धार्मिक भावनाएं और अभिव्यक्ति की आज़ादी

भारतीय समाज एक भावना प्रधान समाज है जिसमे धर्म एक अहम भूमिका निभाता है। हिन्दू समाज अपने ठाकुर जी की सेवा में जहां अपने आपको भूल जाता है, बिना भोग लगाए अन्न जल नहीं लेता वहीं मुस्लिम रमजान में यही सब करते हैं। एक समाज जिसे अपने बेटे के रोजगार के स्तर से ज्यादा लोग क्या कहेंगे जैसे जुमले ज्यादा प्रभावित करते हैं। एक समाज जिसमें वोट डालने के लिए नेता जमीनी स्तर पर नहीं  लेकिन बाबाजी और मौलानाओं से सेटिंग कर लेने में यकीन रखते हैं। फुरफुरा शरीफ के पीरज़ादा सिद्दीकी के दर पर माथा टेकते ओवैसी इसका सबसे सटीक उदाहरण है। 

दूसरी ओर इसका एक पहलू ये भी है कि गाहेबगाहे कुछ शरारती तत्व जो समाज में विघटन चाहते हैं, इस भावना को छेड़ जाते हैं। पेंटर हुसैन हो या ताजातरीन केस ऑफ़ मुनव्वर फारुकी, ये सेलेक्टिवली सेक्युलर लोग हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करने में खुद को कूल डूड समझ पैसा कमाते हैं। लेकिन इस बार जिस प्रकार इस फारुकी को रिएक्शन मिला है, ये बहुत पहले होना जरुरी था। राजू श्रीवास्तव, गोविंदा और जॉनी लीवर जैसे बेहतरीन कॉमेडियन कलाकारों के देश में क्या किसी ऐसे विदूषक की जरुरत है, जिसे हास्य के आवरण में आपकी सभ्यता, आपके देश, आपके ईश्वर के अपमान में ही सबाब मिलता है? ये पूछे जाने की जरुरत है, वरना खुद को विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता मानने वाले इस देश में अब कोई भी हास्य के नाम पर गाली गलौच करके, किसी समाज की भावना भड़काकर समाज में वैमनस्य बढ़ाने का एजेंडा चलाने लगेगा। कोई भी भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे कुछ हजार में लगाने लगेगा। 

अभिव्यक्ति की आज़ादी एक बहुत वृहद विषय है और इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। संविधान यदि मुझे कुछ अधिकार देता है तो मुझसे मेरे कर्तव्य निर्वहन पर प्रश्न भी कर सकता है। इस महान देश का नेतृत्व सौभाग्य से ऐसे कर्मयोगी के हाथ में है जो अपने लिए गालियों को भी सहर्ष स्वीकार करता है, लेकिन क्या एक सभ्य समाज इस तथ्य को स्वीकार कर सकता है कि उनके राष्ट्र प्रमुख को चंद टकों में किराये पर उपलब्ध हो सकने वाले कुकुरमुत्ते गालियां दें? अभिव्यक्ति की आज़ादी में नग्न पेंटिंग बनाने वाला एम एफ हुसैन पद्मा पुरस्कार पाता है। यही पेंटर भारत माता की नग्न पेंटिंग बना देश से भाग कतर में स्वैच्छिक निर्वासन में चला जाता है और एक कलाकार त्रिवेदी संसद पर बनाये अपने चित्र के लिए देशद्रोह में गिरफ्तार हो जाते हैं। अब ये सरकारों पर निर्भर करता है कि कौन सच में अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर आपके देवी देवता को गाली दे बच सकता है और कौन कानून के शिकंजे में फस सकता है। 

कला और कॉमेडी के नाम पर जो भद्दा मजाक ये विदूषक आपके साथ करते हैं, इन्हें सही गलत का फर्क बताया जाना चाहिए। एक सन्देश प्रसारित हो कि हम भी अपनी आस्था के साथ मजाक नहीं सहेंगे। मुनव्वर फारुकी जैसों का एजेंडा बड़ा साफ होता है, बहुसंख्यक आबादी को टारगेट करो, देश विरोधी ताकतों के हाथों “अवेलेबल ऑन रेंट” रहो और कन्हैया कुमार टाइप चुनाव लड़ लो। लालू टाइप लोगों का समर्थन राजनीती में और स्वरा भास्कर टाइप बुजुर्ग फेल्ड सो कॉल्ड एक्ट्रेसेस का साथ सिल्वर स्क्रीन पर मिल जायेगा, लगे हाथ हार्दिक पटेल की तरह गांधियो से स्टेट चीफ का तमगा मिल जाये तो करोड़ों अंदर और मजे। लाइफ में और चाहिए ही क्या। 

लगे हाथ हार्दिक पटेल की प्रॉपर्टी की लिस्ट भी गूगल कीजिये, पटेल आंदोलन से पहले और बाद में क्या फर्क आया, अभिव्यक्ति की आज़ादी नाम के टेंट के अंदर चलने वाला गेम समझ आ जायेगा। 

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