किसान आंदोलन की खुलती पोल

तीन नए कृषि कानून के खिलाफ टिकरी बौर्डर पर जारी धरने पर पहुंची पश्चिम बंगाल की युवती की 30अप्रैल को कोरोना से मौत के मामले में नया मोड़ आ गया है। युवती के पिता का यह आरोप है कि एक किसान संगठन के टेंट में उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था। इस मामले में पुलिस द्वारा 2 महिलाओं सहित 6 लोगों पर केस दर्ज कर लिया है। आरोपी किसान सोशल आर्मी नाम का संगठन चलाते हैं और आंदोलन में शामिल थे। सवाल यह है कि सामूहिक दुष्कर्म की जानकारी के बावजूद मोर्चे के वरिष्ठ नेताओं ने पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी? एफआईआर होने के बाद नेता पीड़िता के साथ खड़े होने का दावा कर रहे हैं लेकिन जानकारी रहते पुलिस से सच छिपाना क्या जुर्म नहीं है? किसान आंदोलन के पहले दिन से ही तमाम आरोप लगते आए हैं। इस आंदोलन के विषय में पहले से ही कयास लगाए जा रहे हैं कि यह तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय सजिस है, जो किसान आंदोलन के सहारे अपनी नापाक करतूत करने की कोशिश को सफल करने में लगे हैं। हद तो तब होती है कि हमारे देश के तथाकथित सेकुलर, वामपंथी, मानवता वादी ऑर तथाकथित किसान नेता इस आंदोलन को सबसे बड़ा किसान आंदोलन बताने की कवायद में जुटे हैं। लेकिन इस नए मामले से पहले भी देश विरोधी गतिविधियां होने की आशंका जताई जा चुकी है।

सरकार और आंदोलनकारियों के बीच कई दौर के वार्ता होने के बाबजूद भी कोई हल नहीं निकल पाया है। इस दौरान तथाकथित अंतराष्ट्रीय हस्तियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपना समर्थन किसान आंदोलन को किया है। उन्हीं अंतराष्ट्रीय बुद्धिजीवियों में से एक स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनवर्ग ने गलती से वह दस्तावेज़ साक्षा कर डाला, जिससे यह साफ यह पता चलता है कि भारत को बदनाम करने की बड़ी योजना बनाई गयी थी।

यह बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि किस प्रकार कनाडा में बैठे खलिस्तानियों की प्रचार करने वाली कंपनी पोइटिक जस्टिस ने यह दस्तावेज़ बनाया था, जिसमें 3 जनवरी से 25 फरवरी तक की पूरी कार्यक्रम की जानकारी थी। उस दस्तावेज़ में यह कहा गया था कि किस तरह सोशल मीडिया में अंतराष्ट्रीय स्तर पर तस्वीरों और वीडियो को वायरल करना है और 26 जनवरी यानी भारतीय गणतन्त्र दिवस के दिन चढ़ाई करनी है। हम सबने देखा कि किस तरह हमारे गणतन्त्र दिवस के दिन किस तरह का माहौल बनाया गया। लालकिले पर चढ़कर तिरंगे का अपमान किया गया। यह सब सोची समझी योजना के तहत इस तरह कृत्य का अंजाम दिया गया। वहीं साज़िशों का खुलासा और तब हुआ, जब पौप सिंगर रिहाना किसानों के शुभचिंतक बनते हुए किसानों के समर्थन में एक ट्वीट करती है, और यह ट्वीट के एवज में उसे खालिस्तानी कंपनी के ओर से 18 करोड़ रुपए दिये गए थे। सोचने वाली यह बात है कि एक ट्वीट के लिए इतनी बड़ी रकम को देना, यह कोई मामूली बात तो नहीं लगती है। यह जरूर भारत के खिलाफ साजिश रचने के उदेश्य से यह ट्वीट किया गया था। और यह सब इसलिए भी किया जा रहा था कि किसानों के आंदोलन के नाम पर भारत को अंतराष्ट्रीय मंच पर घेरा जाय, उसकी छवि को धूमिल किया जाय। इस पूरी साजिश के पीछे कनाडा का खालिस्तानी आतंकी जगजीत सिंह था, जो फिलहाल कनाडा की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का सांसद है। हालांकि इस कंपनी को फिलहाल धालीवाल चला रहा है, जो स्वयं को पिछले दिनों से सोशल मीडिया पर खालिस्तानी घोषित कर चुका है।

दस्तावेज़ के मामले में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि टूल किट (ग्रेटा थनबर्ग द्वारा साक्षा किया गया दस्तावेज़) से बड़ी साजिश का खुलासा हुआ है। इस साजिश के खिलाफ में दिल्ली पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है, जब दिल्ली पुलिस ने उस टूल किट के लेखक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर की, तब भारत में तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग भारत को बदनाम करते हुए देश में अंतराष्ट्रीय साजिश से मुद्दे को लोगों को ध्यान भटकाते हुये ये कहने लगे कि ग्रेटा थनवर्ग महान पर्यावरण की विशेषज्ञ के खिलाफ केस दर्ज करना गलत है, क्या हुआ उसने तो सिर्फ एक ट्वीट ही किया था। हालांकि दिल्ली पुलिस ने यह साफ किया है कि प्राथमिकी में किसी का नाम नहीं है, यह टूल किट यानी दस्तावेज़ लिखने वाले के खिलाफ है। मतलब साफ है कि यह प्राथमिकी खलिस्तानियों के खिलाफ दर्ज की गयी है। किसान आंदोलन की आड़ में भारत में हिंसा और दंगा का माहौल बनाने में खलिस्तानयों और वामपंथियों द्वारा चलाये गए एजेंडे का परिणाम है। विपक्ष की कुछ राजनीतिक पार्टियां भी इस तथाकथित किसान आंदोलन को बहुत बड़ा जनआंदोलन साबित करने के लिए अंतराष्ट्रीय हस्तियों के ट्वीट को बढ़ चढ़कर पेश कर रहा है। लेकिन विपक्षी दलों को भी यह समझना चाहिए कि सरकार के नीतियों का विरोध करना लोकतान्त्रिक अधिकार है, लेकिन देश विरोधी ताकतों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन से परहेज करना चाहिए। क्योंकि जब देश है, तब राजनीतिक पार्टियां है। तभी लोकतन्त्र है, तभी हम सब हैं। देशहित सर्वोपरि होना चाहिए। भले हीं हम देश में मुद्दे को लेकर हमारी राय भिन्न हो सकती है, किन्तु देश की अस्मिता और अखंडता से समझौता स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए।

तमाम सबूतों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार को बड़ी संजीदगी एवं योजना बद्ध तरीके से इस तथाकथित आंदोलन को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। कुछ ऐसा योजना बनाना होगा जिससे अंतराष्ट्रीय साजिश नाकाम हो, और भविष्य में खतरा न हो। साजिश रचने की कोशिश कर रहे लोगों का समर्थन देने का काम जो लोग कर रहे हैं, उन्हे भी चिन्हित कर उन पर कड़ी कारवाई करने की जरूरत है।

ज्योति रंजन पाठक -औथर व कौलमनिस्ट

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