राजनीतिक लाभ लेने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी संस्थान विद्या भारती की कट्टरपंथियों से तुलना करना अशोभनीय

मनुष्य के जीवन मे सबसे बड़ी पूँजी है शिक्षा. और मनुष्य बचपन से लेकर जब तक बड़ा होता है तब तक शिक्षा ही प्राप्त करता है। किन्तु देश में शिक्षा के नाम पर राजनीति करना यह आमचलन हो गया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विद्या भारती से जुड़े स्कूलों की तुलना पाकिस्तानी कट्टरपंथी मदरसों से करना कतई सोभनीय नही है. राजनीतिक लड़ाई स्वाभाविक है दरअसल आरएसएस की अलग ही विचारधारा है, जिस विचारधारा की पार्टी भाजपा केंद्र में है. लेकिन सवाल है कि इस विचारधारा से जुड़े स्कूलों की तुलना पाकिस्तान के चरमपंथी मदरसों से करना उचित है? चंद सेकेंड की इस टिप्पणी में करीब 95 साल पुरानी देश की राष्ट्रवादी संस्था के भूत-भविष्य और वर्तमान को कठघरे में खड़ा कर दिया. आरोप है कि अपने स्कूलों के जरिए देश की शिक्षा व्यवस्था पर संघ कब्जा कर रहा है.

पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तानी मदरसों में सिर्फ और सिर्फ नफरत फैलाने के लिए जिहादी पढ़ाई होती है, जिससे आतंकी पैदा होते हैं. आज की तारीख में पूरा पाकिस्तान आतंकी देश बन चुका है. लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या संघ के विद्या भारती से जुड़े स्कूलों और चरमपंथी मदरसों में कोई फर्क नहीं है? आखिर देश में विद्या भारती से जुड़े स्कूलों पर आतंक के कब-कब आरोप लगे हैं? या फिर संघ की विचारधारा के साथ पढ़ने वाले छात्र कभी आतंक में लिप्त पाए गए हैं? ये ऐसे सवाल हैं. जिनका जवाब किसी के पास भी ना हो.

संघ के विद्या भारती से जुड़े स्कूलों को निशाने पर लिया है. जिसके दायरे में 20 हजार से ज्यादा स्कूल आते हैं, जहां लाखों छात्र पढ़ते हैं. इसीलिए ये फिक्र बड़ी है. आज देश के लिए सच जानना और भी जरूरी है कि विद्या भारती के स्कूलों में होता क्या है. दरअसल, संघ सीधे तौर पर कोई स्कूल नहीं चलाता. संघ के स्वयंसेवकों की संस्थाओं, विद्या भारती और समर्थ शिक्षा समिति के दायरे में 25,000 से ज्यादा स्कूल चलते हैं. पहले सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना 1952 में हुई थी. तब से अबतक पिछले 68 वर्षों में इन स्कूलों में लाखों छात्र ने पढ़ाई की है. लेकिन उनपर कभी कट्टरपंथी या फिर चरमपंथी होने के आरोप नहीं लगे. जबकि पाकिस्तानी मदरसों की शिक्षा प्रणाली आज भी पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है. विद्या भारती की वेबसाइट के अनुसार, उसका मकसद ऐसा ‘नैशनल एजुकेशन सिस्‍टम तैयार करना है जिससे युवा पुरुषों और महिलाओं की ऐसी पीढ़ी बन सके जो हिंदुत्‍व के प्रति समर्पित हो और देशभक्ति से ओत-प्रोत हो।

शारीरिक, मानसिक और आध्‍यात्मिक रूप से विकसित हो और जीवन की चुनौतियों से निपटने में सक्षम हो।” इसमे देखा जाए तो क्या गलत है। पूरे देश में कश्मीर से कन्याकुमारी और राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक विद्या भारती की ओर से विद्यालय चलाए जा रहे हैं। इनमें 35 लाख से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं। इन स्कूलों में मुस्लिम ओर ईसाई बच्चे भी हैं। विद्या भारती के साथ-साथ अन्य समविचारी संगठन स्कूल चलाते हैं। इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे देश के हर क्षेत्र में अपने परिवार और स्कूल का नाम ऊंचा किया है ,चाहे राजनीतिक क्षेत्र हो, प्रशासनिक क्षेत्र या खेल का क्षेत्र हो, इसके साथ ही दूरस्थ पहाड़ी इलाकों, सीमावर्ती क्षेत्रों, सुदूर ग्रामीण इलाकों व जंगलों के बीच स्थित गांवों में अनौपचारिक विद्यालय और संस्कार केंद्र चलाए जा रहे हैं। यहां बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है।

