ब्लैक लाइव्स मैटर तो “व्हाइट लाइव्स मैटर” क्यों नहीं?

25 मई 2020 को जब एक अपराधी जॉर्ज फ्लायड की पुलिस कार्यवाही के दौरान दुर्घटनावश मौत हो गयी तो, समाज के सभी सफेदपोश लिबरल्स, वामपंथीयों, छद्मधर्मनिरपेछता वादीयों ने इसे नस्लवाद का प्रहार करार दिया और इसके विरोध के नाम पर संयुक्त राज्य अमेरिका के 40 शहरों में लूटपाट, आगाजनी, दंगो, हत्या, बलात्कार का वो ताडंव खेला कि पूरी दुनिया सिहर उठी।

ब्लैक लाइव्स मैटर के नाम पर हजारों करोड़ की सरकारी व गैर सरकारी संपत्तियों के नुकसान पहुँचाया गया। कई व्हाइट लाइव्स को समाप्त कर दिया गया पर ये सफेदपोश मार्क जूकरबर्ग या ट्वीटर वाले, या ईंस्टाग्राम वाले का अन्य सोशल मिडीया के अरबपतियों के मुँह से छोड़िये शरीर के किसी अन्य अंग से भी आवाज नहीं आयी।

ब्लैक लाइव्स मैटर नामक आंदोलन के नाम पर ना जाने कितने मासूम पुलिस अधिकारीयों पर जानलेवा हमले किये गये,  क्योंकि वो गोरे थे पर इन फेसबुक, ट्वीटर व ईंस्टाग्राम वाले निम्न कोटी की निकृष्ट मानसिकता वाले मनोरोगी मालिकों का माथे पर जरा भी शिकन नहीं आयी, ये ढपोरसंखी खिस निपोरते इस आंदोलन में अमेरिका को ही नहीं अपितु यूरोप के कई देशों (जिसमें ब्रिटेन, जर्मनी व स्पेन इत्यादि सम्मिलित हैं) में इस भयानकता को फैलते हुए देखते रहे।

ब्लैक लाइव्स मैटर की आड़ में जब इन्ही ढ़पोरसंखियों नें राष्ट्रपति भवन अर्थात व्हाइट हाउस पर आक्रमण करने की पूरी योजना बना ली थी तब किसी के मुँह से और ना तशरीफ से इसके विरोध में आवाज निकली। वो तो वहाँ की पुलिस ने कमान संभाल लिया वरना ये निम्न कोटी की निकृष्ट मानसिकता वाले मनोरोगी शायद व्हाइट हाउस को खत्म कर चुके होते।

दुनिया के जितने लुटियन गैंग, खान गैंग, लिबरल गैंग या सेक्युलर गैंग के सफेदपोश ढपोरसंखी थे सभी ने एक साथ अमेरिका के सबसे महान व क्रांतिकारी राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रंप के विरूद्ध षड़यंत्र रचना शुरू कर दिया। पैसे और रूतबे का खेल खेला गया चुनाव में जमकर धाँधली की गयी और रिपब्लिकन पार्टी के जुझारू कार्यकर्ता और अमेरिका के महानतम राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रंप की जीत को हार में बदल दिया गया।

राष्ट्रवादी अमेरिकीयों के सपने को चुनाव में धाँधली के जरिये चकनाचूर कर देने वाले उन सफेदपोशों नें ब्लैक लाइव्स मैटर के नाम पर हुए दंगो को सही ठहराने की कोशिश की पर वही लोग नीचता की पराकाष्ठा को पार करते हुए अमेरिकी संसद पर हुए राष्ट्रवादीयों को शांतिपूर्ण आंदोलन को घरेलू आतंकवाद की उपमा दे रहे हैं।

6 जनवरी की भाषण में अमेरिका के सबसे महान राष्ट्रवादी राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ भी ऐसा नहीं कहा जिसे भडकाऊ कहा जा सके।उन्होंनें केवल अपनी भावनायें व्यक्त की और उन भावनावों में कुछ भी ऐसा नहीं कहा जिसे भड़काने वाला या दुष्प्रेरित करने वाला माना जा सके!

