बौद्ध, जैन दर्शन में राम

नवबौद्ध वर्तमान में समाज को दिग्भर्मित करने के लिए रोज तरह तरह के झूठ और प्रपञ्च फैलाते रहते है। इसी कड़ी में यह हिन्दू धर्म के सर्वमान्य भगवान राम के सम्बन्ध में दुष्प्रचार फैलाते रहते है। इस तरह के दुष्प्रचार से समाजिकता को कोई बल नही मिलता हाँ सामाजिक संरचना में दुराव और वैमनस्य जरूर फ़ैल रहा है।

यह लोग यह दावा करते फिरते है कि इतिहास में राम और कुश जैसा कोई पात्र पैदा नही हुआ है ये सिर्फ ब्राह्मणों की कल्पना है और मिथ्या है।

इसी में एक वर्ग कहता है की मौर्य वंश के अंत के बाद ब्राह्मणों ने ब्राह्मण राजा पुष्यमित्र को राम और मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहद्रथ को रावण के रूप में चित्रित किया है और मौर्य साम्राज्य के दस राजाओ को दशानन रावण की के रूप में प्रतुत किया है।

फिर यही वर्ग राम को शम्भुक और सीता के साथ अन्याय करने वाला बता कर गालिया बकता है।

इनके तर्क और दलीले रोज रोज एक नई कहानी बनती है एक तरफ राम तथा कुश के अस्तित्व को ही नकार देते है और दूसरी तरफ रावण को महान बौद्ध तो राम को हत्यारा और अन्यायी भी कहने लगते है।

जब अमुक पात्र काल्पनिक है कभी अस्तित्व में था ही नही तो वो अन्यायी या हत्यारा कैसे हो गया। और अगर अस्तित्व में था फिर काल्पनिक कैसे हुआ।

इन मेंटलो को खुद ही ज्ञान नही की यह क्या कहते है और क्या सुनते है। इनकी दलीलों में न कोई सत्यता है न प्रमाणिकता, अगर कुछ है तो सिर्फ थेथरई और दोगला पन।

समझ में नही आता की इनकी कौन सी बात सही है कौन सी गलत क्यों की तीनो कहानी इन्होंने ही गढ़ी और तीनो में तीन तरह की बाते है। तीनो में कोई समानता नही। अब अगर राम काल्पनिक है मान लिया जाये तो फिर राम थे और शम्भुक् का वध किया और सीता के साथ अन्याय किया ये कौन सी कथा है।

या फिर ये माना जाये ये दोनों बाते गलत है वास्तव में राम पुष्यमित्र शुग है और रावण वृहद्रथ मौर्य। तीनो ही तर्को में तीन तरह का झूठ और बोलने वाला एक अब कोई कैसे इनकी बातो पर विश्वास करे।

क्यों की ये तीनो कहानिया नवबौद्ध ही प्रचारित करते है। जबकि ऐहतिहासिक दृष्टि से ये तीनो ही बाते झूठी और समाज को विखंडित करने के लिए गढ़ी गई है।

कहा जाता है पुरातन सभ्यता के अंश नवीन सभ्यता में उद्घृत होते रहते है। अतः राम की वास्तविकता क्या है और राम वास्तव में थे या नही थे और हमारा सम्बन्ध उनसे है या नही है इसकी समिक्षा हम बौद्ध ग्रंथो से ही करते है।

सबसे पहले जानते है बौद्ध ग्रंथो के बारे में।

बौद्ध धर्म में त्रिपिटक ग्रंथो को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. त्रिपिटक के अंतर्गत विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक आते है विनय पिटक में
१) पराजिक,
२) पाचित्तिय,
३)महावग्ग
४)चुल्ल्वग्ग,
५)परिवार ग्रंथ है.

सुत्त पिटक के अंतर्गत
१} दिघ निकाय,
२} मज्झिम निकाय,
३}संयुक्त निकाय,
४}अंगुत्तर निकाय और
५} खुद्दक निकाय ग्रंथ आतें है.

अब खुद्दक निकाय में १५ ग्रंथहै
१]खुद्दकपाठ,
२]धम्मपद,
३]उदान,
४]इतिवुत्तक,
५]सुत्तनिपात,
६]विमानवत्थु,
७]पेतवत्थु,
८]थेरगाथा,
१०]जातक,
११]निद्देश,
१२] पटीसम्भीदामग्गउ,
१३]अपदान,
१४]बुद्धवंस और
१५]चरियापिटक.

अभिधम्म पिटक में सात ग्रंथ आतें है ,जो इस प्रकार है –
१.धम्मसंगणी,
२.विभंग,
३.धातु कथा,
४.पुग्गलपंति,
५.कथावस्तु,
६.यमक और
७.पठठान.

