देश रंगीला

जहां जीवित को अपने को जीवित साबित करने में वर्षो लग जाये, जहां प्रतिभा को नकारते हुए शून्य अंक वाले नौकरी पा जाएं, जहाँ वर्षो लग जाये किसी सच को सच साबित करने में, ऐसा देश है हमारा।

एक ऐसा देश जहां नज़रिया मायने नहीं रखता, मायने रखता है तो सिर्फ राजनीतिक दलों की निष्ठा। हम इन दलों के प्रति इतने निष्ठावान हैं कि हमें देखकर तो भेड़ भी शर्मा जाती है। हम निष्ठा के चक्कर में सच झूठ, मान अपमान, रिश्ते नाते सब भूल जाते हैं। हमारी निष्ठा इतनी पक्की है कि हमारे आंख के सामने राजनीतिक दल हमे धोखा देते हैं लेकिन हम इसे सिर्फ आंखों का भरम ही मानते हैं।

अब बात करते हैं हमारे देश के मीडिया चैनलों की। यहाँ सच नहीं बल्कि टी आर पी बिकती है साहब। यदि गलती से आपने किसी दिखाई हुई खबर को सच माना तो साहब कुछ ही पलों में आपको अपनी राय को गिरगिट की तरह बदलना पड़ेगा क्योंकि जो सच वो चैनल दिखा रहा होगा उसका कुछ दूसरा रूप आप किसी अन्य चैनल पर देख रहे होंगे। अब ये न कहना आप की सच कैसे बदल सकता है तो इसका जबाब सिर्फ एक ही है खर्च करो यार। जिस देश मे घर बैठे संसद भवन और ताजमहल को बेचा जा सकता है वहाँ एक छोटे से सच की क्या औकात। बस ताकत आपकी जेब में होनी चाहिए क्योंकि हमारे देश में नियम कानून सिर्फ बिना पैसे वालों के लिए है।

अब एक वर्ग जो इस देश में राज करता है बिना उसकी कहानी के ये मुद्दा खत्म ही नहीं हो सकता। असल में वो भी राजा नही है बस उसे राजगद्दी दे दी जाती है पर राजकाज चलाते उसके मंत्रिपरिषद वाले ही हैं। राजा तो राजगद्दी पाते ही राजसुख में तल्लीन हो जाता है। वो इतना ऊपर हो जाता है कि प्रजा की आंख तक नही पहुंच सकती है। प्रजा तो उन राजा के कर्मचारियों के ही चरणपादुका को देखकर संतुष्ट हो लेती है।

तो इस विषय का सार सिर्फ यही है कि आप एक ऐसे देश में रहते हैं जहां नियम कानून के विषय में सोचना नही। बस अपने अनुसार चलते रहो। खुश रहो और अपने को राजनैतिक दलों का भेड़ मानते हुए बस निष्ठावान बने रहो।

पवन

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