राजनीति के चमन चकोर

ट्विटर जगत में जब से बनारसियों, पुरवियो जैसे खाटी महानुभावो का प्रादुर्भाव हुआ, तब से चमन जैसे शब्द सुनते ही अतिसंवेदनशील कॉकटेल सर्किल से सम्बन्ध रखने वालो के कान खड़े हो जाते है, कलेजा फड़फड़ाने लगता है और फड़फड़ा के फेफड़ो को झकझोर देता है। उनको लगता है की अब ये बिना अपशब्द बोले गाली जैसी कोई चीज थमा के निकल लिया। खैर ये वो वाले चमन नहीं, परन्तु चकोर का मतलब वही है, जो आप समझ रहे है।

उत्तर प्रदेश जहा की गाय भैस भी घंटो राजनीतिक जुगाली कर सकती है, वहा का चुनाव आने वाला है। अब माहौल तो गरम होना स्वाभाविक है, सब दलों ने अपने पालक- बालक वृन्द को काम पे लगा दिया है। पोलिये अपना हसिया, खुरपा तेज कर रहे है, दो चार सर्वे तो अपने घर में ही कर दे रहे “मम्मी ज्यादा अच्छी चाय बनाती है, या पापा बढ़िया बर्तन माजते है?” पर असली दबाव राजनीति के चमन चकोरो पर है, सब एक दूसरे की केस स्टडी करके अगला कदम साध रहे है और अपने पालको – बालको को काम पर लगा दिया है।

पत्रकारिता के तमाम सूर्य जो टीवी से यूट्यूब पर आ गए है अति उत्साहित है, उनकी माने तो “दिल्ली में मोदी जी ने योगी को मुर्गा बनाया और कान पकड़ के उठक बैठक करवाई”। ये चमन लोगो का पहल अस्त्र था, जो उन्होंने शिवपाल चचा और छोटे नेता जी की बीच २०१७ इलेक्शन से पहले की कुकुर झाउ झाउ के परिणाम की केस स्टडी से लिया। ये अस्त्र लवणासुर के बाण की तरह था जिसे शत्रुघ्न ने निरस्त कर दिया।

अब चमन चकोरो ने दूसरा अस्त्र लफ़ंगयी का चलाया, उसके लिए सुल्तानपुर की सिनेमा में अभूतपूर्व योगदान देने वाले चकोर को बुलाया गया और चकोर ने पाशा फेक दिया,”रामलाला की जमीन खरीदने में ट्रस्ट ने चोरी की है”। मुद्दा आते ही अति उत्साहित पत्राकारिता के सूर्य, लाल बबुवो का समूह, राज घराना ऐसे टूट पड़े के मनो चीलो के सामने गोस्त का टुकड़, या फिर ठण्ड में कांपते व्यक्ति के सामने ऊनी कपड़ा।

सोचना एक करमुक्त व्यसन है, कोई भी कर सकता है, कभी भी कर सकता है, कही भी कर सकता है और भारत वर्ष में सोच शौच से भी सुलभ है। तो विपक्ष के एक मनीषी चकोर ये सोचने लगे के अगर मामला कोर्ट में चला जाए तो मंदिर निर्माण का काम अटक जायेगा और भाजपा को मंदिर निर्माण का कोई फायदा नहीं मिलेगा। वही दूसरी तरफ चचा के दुलारे भतीजे “राम को बेच दिया, राम को बेच दिया “कहके इस चक्कर में छाती पीटने लगे, की भोले भाले लोग कारसेवको पे चलाई गोलिया भूल जायेगे और इस बार राम के नाम हम भी जीतेंगे और मुख्यमंत्री आवास में डंडी वाले फुहारे लगवायेगे, जिससे बाद में उखाड़ने में मेहनत कम लगे! इन्ही सब गहमा गहमी की बीच राज परिवार के राज दुलारो ने भी ट्वीट दे मारा और फिर क्या होना था, वही जो हर बार होता है।

सुल्तानपुर के फ़िल्म जगत के चमन चकोर को लगातार सपरिवार हिचकी आ रही है। पता नहीं कितने लोग याद कर रहे है, अब मुख्यमंत्री बाद में बनेगे पहले हिचकी से तो निजात मिले, यही सोच के परेशान है।

बड़ी मुश्किल से और कोरोना की कृपा से उत्तर प्रदेश के लोग भाजपा सरकार से दूसरे मुद्दों पे सवाल कर रहे थे, जिससे चकोरों को फयदा हो सकता था, मंदिर को बीच में ला के इन्होने फिर से वही मोह पैदा कर दिया, जो डैमेज कंट्रोल बीजेपी २ महीने में नहीं कर पाती या शायद चुनाव तक, उसको इन्होने रामलला को बीच में ला के कर दिया। अब इनको चमन -चकोर न कहा जाये तो और क्या?

राजनीति का रसपान करते रहिये ये उत्तर प्रदेश है।

Naveen Dubey

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