इनके बावजूद जातक कथाएं बौद्ध धर्म में अपना बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है. इनकी कुल संख्या ५४७ है .ये कथाएं बुद्ध के समय में प्रचलित थी और इन्हें बुद्ध ने ही कहा है ऐसा बौद्ध ग्रंथो में कहा गया है। जातक कथाएं बुद्ध के युग में प्रचलित थीं. जिसमे बुद्ध पूर्व जन्मों के बोधिसत्वों के बारे में बताते है।

अब इन जातक कथाओ में सिर्फ राम का ही नही बल्कि महाभारत के पत्रो का भी उलेख है।

इस बात का प्रमाण है की हिन्दू वांडमय में, विशेषकर जिन दानवीर राजा हरिश्चंद्र, शकुंतला, दुष्यंत, दशरथ-राम, राजा जनक, श्रीकृष्ण, कौरव-पांडव, विदुर आदि महमनवो की चर्चा की गई है बौद्ध धर्मं की जातक कथाओ में भी उन्ही का उल्लेख मिलता है।

हिंदू धर्म में  सतयुग में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की दानवीरता का अक्सर जिक्र आता हैं. इन्ही राजा हरिश्चंद्र की कथा को महावेस्सन्तर जातक (547) में संकलित किया गया है या बुद्ध के मुह से कहलवाया गया है। जिसके अंतर्गत दान परिमिता का महत्त्व बताया गया है. कट्ठहारी जातक (7) में शकुंतला का प्रकरण ज्यों का त्यों दिया गया. सुत्तभस्त जातक (402) और महाजनक जातक में (359) में मिथिला के राजा जनक का विस्तृत वर्णन किया गया है।

वही दसरथ जातक (461) में राजा दसरथ, तथा राम को बोधिसत्व राम  के रूप में लिखा गया है, लक्खन कुमार और सीता का भी वर्णन मिलता है।

अंतर केवल इतना है की हिंदू वांडमय में सीता राम की पत्नी बताई गयी है. वही बौद्ध धर्म शक्यो में बहनो से विवाह करने की प्रथा के चलते सीता को राम की बहन के रूप में लिखा गया है। क्यों की स्वयं बुद्ध ने भी अपनी फुफेरी बहन यशोदरा से ही विवाह किया था। अतः इस युक्ति को सही ठहराने हेतु दसरथ जातक में सीता को राम की बहिन फिर पत्नी बताया गया है।

महाजनक जातक, दसरथ जातक, सामजातक और चुल्लहंस जातक, में चित्रकूट पर्वत का वर्णन है, ये सभी तथ्य इस बात के प्रमाण दे रहे है की इतिहास में शकुंतला, भरत, हरिश्चंद्र, दसरथ, जनक, राम, लक्षण, सीता, भरत जैसे चरित्र काल्पनिक नही है और न ही मिथ्या।

साम जातक (540) में पितृ भक्त श्रमण कुमार का उलेख किया गया है .

वही श्रीकृष्ण को बौद्धों के बोधिसत्व के रूप में दर्शाया गया. श्रीकृष्ण की संपूर्ण कथा कन्ह जातक (440) में घत जातक (454) और श्रीकृष्ण के द्वारा दिया गया ज्ञान महानारद कश्यप जातक (544) में प्राप्त होता है।

इतना ही नही महाभारत में उल्लेखित, युधिष्टिर् यक्ष संवाद को देव धम्म जातक (6) और सुत्त निपात में ज्यो का त्यों लिखा गया है।

राजा ध्रुतराष्ट्र की जानकारी सिरकालकन्नी जातक (382),चुल्लहंस जातक (533) और महासंस जातक (534) में लिखी गई है।

महाभारत के मुख्य पात्र युधिष्ठिर और विदुर तथा उनकी राजधानी इंद्रप्रस्थ की जानकारी दस जातक (502) सम्भव जातक (515) और जुए का संपूर्ण विवरण और विदुर का संपूर्ण चरित्र-चित्रण विधुर नामक जातक (545) में लिखा गया है. इसके अतिरिक्त धनंजय, विदुर, संजय के बारे में जानकारी सम्भव जातक (515) से प्राप्त होती है. अर्जुन के बारे में भुरिदत्त जातक (543) और कुणाल जातक (536) एवं भीम के बारे में कुणाल जातक (536) पूरी कहानी दी गई है.

भगवान विश्वकर्मा का वर्णन ययोधर जातक (510) और ह्रुषी ह्रंग की पूरी जानकारी अलम्बुस जातक (523) और नलिनिका जातक में लिखी गई है।

एक इतिहासकार होपकिन्स के अनुसार, ”रामायण की रचना कब हुई, इसके बारे में निश्चित रूप से कहना कठिन है। लेकिन सुस्थापित कथन यह है की राम वाली घटना पांडवो वाली घटना से अधिक पुरानी है और रामायण के मुख्य नायक श्रीराम और नायिका सीता है .इसी को बौद्ध धर्म में  दसरथ जातक के रूप में लिखा गया है।

मिथिला के राजा जनक (महाजनक जातक) और चित्रकूट पर्वत (चुल्लहंस जातक)में उल्लेख मिलता है। दसरथ जातक में राजा दसरथ को वाराणसी का राजा कहा गया और उनकी सोलह हजार रानियाँ थी ऐसा लिखा गया है। उनकी पटरानी से राम पडित और लक्खन कुमार दो पुत्र और सीता देवी एक पुत्री उत्पन्न हुई थी। पहली पटरानी के मरने के बाद सोलह हजार रानियों में से एक नयी पटरानी नियुक्त की गई। उससे भरत नाम का एक और पुत्र उत्पन्न हुआ। बाकि संपूर्ण कथा रामायण की कहानी की तरह चलती है। इसमें रावण वद्ध के बारे में लिखा है की रावण का वध राम ने नही अपितु लक्मन् के किया और अंत समय में उनका शरीर रोग ग्रस्त हो गया।

