टीका ही बचाव है

देश में कोरोना महामारी का दूसरा लहर कहर बरपा रहा है, लोग ज्यादा संख्या में संक्रमित हो रहे हैं और मौतें भी हो रही है, तो ऐसे में लोगो के मन में यह डर सता रहा है कि किस प्रकार इस संक्रमण बचा जाय और अपने आप को और परिवार को सुरक्षित किया जाय। हमने देखा है कि किस प्रकार पिछले साल चीन के वुहान शहर से निकली जानलेवा महामारी ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई है। लोग इस वायरस से बचने के लिए वैक्सीन का इंतजार कर रहे थे, लोग यह उम्मीद कर रहे थे किसी तरह इस महामारी के टीके निर्मित हो जाय, तो उसे लगवाकर बचा जा सकता है। भारत के वैज्ञानिकों ने लोगों और सरकार के उम्मीदों पर खरा उतरते हुए दो वैक्सीन बनाया, और वे दोनों वैक्सीन पूर्णतः सुरक्षित हैं। जब देश में कोरोना से हालात इतने खराब है, संक्रमितों की संख्या दिन–प्रतिदिन बढ़ रही है, तो ऐसे में टिकाकरण का विकल्प लोगों को अपने स्वस्थ्य के प्रति चिंता कम करने में मदद करेगी।

जब भारत में बने वैक्सीन को  भारत सरकार टीकाकरण के लिए अभियान चलाया, तब वैक्सीन पर विपक्षी पार्टियों के द्वारा खूब विरोध हुआ, वैक्सीन के बारे में यह तक कहा गया कि यह भाजपा का वैक्सीन है, हम नहीं लगाएंगे, यह कारगर नहीं है। अगर यह कारगर है, तो मोदी जी स्वयं क्यों नहीं लगवाते हैं? हालांकि प्रधानमंत्री ने सारे विपक्षी पार्टियों और देश की जनता को संदेश देते हुए स्वयं टिकाकरण करवाया। देश में टिकाकरण अभियान जनवरी में जब शुरू हुआ, तब संक्रमण के मामले और मौत का संख्या बहुत कम थी और वायरस कमजोर होता दिख रहा था। यही वजह था कि लोगों में टिकाकरण को लेकर उतना गंभीर नहीं दिख रहे थे। लेकिन जब बीते कुछ दिनों से संक्रमण बढ़ने लगा तो सरकार ने भी टीकाकरण की एज कैटेगरी को बढ़ा दिया है। पहले 45 वर्ष से ऊपर के को –मौबिलिटी वाले व्यक्तियों को ही टिकाकरण हो रहा था। लेकिन एक अप्रैल से 45 वर्ष से ऊपर का कोई व्यक्ति टीका लगवा सकता है। इनसबों के बीच प्रधानमंत्री ने बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए यह एलान किया है कि 1 मई से 18 वर्ष से ऊपर के आयु वाले कोई भी व्यक्ति टीका लगवा सकता है।

हालांकि अब राज्य सरकारें यह आरोप लगा रहीं है कि राज्य में वैक्सीन नहीं है, जितना आपूर्ति होनी चाहिए थी, उतनी नहीं मिल रही हैं। इनसब के बीच भारत सरकार के बीच का कहना है कि वैक्सीन की कोई कमी नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि वैक्सीन की बर्बादी भी हुई है, क्योंकि किसी भी योजना का लागू करना केंद्र सरकार के हाथ में है, वहीं उस योजना को सही ढंग से क्रियान्वित करना राज्यों की जिम्मेवारी है। अगर राज्य सरकार किसी ठोस रणनीति के तहत ऐसी योजन बनाए, जिसमें वैक्सीन न बर्बाद हो, क्योंकि जिस तरह के हालात कोरोना के दूसरी लहर में बनी है, उसमें टिकाकरण ही बचाव के रूप में सबसे उपयुक्त है।

हमारे टिकाकरण के काफी दिन हो गए हैं, लेकिन अभी भी लोग टीका लेने से बच रहे हैं। लोग डर रहे हैं, लोगों में यह अफवाह है कि टीका लेने के बाद मौत हो जाती है, जिसके कारण टीका नहीं लगवा रहे हैं। यह जरूरी नहीं कि टीके की वजह से ही मौत हो रही है, जैसे खबरों को प्रसारित किया जा रहा है, लोगों को बेतुका अफवाह से बचना चाहिए। मौत का कारण और भी कई हो सकते हैं। सरकार मौत के कारण को पता लगा रही है। मामूली साइडफेक्ट के डर से टीका नहीं लेना कहाँ तक सही है? भारत में बेनीफिट –रिस्क रेशियो में लाभ बहुत ज्यादा और खतरा बहुत ही कम है। टीका लगने के बाद यदि मामूली दुष्प्रभाव होता है, तो यह इस बात का संकेत है कि हमारा शरीर टीका लगने के बाद प्रतिक्रीया दे रहा है।

भारत में बने दोनों वैक्सीन का कोई मेजर साइडफेक्ट नहीं है। और लोगों को इस बीमारी को गंभीरता से लेते हुए अपनी बारी आने पर टिकाकरण जरूर करवाना चाहिए और स्वयं को इस महामारी के चपेट से बचाना चाहिए। साथ हीं राज्य सरकार टिकाकरण को गंभीरता से लेते हुए बिना वैक्सीन को बर्बाद किए एक ऐसी खाका तैयार करें, जिसमें राज्य में टिकाकरण सुगमता के साथ सफल हो सके।

ज्योति रंजन पाठक –औथर,कंटेन्ट राइटर व कौलमनिस्ट

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