होलिका दहन से बैक्टीरिया और वायरस खत्म होते हैं

मौसम ठंडे से गर्म होने लगता है। ऐसे में शरीर में थकान और सुस्ती महसूस होने लगती है। और शरीर आलसी हो जाता है। अलसपन को भगाने के लिए लोग फाग के इस मौसम में धूमधाम से होली मनाते हैं और होली की मस्ती में गाना-बजाना और जोर से बोलने से सुस्ती दूर होती है।

होलिका दहन से बैक्टीरिया और वायरस खत्म होते हैं।

इस बार होली के समय कोरोना बाइरस के कारण  लाकडाउन लगा हुआ है। ऐसे में कई जगह की सरकारे सामूहिक  होली खेलने तथा जलाने  में प्रतिबंध लगा रही हैं। कोरोना महामारी के चलते कुछ हद तक प्रतिबंध लगाना अनुचित नही होगा, लेकिन सरकार को होली मनाने के पीछे की बैज्ञनिकता और फायदा को समझना चाहिए और होलिका दहन करने बालों की सहायता करनी चाहिए।

क्योंकि जब होलिका जलाई जाती है तो उसका तापमान (150-170 डिग्री फॉरेनहाइट) तक बढ़ जाता है। परंपरा के अनुसार जब लोग जलती होलिका में लौंग, इलायची, गरी, आदि डालकर परिक्रमा करते हैं तो होलिका से निकलने वाला ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है और इस प्रकार यह शरीर तथा पर्यावरण को स्वच्छता प्रदान करता है।

प्राकृतिक रंग शरीर में स्फूर्ति‍ लाते हैं-

एक साइंटिफिक थ्योरी कहती है कि हमारा शरीर अलग-अलग रंगों से बना हुआ है और इस थ्योरी के मुताबिक मॉर्डन लाइफस्टाइल से हमारे शरीर में कई तरह के रंगों की कमी हो जाती है। तो इस कमी को दूर करने के लिये रंगों की होली खेलना शरीर के लिए फायदेमंद होता है लेकिन हमे इस बात का ध्यान जरूर देना होगा कि हमें बाजार वाले केमिकल युक्त रंग और गुलाल के इस्तेमाल से बचना होगा क्योंकि ये रंग गुलाल नुकसानदायक होते हैं। इन बाजार वाले केमिकल युक्त रंगो के बजाये फूलों का रंग तथा हल्दी का रंग बनाकर उपयोग करने पर ही लाभदायक होगा।

होली के त्योहार  को रंगों का त्योहार कहा जाता है ।हमारे देश में तथा हमारे सनातन धर्म में विविध प्रकार के त्योहारों को मनाये जाने की प्रथा बहुत पहले से रही है।

होली पर्व मनाने के पीछे भले ही पौराणिक कथाओं के अनुसार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हो, लेकिन इसे मनाने का वैज्ञानिक महत्व भी है। इनको जानना बहुत आवश्यक है। तो चलिये जानते हैं होली त्योहार मनाये जाने के पीछे का महत्तव और गर्व करे अपने सनातन धर्म पर। वैसे तो हमारे सनातन परम्परा व मान्यतायें में इतनी बैज्ञानिकता है कि इनमे किसी भी प्रकार के बैज्ञानिक प्रमाण की आवश्यकता नहीं है ।लेकिन फिर भी यदि बैज्ञानिको की मानें तो होली का त्योहार ऐसे समय में मनाया जाता है जब मौसम अपना कलेवर बदलता है।

मौसम ठंडे से गर्म होने लगता है। ऐसे में शरीर में थकान और सुस्ती महसूस होने लगती है। और शरीर आलसी हो जाता है। अलसपन को भगाने के लिए लोग फाग के इस मौसम में धूमधाम से होली मनाते हैं और होली की मस्ती में गाना-बजाना और जोर से बोलने से सुस्ती दूर होती है।

होलिका दहन से बैक्टीरिया खत्म होते हैं।

इस बार होली के समय कोरोना बाइरस के कारण  लाकडाउन लगा हुआ है ।ऐसे में कई जगह की सरकारे सामूहिक  होली खेलने तथा जलाने  में प्रतिबंध लगा रही हैं। कोरोना महामारी के चलते कुछ हद तक प्रतिबंध लगाना अनुचित नही होगा, लेकिन सरकार को होली मनाने के  पीछे की बैज्ञनिकता और फायदा  को समझना चाहिए  और होलिका दहन करने बालों की सहायता करनी चाहिए।

क्योंकि जब होलिका जलाई जाती है तो उसका तापमान (150-170 डिग्री फॉरेनहाइट) तक बढ़ जाता है। परंपरा के अनुसार जब लोग जलती होलिका में लौंग, इलायची, गरी, आदि डालकर परिक्रमा करते हैं तो होलिका से निकलने वाला ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है और इस प्रकार यह शरीर तथा पर्यावरण को स्वच्छता प्रदान करता है।

प्राकृतिक रंग शरीर में स्फूर्ति‍ लाते हैं-

एक साइंटिफिक थ्योरी कहती है कि हमारा शरीर अलग-अलग रंगों से बना हुआ है और इस थ्योरी के मुताबिक मॉर्डन लाइफस्टाइल से हमारे शरीर में कई तरह के रंगों की कमी हो जाती है। तो इस कमी को दूर करने के लिये रंगों की होली खेलना शरीर के लिए फायदेमंद होता है लेकिन हमे इस बात का ध्यान जरूर देना होगा कि हमें बाजार वाले केमिकल युक्त रंग और गुलाल के इस्तेमाल से बचना होगा क्योंकि ये रंग गुलाल नुकसानदायक होते हैं। इन बाजार वाले केमिकल युक्त रंगो के बजाये फूलों का रंग तथा हल्दी का रंग बनाकर उपयोग करने पर ही लाभदायक होगा ।।

Disqus Comments Loading...