‘परीक्षा पर चर्चा’ से दूर होगा तनाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुधवार को ‘परीक्षा पर चर्चा‘ कार्यक्रम के तहत वीडियो कान्फ्रेंस के जरिये छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों से संवाद किया। संवाद के दौरान पीएम ने छात्रों से कहा कि आपको भले कुछ विषय मुश्किल लगते हों, ये आपके जीवन में कोई कमी नहीं है। आप बस यह ध्यान रखिए कि मुश्किल लगने वाले विषयों की पढ़ाई से दूर मत भागिए। पीएम ने यह भी कहा कि आप जो पढ़ते हैं, वो आपके जीवन की सफलता, विफलता का पैमाना सिर्फ यही नहीं हो सकता। आप जो जीवन में करेंगे, वो आपकी सफलता और असफलता को तय करेंगे। आज मैं आपको एक बड़े एक्जाम के लिए तैयार करना चाहूँगा। ये बड़ा एक्जाम है, जिसमें शत–प्रतिशत मार्क लेकर पास होना ही है। यह है अपने भारत को आत्मनिर्भर बनाना। बता दें की प्रधान मंत्री मोदी वर्ष 2018 से परीक्षा से पहले छात्रों से चर्चा करते रहे हैं, जिससे परीक्षा के तनाव को दूर करने में मदद मिलती है।

प्रधानमंत्री के द्वारा परीक्षा से पहले छात्रों के साथ बातचीत बहुत ही सराहनीय कदम है। हम अक्सर देखते हैं कि किस तरह परीक्षा के समय आते ही छात्र बहुत ही तनाव में हो जाते हैं। उन्हे परीक्षा में फेल होने का डर सताने लगता है। उन्हे अच्छे नंबर से पास करने की उम्मीद और आशा अवसाद में होने पर मजबूर कर देता है, क्योंकि उन्हें अपने परिवार वाले के उम्मीद पर खरा उतरने का दबाव होता है। उन्हे इस कदर परीक्षा में पास होने का दबाव बनाया जाता है कि वे समझते हैं कि अगर मैं परीक्षा में अच्छे नंबर से पास नहीं होंगे, तो मेरी जीवन बेकार हो जाएगी। यह भी सत्य है कि बच्चों पर दबाव कारण अकेला परिवार नहीं होता है। इन सबका ज़िम्मेवार कहीं न कहीं ,किसी न किसी रूप में समाज भी होता है। हम समाज को देखकर अपने बच्चों पर भी अनावश्यक दबाव बनाते हैं कि फलां व्यक्ति का बच्चा इतना परसेंट से पास हो गया उसे बहुत अच्छी कौलेज में एडमिशन मिल गया है। इसी तरह हम अपने बच्चों से उम्मीद करते हैं ऑर बच्चे पर प्रेशर देते हैं ऑर वह बच्चा दबाव को झेल नहीं पाता है ऑर परीक्षा में फेल होने पर वह आत्महत्या तक कर लेता है।

हम यह नहीं कह रहे हैं कि हम समाज के साथ नहीं चले, उसके तौर तरीके को नहीं अपनाएं। हमें समाज में रहना है क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। हम समाज के बिना अपने आप को कल्पना भी नहीं कर सकते हैं लेकिन समाज के सभी बच्चे एक जैसे तो नहीं होते हैं न और एक जैसे होने भी नहीं चाहिए। सभी बच्चे अलग होते है, उनमें अलग प्रकार की खूबियाँ होती है। कोई पढ़ाई में तेज होता है, तो कोई खेल में, तो कोई संगीत में, तो कोई कलाकारी में। माता पिता और समाज को यह समझना पड़ेगा कि परीक्षा का अंक किसी भी बच्चे का भविष्य तय नहीं कर सकता है। और मार्क्स उसकी काबिलियत को प्रदर्शित करने में सक्षम नहीं है। हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण हैं कि जिनके परीक्षा में बहुत कम अंक मिले, लेकिन जीवन में बहुत बड़ा काम किया है। महान वैज्ञानिक न्यूटन को कभी भी 30 प्रतिशत से ज्यादा मार्क्स नहीं आए हैं। जीवन की काबिलियत को मापने का पैमाना मार्क्स नहीं हो सकते हैं। इसलिए हमें यह धारणा को बदलना होगा और बच्चों पर अनावश्यक परीक्षा के तनाव को दूर करने में सहायता करनी होगी।

‘परीक्षा पर चर्चा’ कार्यक्रम के माध्यम से पीएम मोदी ने छात्रों को तनाव को कम करने की सलाह देते हुए यह कहा कि समस्या तब होती है जब हम एक्जाम को ही जैसे जीवन के सपनों का अंत मान लेते हैं, जीवन-मरण का प्रश्न बना देते हैं। एक्जाम जीवन को गढ़ने का एक अवसर है, एक मौका है उसे उसी रूप में लेना चाहिए। हमें अपने आप को कसौटी पर कसने के मौके खोजते रहना चाहिए, ताकि हम और अच्छा कर सकें। हमें भागना नहीं चाहिए। छात्रों के साथ इस संवाद कार्यक्रम प्रधान मंत्री मोदी का बहुत ही सार्थक पूर्ण प्रयास है, जिससे परीक्षा देने वाले छात्र के मन में अनावश्यक डर को दूर करने में मदद मिलेगी ऑर भविष्य में तमाम कठिनाइयों से लड़ने में सहायक सिद्ध होगी।

ज्योति रंजन पाठक -औथर –‘चंचला ‘ (उपन्यास )

Disqus Comments Loading...