जागते रहो! स्लीपर सेल पूरी तरह मजबूत और सक्रिय है

चलिए एक उदाहरण से आलेख की शुरूआत करते हैं। उत्तराखंड चलते हैं। हाल ही में तीरथ सिंह रावत प्रदेश के नए नए मुख्यमंत्री बने हैं। मामला हाल में उनके एक मीडिया सलाहकार की नियुक्ति का है। पहले उस मीडिया सलाहकार की आनन-फानन में नियुक्ति की गई। मीडिया में खूब हो हल्ला हुआ। पार्टी के मातृ संगठन से जुड़े विभिन्न संगठनों में खूब शोर मचा कि तथाकथित किसी वामपंथ से प्रेरित व्यक्ति को मुख्यमंत्री का मीडिया सलाहकार जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त कर दिया गया। फिर उतने ही आनन फानन में नियुक्ति को रद्द किया गया। अब इस खबर का विश्लेषण कीजिए। पहले दूसरी बार लाइऩ का विश्लेषण करते हैं- आनन-फानन में मीडिया सलाहकार की नियुक्ति को रद्द किया गया। नियुक्त रद्द करने का श्रेय पार्टी से जुड़े कई संगठन, पार्टी के बौद्धिक संगठन और कुछ विधायक ले रहे हैं। और इसे अपनी जीत बताने का प्रयास कर रहे हैं कि देखिए, हमारा दबाव कि नियुक्त होने से पहले ही उस वामपंथिए की नियुक्ति को रद्द करवा दिया। मुख्यमंत्री पर दबाव बनाया गया। नियुक्ति को खारिज करवा दिया गया।

वे कौन लोग थे जिन्होंने उस व्यक्ति का नाम मीडिया सलाहकार के पद के लिए आगे बढ़ाया होगा।

अब पहली लाइन का विश्लेषण करते हैं। सोश्यल मीडिया के इस दौर में क्या कोई बात दबी और छिपी रह सकती है। क्या उत्तराखंड पार्टी संगठन और सरकार में बैठे लोगों को यह खबर ही नहीं थी कि जिस व्यक्ति को मुख्यमंत्री का मीडिया सलाहकार नियुक्त करवाने की कोशिश की जा रही थी उसका इतिहास क्या है। उसकी उठा-बैठक किन लोगों के बीच में है। क्या अपनी ही पार्टी के प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष को गाली देने वाले व्यक्ति को मुख्यमंत्री का मीडिया सलाहकार जैसे पद से सुशोभित किया जा सकता है। तो फिर वे कौन लोग थे जिन्होंने उस व्यक्ति का नाम मीडिया सलाहकार के पद के लिए आगे बढ़ाया होगा। इस आलेख की शुरूआत वैसे तो इसी लाइन से शुरू होनी चाहिए थी। लेकिन पृष्ठभूमि को जानना जरूरी था। फिर से वही सवाल कि आखिर वह कौन लोग हैं जो नहीं चाहते कि पार्टी के मातृ संगठन और अन्य आनुसांगिक संगठन से जुड़े बुद्धिजीवियों के आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए। पार्टी संगठन में ये स्लीपर सेल पूरी तरह सक्रिय और मजबूत हैं। स्लीपर सेल की लॉबी नीचे से ऊपर तक सक्रिय है। अपनी विचारधारा के लोगों को सरकार और संवैधानिक संगठनों में महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने में उनकी लॉबी हमेशा सक्रिय रहती है।

स्लीपर सेल की लॉबी इतनी सक्रिय और मजबूत है कि देश के प्रमुख वैचारिक केंद्रों में अभी तक इन लोगों का कब्जा जमा हुआ है और देश में देशविरोधी नरैटिव को चलाने में इन्हें महारत हासिल है

स्लीपर सेल की लॉबी इतनी सक्रिय और मजबूत है कि देश के प्रमुख वैचारिक केंद्रों में अभी तक इन लोगों का कब्जा जमा हुआ है और देश में देशविरोधी नरैटिव को चलाने में इन्हें महारत हासिल है। देश के तमाम कला, साहित्य, शिक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण संगठनों में अभी तक यह लॉबी पूरी मजबूती के साथ सक्रिय है और अपना एजेंडा चला रही है। एनसीईआरटी का हाल तो सबसे बुरा है। सोश्यल मीडिया पर आए दिन एनसीईआरटी की किताबों में से वामपंथी एजेंडे की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। किताबों के पन्नों को खोल खोल कर उनकी समाज और राष्ट्र विरोधी मानसिकता पर ट्रेंड किया जा रहा है। लेकिन नतीजा क्या निकला। सिफर। राष्ट्रवादी होने का दावा करने वाली सरकारें पिछले सात साल में भी देश के बच्चों को भी उनका असली इतिहास पढ़ाने की हिम्मत नहीं कर सकती, तो इससे समझा जा सकता है कि स्लीपर सेल कितनी भीतर तक घुसी हुई हैं। सवाल यह है कि ऐसा क्या वजह है कि स्लीपर सेल को इतना हौसला मिला हुआ है? वैसे तो बहुत सारा वक्त गुजर चुका है। लेकिन फिर भी जब जागों तब ही सवेरा। भीतर के स्लीपर सेल से अलर्ट होकर उन्हें उखाड़ फैंकिये।

Disqus Comments Loading...