कोरोना संकट और देश के वर्तमान हालात: कुछ आशाएँ, कुछ उम्मीदें

हमारा देश पिछले दिनों ऐसे बुरे हालात से गुजरा जिसे इस एक सदी की कठिनतम त्रासदी कहा जा सकता है। कोरोना की दूसरी लहर पहली लहर के मुकाबले ज्यादा भयानक साबित हुई और हमने अपने कई प्रियजनों, परिचितों, मित्रों को खो दिया। ये ऐसी त्रासदी है जिसे हम सब सामूहिक तौर पर महसूस कर रहे हैं। आज एक सामूहिक दुःख की छाया समूचे देश पर छायी नजर आ रही है जिससे बाहर निकलना भी सामूहिक प्रयासों के द्वारा ही संभव है। आज जब मैं ये लाइनें लिख रहा हूँ, उसके कुछ समय पहले देश के प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित किया है और मैंने उन्हें बोलते देखा- सुना है। उन्हें सुनने के बाद यह महसूस हो रहा है कि कोरोना की यह काली परछाईं जो देश पर फैलती जा रही थी, वह सिमट जाएगी। हम सब मिलकर अपने हिस्से का सूरज अपने आसमान पर टांक देंगे जिसकी चमकीली किरणें अंधियारे का एक एक कतरा मिटा देंगी।

प्रधानमंत्री ने देश के सम्पूर्ण टीकाकरण के लिए आश्वस्त किया है और केंद्र सरकार ने टीकाकरण पर होने वाले खर्च की पूरी जिम्मेदारी ले ली है। हम जानते हैं कि यह महामारी ऐसी है कि यदि एक भी व्यक्ति इससे छूटा तो यह वायरस बचा रह जायेगा। इसलिए सरकार का लक्ष्य है कि साल के अंत तक सम्पूर्ण नागरिकों का टीकाकरण का पूरा कर लिया जाये। सवा अरब वाले देश के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है लेकिन हमारा हौसले के आगे कोई भी चुनौती छोटी है। अभी तक 23 करोड़ से अधिक टीके लोगों को दिए जा चुके हैं जबकि टीके का उत्पादन अपने शुरूआती दौर में ही था। अब उत्पादन की दर भी कई गुना बढ़ गयी है और दो से अधिक टीके भी भारत में उपलब्ध होंगे। मिशन इन्द्रधनुष के तहत पिछले छह सालों में देश की टीकाकरण क्षमता 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी है। सम्पूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य को पाना पहले के मुकाबले अब ज्यादा आसान है। तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है, प्रधानमंत्री ने इस मामले में भी आश्वस्त किया कि बच्चों पर टीकों का परीक्षण शुरू हो चुका है और जल्द ही बच्चों के लिए भी टीके उपलब्ध होंगे। हम जानते हैं कि पिछले सवा साल में देश को कितनी क्षति हुई है। यह क्षति मूलतः देशवासियों की क्षति है। लॉकडाउन ने कोरोना के प्रभाव को नियंत्रित किया तो इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी पड़े। लोगों के रोजगार, शिक्षा, भोजन आदि पर गहरा प्रभाव पड़ा। प्रधानमंत्री की आर्थिक रूप से कमजोर जनता को मुफ्त अनाज देने की योजना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह उस वर्ग को मदद पहुँचायेगा जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।

पिछले दिनों हालात अप्रत्याशित थे। पूरा देश मानो एक युद्ध के मैदान में बदल गया था जिसमें किसी न किसी रूप में हर नागरिक लड़ाई लड़ रहा था। एक ऐसे दुश्मन से लड़ाई जो अदृश्य था और रह रहकर अपना रूप बदल रहा था। तीखी धूप में सड़क पर ठेला खींचने वाले मजदूर से लेकर रातें जागकर अस्पतालों और लैब में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों तक हर किसी ने अपने हिस्से का योगदान भारत को कोरोनामुक्त करने में दिया और लगातार दे रहे हैं। युद्ध जैसे आपात हालातों में किसी भी देश के लोग आपसी अंतर्विरोध भुलाकर उस स्थिति का सामना करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। देश से लेकर परिवार तक की इकाई में यह सामान्य नियम है। लेकिन यह दुखद है कि इस दौरान देश के विपक्ष और विपक्ष समर्थित मीडिया का व्यवहार इस सामान्य नियम के ठीक उलट था।

