जबकि आपके न्याय के इंतज़ार में लाखों निर्दोष सालो से कोर्ट के चक्कर काट रहे हों। एक एक कर के गिनती की जाएगी तो न्यायपालिका को जवाब देते भी नहीं बनेगा, पर इनकी यही तो ताक़त है की इनको जवाब नहीं देना होता, माना आपकी जवाब देही क़ानून द्वारा तय नहीं है लेकिन ये जनता है अगर आप को जान के जाग गई तो जवाब तैयार रखिएगा क्योंकि भीड़ पर आप का क़ानून नहीं चलता ये लोगों ने खूब देख समझ लिया है।

Disqus Comments Loading...