प्रशांत किशोर लीक और लुटियन मीडिया की खामोशी, मोदी विरोधी मीडिया के ताबूत में एक और कील

नई दिल्ली- बंगाल चुनावों में ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के ओडियो लीक के बाद राजनीति से लेकर मीडिया में उथल पुथल है। मोदी की लोकप्रियता पर प्रशांत के कबूलनामे ने लुटियन मीडिया गैंग की पेशानी पर बल ला दिए हैं। विपक्ष और लुटियन मीडिया गैंग अब भी मोदी की लोकप्रियता का कारण नहीं समझ पा रहा है? या फिर समझना नहीं चाहता है। क्लब हाउस की इस चैट में मीडिया गैंग के कई नामी गिरामी चेहरे थे। हर कोई यह जानने के लिए उत्सुक था कि बड़े आर्थिक संकट के बाद भी मोदी के खिलाफ एंटीइन्कमबैंसी क्यों नहीं है। किसी की दिलचस्पी यह समझने में नहीं थी कि ममता के खिलाफ एंटीइन्कमबैंसी क्यों हैं।

लुटियन मीडिया की विश्वनीयता के ताबूत में एक और कील

क्लब हाउस चैट में शामिल ज्यादातर पत्रकार अपने मोदी विरोध के लिए जाने जाते हैं। कई तो लगातार मोदी सरकार के खिलाफ लिखते रहते हैं। क्लब हाउस की इस चैट के बाद, इस चैट में शामिल किसी भी पत्रकार ने कोई खबर नहीं लिखी। अब सवाल उठता है कि क्या इस खबर की कोई न्यूज वैल्यू नहीं थी। पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हर व्यक्ति इस बात से इत्तेफाक जरूर रखेगा कि इस खबर की न्यूज वैल्यू थी। लेकिन क्लब हाउस चैट में शामिल किसी भी पत्रकार ने इस खबर को करना जरूरी नहीं समझा। इस गैंग ने मोदी विरोध के चलते पत्रकारिता के सिद्धांतों को भी ताक पर रख दिया। क्लब हाउस चैट में शामिल पत्रकारों द्वारा  पत्रकारिता के सिद्धांतों के साथ समझौता यह दिखाता है कि इनके लिए मोदी विरोध ही अंतिम लक्ष्य है। यह बस किसी के हाथों की कठपुतली भर हैं। इनमें से कई पत्रकार कई प्लेटफॉर्म पर पत्रकारिता का ज्ञान पेलते हुए भी मिल जाएंगे। लेकिन जब खुद समझौता कर जाए सिद्धांतों से तो फिर यह ज्ञान बेमानी है।

प्रशांत किशोर की स्वीकारोक्ति बहुत कुछ कहती है

प्रशांत किशोर इस चैट में स्वीकार करते हैं कि बंगाल में मोदी की लोकप्रियता है। वो और ममता बनर्जी समानरूप से लोकप्रिय है। ध्रुवीकरण भी है। हिंदी भाषी वोट बीजेपी का बेस है। 27 प्रतिशत अनुसूचित जाति में भी मोदी की लोकप्रियता है। अब सवाल उठते हैं कि क्या ध्रुवीकरण नहीं होना चाहिए?  छद्म सेकुलर और लेफ्ट लिब्रल्स बहुसंख्यक समाज से तो पंथनिरपेक्ष होने की उम्मीद करते रहे हैं। लेकिन कभी उन पर सवाल नहीं उठा पाए हैं जो लगातार देश में अपीजमेंट की राजनीति को बढ़ावा देते रहे हैं। अभी तक देश में रूल्स कर चुकी किसी भी पार्टी ने सामने आकर कभी इस चीज के लिए माफी नहीं मांगी है कि वो जो अपीजमेंट की पॉलिटिक्स कर रहे थे वो गलत थी। ये बीजेपी की द्वारा की जा रही राजनीति का ही प्रभाव है कि ममता बनर्जी मंच से चंडीपाठ करती हैं और राहुल गांंधी हर चुनाव में मंदिर मंदिर घूम रहे होते हैं। लेकिन ये इन पार्टियों का वास्तविक चरित्र नहीं है।  इन छद्म पंथनिरपेक्ष यह जो चोला पहना है वो बस वोटों के लिए हैं और इनके चरित्र से मेल नहीं खाता है।

भारत उदय हो रहा है

दरअसल अब भारत उदय हो रहा है। भारत का मध्यमवर्ग अब हर किसी से सवाल करता है। सवाल उन कथित लुटियन मीडिया गैंग पत्रकारों से भी हो रहे हैं जो कभी मलाई काटते रहे हैं। अब वो पत्रकार इस मध्यमवर्ग को कभी व्हाट्स एप्प यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट घोषित करके अपने पूर्व कर्मों को सही ठहराने की कोशिश करते हैं। यह मध्यमवर्ग अपनी भाषा में बात करता है। लताड़ लगाता है। अंग्रेजीदां लुटियन मीडिया को यह अच्धा नहीं लगता है इसलिए इन्हें मोदी का भक्त करार देने की नाकाम कोशिश की जाती है। मोदी के सपोर्ट बेस में सबसे ज्यादा सांइस स्टूडेंट खड़े हैं। उनका दिगाम भारत के मनगढंत इतिहास से दूषित नहीं हुआ है। क्यों कि रोमिला थापर और इरफान हबीब के मनगढंत इतिहास को इस जनरेशन नहीं पढ़ा है। और कमाल की बात यह है कि सांइस में आप हेरफेर नहीं कर सकते हैं इतिहास की तरह। इनके लिए अकबर महान नहीं है। राणा प्रताप महान हैं। इनके लिए वो भारत के बीर महान है जो मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़े भारत की संस्कृति को बचाने के लिए। लेकिन लुटियन मीडिया कभी यह नहीं समझ पाएगा। कि जिसको ध्रुवीकरण बोला जा रहा है। वो भारत के मध्यमवर्ग की भारत और उसकी स्थानीयता को पहचान दिलाने की लड़ाई है और यह लड़ाई सोशल मीडिया से लेकर अब हर जगह लड़ी जा रही है। इसलिए लुटियन मीडिया को यह पहचानने की जरूरत है कि भारत उदय हो रहा है। भारत अब इंडिया के हाथों से निकलकर भारत के हाथों में आ गया है। इसलिए लुटियन मीडिया इसको जितनी जल्दी भांप ले अच्छा है। नहीं तो सिर्फ भारत विरोधियों का गैंग बनके रह जाओगे।

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