नए वर्ष की शुरुआत में जनवरी का तीसरा हफ्ता शुरू होते ही हमारे देश में टीकाकरण शुरू हो गया था। लेकिन इस दौरान विपक्षी नेताओं ने लगातार टीके पर सवाल उठाये, अखिलेश यादव ने इसे भाजपा का टीका कहा, शशि थरूर ने ऐसी अफवाहों को हवा दी कि टीके का ट्रायल अभी पूरा नहीं हुआ, किसी ने कहा पहले मोदी टीका लगवायें। इन सब बातों ने लोगों के मन में टीके को लेकर संशय पैदा किया। परिणाम यह हुआ कि लोगों ने टीकाकरण में सुस्ती दिखाई और दूसरी लहर के आने का नतीजा हम सबने देखा और देख रहे हैं। आज वे संशय दूर हुए और टीकाकरण केन्द्रों पर लाइनें लगी हैं। जिन्होंने कभी टीके पर सवाल उठाये वे सब टीका लगवा रहे हैं। लेकिन केंद्र सरकार का विरोध करना उन्होंने अब भी नहीं छोड़ा। विरोध करने की इतनी ऊर्जा अगर उन्होंने वायरस पर केन्द्रित की होती तो आज तस्वीर अलग होती। टीकाकरण कार्यक्रम के दौरान सरकारी प्रयासों के इतर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता गली-गली जाकर लोगों को टीकाकरण के लिए प्रेरित करते रहे। क्या ऐसा ही प्रयास विपक्षी दल अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में नहीं कर सकते थे? लोकतंत्र में विपक्षी दल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, नेता प्रतिपक्ष का दर्जा कैबिनेट मंत्री के स्तर का होता है। लेकिन विपक्षी दल का कार्य केवल सरकार की आलोचना करना ही नहीं होता। आलोचना और विरोध के बीच एक महीन सा फर्क होता है जिसे हमारे देश के विपक्षी दलों ने भुला दिया है।

इस दौरान केंद्र सरकार के निर्देश पर विभिन्न केन्द्रीय संस्थाएँ लगातार विभिन्न राज्यों की मॉनिटरिंग करती रहीं। 17 मार्च को मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री मोदीजी ने कहा था, “…इस समय कई क्षेत्रों और जिलों में मामले बढ़ रहे हैं, जो अब तक अप्रभावित थे। पिछले कुछ हफ़्तों में यह वृद्धि देश के 70 जिलों में 150 प्रतिशत से अधिक है। अगर हम महामारी को अभी नहीं रोक पाए, तो यह देशव्यापी प्रकोप की ओर बढ़ सकता है। हमें कोरोना की इस उभरती ‘दूसरी पीक’ को तुरंत रोकना होगा। कोरोना के खिलाफ हमारा आत्मविश्वास अति आत्मविश्वास में नहीं बदलना चाहिए।” यानि केंद्र सरकार लगातार इन बढ़ते मामलों पर नजर बनाये हुई थी। केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर बताते हैं कि, 24 फरवरी को सात राज्यों जहाँ कोरोना के मामले सबसे ज्यादा थे, के लिए उच्च स्तरीय केंद्रीय टीम बनाई गयी और केंद्र ने लगातार इन राज्यों के साथ मिलकर काम किया और समय समय पर जरूरी सलाह दी। आगे वे यह भी कहते हैं कि, “अगर इन राज्यों ने केंद्र की आरंभिक चेतावनियों को गंभीरता से लिया होता, तो मौजूदा उछाल इतना भयंकर नहीं होता।” हाँलाकि यह वक्त आरोप-प्रत्यारोपों का कदाचित नहीं है, लेकिन जो सत्य भविष्य के लिए सबक हो उसे कह देना उचित है।

कोरोना की दूसरी लहर के पीक पर होने के दौरान देश की संस्थाओं और व्यक्तियों ने जिस तरह काम किया वह एक मिसाल है। इतने बड़े स्तर पर कभी ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ी थी, यह अचानक हुआ लेकिन सेल समेत देश की कई इस्पात कंपनियों ने मेडिकल ऑक्सीजन का निर्माण और पूर्ति शुरू कर दी और देखते ही देखते ऑक्सीजन संकट पर काबू पा लिया गया, देश की सभी सेनाएँ जरूरी चिकित्सकीय आपूर्ति में जुटीं और ये काम आसान हो गया। व्यक्तिगत स्तर पर लोगों के प्रयास अभिभूत कर देने वाले थे। मैंने एक ट्रक ड्राईवर वीर सिंह के बारे में जाना जिन्होंने राउरकेला, ओडिशा से सागर, मध्यप्रदेश तक लगातार 25 घंटे ट्रक चलाकर ऑक्सीजन पहुँचाया। ऐसे वीर सिंह एक नहीं अनेक हैं जिनके सामूहिक प्रयास से आज हम सफलता प्राप्त कर पाए हैं कि पिछले दो दिनों से कोविड संक्रमितों की संख्या 1 लाख से कम दर्ज हुई है।

लॉकडाउन में ढील शुरू हुई है लेकिन संकट अभी टला नहीं है, इस बात का हमें लगातार ध्यान रखना है। जैसा कि प्रधानमंत्री जी ने अपने संबोधन में कहा अफवाहों से बचने और उन्हें दूर करने की जरूरत है। सोशल मीडिया जागरूकता भी फैलाता है और अफवाहें भी, पिछले दिनों सोशल मीडिया के इस अनियंत्रण को संतुलित करने के लिए भी सरकार कुछ नए नियम लेकर आयी है, जो स्वागतयोग्य हैं। हमारा देश बहुत जल्द इस दूसरी लहर को भी पूर्ण परास्त कर तेजस्विता के साथ उभरेगा, इसे झुठलाया नहीं जा सकता।

Shailendra Kumar Singh: Social Entrepreneur and Activist, Bagaha, West Champaran, Bihar
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