ऐसा वर्णन है की:
राम पण्डित बोधिसत्व थे और अपने पिता की आज्ञा मानकर वनवास चले गए थे। उनके साथ उनके छोटे भाई लक्खन कुमार और सीता देवी भी गई थी। वनवास से लौटने के बाद राम के राजा बनने पर सीता की शादी राम से कर दी गई।

अब मुर्ख व्यक्ति भी सच क्या है समझ सकता है। राम के होने और राम से सम्बंधित तथा महाभारत से सम्बंधित सभी पात्र थे ये बात स्वयं जातक में बुद्ध ही स्पष्ट करते है और नावबोद्ध इसे नकार कर नई नई कहानी गढ़ के समाज को गुमराह करते है।

अब ध्यान देने योग्य और भी तथ्य है की जिस प्रकार बौद्ध धर्म में राम को बोधिसत्व कहा गया उसी तरह जैन धर्म में उनको और उनसे सम्बंधित लोगो को जैन। जबकि बौद्ध और जैन दोनों समकालीन थे। अब ऐसा तो था नही एक ही नाम के सभी व्यक्ति बौद्ध और जैनियो के लिए धरती पर पैदा हो गए थे। निश्चय ही राम का अस्तित्व उनसे पहले रहा होगा जिसे उन्होने अपने अपने मत के अनुसार पृथक पृथक कर के अपने मत में आत्म सात किया।

चुकी दोनों ही सम्प्रदायो में राम कथा है हा ये बात अलग है इन अब सम्प्रदायो ने राम को आत्मसात करने के लिए अपने अपने ढंग से बौद्ध और जैन बना दिया। किन्तु ये थे इस बात की पुष्टि इन्ही बातो से हो जाती है। राम बौधों में भी आदर्श व्यक्तित्व है एक बोधिसत्व के रूप में राम जैनियो में भी आदर्श है एक जैन मुनि के रूप में और राम हिन्दुओ में भी आदर्श है भगवांन के अंश के रूप में।

राम नही थे ये बात नावबोद्ध झूठा प्रचारित कर् रहे है। राम को पुष्यमित्र के रूप में चित्रित करना यह भी पाखंड ही नवबौद्धों का।

जबकि राम की प्रमाणिकता और अन्य सनातन धर्म के महापुरुषो की प्रमाणिकता स्वयं इन्ही के साहित्य कर रहे है जो उनके न होने पर प्रश्न चिन्ह लगते है।

तो झूठ कौन बोल रहा है समाज को समझना होगा।

रामायण और महाभारत के प्रमाणिक होने का सबसे बड़ा तथ्य है। 800 ई0 पूर्व एक ग्रीक लेखक हमर Hummer द्वारा ग्रीक भाषा में लिखा गया ग्रन्थ odeshi और eliyad. ये प्रमाण सबसे पुख्ता प्रमाण है राम के ऐहतिहासिक पुरुष होने के जिन्हें बाद में बौद्धों और जैन धर्मावलंबियो ने आत्म सात किया।

ये क्रमशः रामायण और महाभारत की ही कथा है। और ये तब लिखी गई है जब बौद्ध और जैन सम्प्रदाय अस्तित्व में भी नही थे।

फिर भी झूठ पे झूठ हर रोज नई कहानी नई बात। और समाज में राम और बुद्ध के नाम पर संघर्ष को हवा देने का काम नावबोद्ध समूह करता रहता है। जबकि उनके झूठ का पुलिंदा उनके ही धर्म ग्रंथो से खुल जाता है।

रामायण और महाभारत अगर ब्राह्मणो की कल्पना है तो ये बौद्ध धर्म में कहा से आ गए जैन धर्म में कहा से आ गए। जबकि सिक्खो के प्रथम गुरु गुरु नानक जी ने अपनी जीवनी में स्वयं को राम के पुत्र लव का वंसज बताया है, गुरु गोविन्दसिंह जी ने भी स्वयं को राम के पुत्र कुश का वंसज कहा है।

इतने ठोस और पुख्ता प्रमाण तो स्वयं बौद्ध और जैन साहित्य ही देते है भगवान राम के अस्तित्व के सन्दर्भ में फिर भी इन मूर्खो ढोंगियों को देखिये यह स्वयं के ही धर्म ग्रंथों के अध्ययन और जानकारी में फिसड्डी है और प्रवचन देते फिरते है हिन्दू धर्म ग्रंथों और शास्त्रो पर।

यह झूठ के पुलिंदे पर बौद्ध दर्शन को धर्म के रूप में परिभाषित कर अलग दुकान चलना चाहते है। जो न पहले संभव हो सका था न आगे संभव होगा।

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