समविचारी संगठन एकल विद्यालय और वनवासी कल्याण केंद्र की ओर से भी पूरे देश में स्कूल चलाए जा रहे हैं। एकल विद्यालय की ओर से समाज के सहयोग से देश के सुदूर गांवों में चलने वाले इन विद्यालयों में वैसे बच्चे पढ़ते हैं, जो किन्हीं कारणों से सरकारी या निजी स्कूलों में नहीं जा पाते हैं। शिशु मंदिरों एंव विद्या भारती स्कूलों की तुलना पाकिस्तान के मदरसों से करके उन लाखों माता-पिता का अपमान किया है, जो अपने बच्चों को शिक्षा और संस्कार के लिए शिशु मंदिर में भेजते हैं. राजनीतिक लाभ के लिए न केवल लाखों बच्चों, अपितु हजारों शिक्षकों की तुलना पाकिस्तानी कट्टरपंथियों से करना कतई सही नही है।

विद्या भारती अपने स्‍कूलों में बच्चों व एक खास तरह की दुनिया दिखाता है. वो दुनिया जहां अपने पूर्वजों और संस्कृति का अपमान नहीं, बल्कि उन पर गर्व करना सिखाया जाता है. रॉक और पॉप म्यूजिक नहीं, संस्कारों की दुनिया. अपने माता-पिता और धरती मां को प्रणाम करना सिखाया जाता है. एक ऐसी दुनिया जहां राष्ट्र के लिए सर्वस्व समर्पण करने की प्रेरणा दी जाती है. बात करे कोरोना काल की तो टीका टिप्पणी करने वाले राजनेताओं को पहले लॉकडाउन ओर कोरोना काल मे विद्या भारती द्वारा किए गए कार्य को देख लेना चाहिए ।कोरोना काल में विद्या भारती के विद्यालयों (छात्र, शिक्षक, प्रबंधन) द्वारा मध्यभारत प्रान्त में किये कार्यों की जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए.

कोरोना के शुरुआत में कोई भी सरकार व्यवस्थाओं के लिए तैयार नहीं थी,लेकिन विद्याभारती समाज की पीड़ा में साथी था. विद्या भारती ने मध्यभारत प्रांत के विद्यालय परिसरों को उपयोग के लिए प्रशासन को सौंप दिए थे।

लॉकडाउन में ही देश ने एक और संकट देखा, जब लाखों की संख्या में प्रवासी श्रमिक अपने घरों की तरफ लौटने लगे तब विद्याभारती ने अपनी बसों से प्रवासी श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुचाया. अपने भवनों को विश्राम गृह में बदल दिया. कितने ही लोगों को भोजन करवाया। विद्या भारती अपने स्कूलों में ऐसी दुनिया दिखाता है, जिसमें मानव, मानव की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहे. कोरोना काल में जब अचानक लाखों की संख्या में मास्क की आवश्यकता पड़ी तो संस्था से जुड़ी शिक्षिकाएं अपने घरों में बैठकर निर्धन असहाय नागरिकों के लिए मास्क बनाने का कार्य करने लगीं. कुछ अन्य ने मास्कों को सेवा बस्तियों में जाकर नागरिकों के मध्य वितरित करने की भूमिका अदा की.

कोरोना वायरस के कारण जब देश भर में लॉकडाउन लगाया गया तो एक सबसे बड़ी चिंता तो सामने आई कि बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी? शहरों में तो डिजिटल माध्यमों से पढ़ाई शुरू हो गयी, लेकिन वनवासी, ग्रामीण अंचलों का क्या? ऐसी स्थिति में लोग जब संक्रमण के डर से अपने घरों से नहीं निकल रहे थे, तब विद्या भारती के शिक्षण संस्थानों में कार्यरत हजारों आचार्यों ने पूरे प्रांत भर में मोहल्ला पाठशाला के माध्यम से हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाया।

नफरत ओर राजनीति की परत इतनी मोटी हो गयी है कि उन्हें इन सेवा भावी छात्रों और आचार्य/सेविकाओं में उन्हें आतंकवादी दिखाई दे रहे हैं. या हो सकता है परेशानी की वजह कुछ और हो, किन्तु राजनीतिक लाभ लेने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अनावश्यक टिप्पणी करने से बचना चाहिए।

(यह लेखक के निजी विचार है)
पवन सारस्वत मुकलावा
कृषि एंव स्वंतत्र लेखक
सदस्य लेखक, मरुभूमि राइटर्स फोरम

पवन सारस्वत मुकलावा: कृषि एंव स्वंतत्र लेखक , राष्ट्रवादी ,
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