हम अस्पताल के लिए लड़े ही कब थे?

सनातन धर्म को छोड़कर विश्व के अन्य सभी धर्म किसी न किसी संघर्ष की उपज हैं। इसी कारण अन्य सभी धर्मों के नियम और परम्पराएँ किसी सुनियोजित संगठन के नियम और परम्पराओं के समान होते हैं। प्रायः सभी धर्मों (हिन्दू धर्म को छोड़कर) का कोई न कोई संस्थापक अवश्य होता है और उनमें धर्मांतरण की व्यवस्था भी होती है, जो इसी संघर्ष तथा संगठन को आगे बढ़ाने की मानसिकता की परिचायक है। किंतु सनातन (हिन्दू) धर्म किसी संघर्ष की उपज न होकर एक प्राकृतिक धर्म है। प्रकृति पूजा हिन्दू धर्म का विशेष अंग है। न तो कोई व्यक्ति विशेष हिन्दू धर्म का संस्थापक है और न ही इसके रीति रिवाज एवं परंपराएँ किसी संगठन की भाँति सुपरिभाषित हैं। शायद इसी संगठनात्मक विचार के अभाव के कारण विश्व के सबसे प्राचीन हिन्दू धर्म के धर्मावलंबियों की धार्मिक भावनाओं को आहत करना अन्य धर्मों की अपेक्षा आसान होता है।

भविष्य में लोग अध्ययन करेंगे कि हमारे देश ने चीन से फैली कोरोना महामारी का सामना किस प्रकार किया। जब लोग एकजुट होकर संकट का सामना कर रहे थे तब भारतीय समाज में एक वर्ग ऐसा भी था जो निरंतर भारत का मजाक उड़ा रहा था। भारत के मान बिंदुओं, सांस्कृतिक प्रतीकों, राष्ट्रीय गौरव के प्रतीकों और यहां तक कि इस देश एवं विश्व के सर्वोच्च आदर्श प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर को भी निशाना बनाकर उसके लिए किए गए बलिदान का उपहास उड़ाया जा रहा था। इस वर्ग को कोरोना संकट के समय एकजुट होकर लोगों की सहायता करने के बजाए बस मजा लेना था। एक पोस्ट देखिए और उसका विश्लेषण भी। इससे आप इस वर्ग की मानसिकता को समझ पाएंगे-
“हम अस्पताल के लिए लड़े ही कब थे हम तो मंदिर मस्जिद के लिए लड़े थे।”

बात सुनने में बड़ी अच्छी लगती है और कुछ लोग इस बहकावे में आ भी जाएंगे। पर अब जरा विचार कीजिए ऐसा कहने वाले कौन लोग हैं? ये वे लोग हैं जो ना तो मंदिर के लिए लड़े और ना अस्पताल के लिए। ये लोग सिर्फ दोनों ओर से ताली बजाकर मजे लेने वाले हैं।

यदि मंदिर नहीं बनता अस्पताल बनता तब यह लोग ताली बजाते और कहते कि देखा तुम हार गए फिजूल में समय बर्बाद किया और बलिदान दिए लेकिन मंदिर नहीं बना पाए। पहचानिए इनको और याद कीजिए यह वही लोग हैं जो अतीत में मंदिर निर्माण की तारीख भी पूछा करते थे। किंतु अब जब मंदिर बनेगा तो कह रहे हैं कि अस्पताल बनवा लेते तो कुछ काम आता। ऐसे लोगों की बातें गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं है। बस इनकी पहचान कीजिए और जो चेतना समाज में जागृत हुई है उसे बनाए रखें कुछ दिन बाद इनकी बेचैनियां और ज्यादा बाहर आएंगी। हो सकता है कुछ दिनों बाद आपको सुनने को मिले कि यह मंदिर में घंटी बजाने से, दीपक जलाने से, प्रार्थना करने से, कुछ नहीं होता इससे अच्छा तो मोहल्ले में एक अस्पताल में बनवा लेते, ऑक्सीजन सिलेंडर खरीद लेते। थोड़ा इंतजार कीजिए, अपने काम पर लगे रहिए और और इनकी पहचान कीजिए। क्या ईसा मसीह अस्पताल के लिए सूली पर चढ़े थे? क्या कर्बला में अस्पताल के लिए लड़ाई हुई थी? क्या सोमनाथ का मंदिर तोड़कर अस्पताल बनवाई गई थी? नहीं वह तो धर्म युद्ध था जो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है आप सिर्फ अस्पताल बनवाओ ताकि हम उन पर कब्जा कर सकें।

याद कीजिए आपने 5 साल पहले कोई कार खरीदी, किसी मंदिर में दान किया, कोई मकान बनवाया या बनवा रहे होंगे। कई लोगों की प्रधानमंत्री आवास की कुटी भी बन रही होगी। और ईश्वर न करे किसी के घर में कोई बीमार हो जाता है और उसका पड़ोसी आकर उसकी सहायता करने के स्थान पर उससे कहे कि फालतू में मकान बनवाया अगर ऑक्सीजन सिलेंडर खरीद लेता तो आज काम आता! फालतू में गाड़ी खरीदी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खरीद लेता तो काम आता! और खासकर तब जब वह खुद अय्याशी पर पैसा बर्बाद करता हो और आपको उपदेश दे रहा हो। मन करेगा उसका मुंह तोड़ दें। मगर आप ऐसा मत कीजिए आप सिर्फ पहचान करते जाइए। यह वह लोग हैं जो फेविकोल के विज्ञापन में आते हैं (यूट्यूब पर देख सकते हैं https://youtu.be/S-Q-nCq47QU) इन्हें किसी की जान बचाने से मतलब नहीं वे सिर्फ मजा लेना चाहते हैं।

कहने को बहुत कुछ है एक पूरी किताब लिखी जा सकती है किंतु अंत में बस
“निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छबाय।
बिन पानी बिन साबुना, निर्मल करे सुभाय।।”

ये प्रजाति आपके आस-पास ही मिलेगी आप बस उन लोगों की पहचान करके अपने स्वभाव को निर्मल कीजिए और अपने काम में लगे रहिए।

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