संसद के सामने ये रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक केवल शांतिपूर्ण ढंग से अपना विरोध प्रदर्शन करना चाहते थे परंतु  डैमोक्रेटिक ढ़पोरसंखियों ने फेसबुक वाले सफेदपोशों के साथ मिलकर उन्हें उकसाया, उनकी भावनाओं का मजाक बनाया, उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका का दुश्मन साबित करने की कोशिश की और उनके सर्वप्रिय व लोकप्रिय नेता श्री डोनाल्ड ट्रंप के बारे में अभद्र व असामाजिक टिप्पणियां की जिसके कारण उनको हृदयाघात सा हुआ और उन्होंने संसद में घुसने की कोशिश की….पर जिन पुलिस वाले ब्लैक लाइव्स मैटर की आड़ में पूरे अमेरिका को लुटता पिटता जलता व उजड़ता हुआ देखते रहे,  उन्होंने इन राष्ट्रवादीयों पर गोली चला दी और एक महिला सहित चार राष्ट्रवादी अमेरिकी की हत्या कर दी।

महिला को तो सीधे गोली मार दी गयी!अब प्रश्न ये है कि सोच, समझ व व्यवहार में समाज का ये दोगलापन क्यों?

जब जॉर्ज फ्लायड नामक एक गुण्डा, अपराधी व असामाजिक अश्वेत पुलिसिया कार्यवाही के दौरान दुर्घटनापूर्ण तरीके से मृत्यु तो प्राप्त हो जाता है तो इसे नस्लभेद का आवरण देकर ना केवल आंदोलन चलाया जाता है अपितु कई मासूम श्वेतों की बली ले ली जाती है और फिर भी उन दंगाइयों, आतंकीयों व बालात्कारियों को क्रांतिकारी बताकर महिमामण्डन किया जाता है, परंतु जब श्वेत व राष्ट्रवादी अमेरिकी अपने प्रति हुए धोखे के विरोध में शांतिपूर्ण तरीके से धरना प्रदर्शन करते हैं तो पहले उन्हें उकसाया जाता है फिर घरेलू आतंकी बताकर गोली मार दी जाती है।

अमेरिकी संसद पर राष्ट्रवादीयों नें जो कुछ भी किया वो उनका अधिकार था, कयोंकि वो
1:-अपने राष्ट्र से प्रेम करते हैं।

2:-अपने राष्ट्र को लिबरल्स, सेक्युलर्स व सफेदपोश व्यवसायीयों के हाथों का खिलौना नहीं बनने देना चाहते!
3:- अपने देश में पुन: 9/11 जैसी आतंकी घटना नहीं चाहते।

4:- वे अपने देश को नस्लवाद, वामपंथ व सेक्युलरवाद की प्रयोगशाला नहीं बनने देना चाहते।
5:- वे अपने राष्ट्र, अपनी संस्कृति व अपनी सभ्यता को बचाये रखना चाहते हैं।
6:- अमेरिकी होने पर गर्व महसूस करते हैं।

अब इसमें गलत क्या है, क्या राष्ट्रवाद की विचारधारा गलत है?

यहाँ पर गौर करने वाली सबसे महत्वपूर्ण तथ्य से है कि इन राष्ट्रवादीयों को द्वारा अपने प्रदर्शन के दौरान किसी भी स्तर की हिंसक कार्यवाही नहीं की गयी, परंतु उन्हें बदनाम करने के लिए जबर्दस्त प्रोपेगेंडा चलाया गया। गौरतलब है सोशल मिडीया के बड़े प्लेटफार्मों के मालिकों के चरित्र का दोहरापन। यदि आप लिबरल गैंग के हैं, वामपंथीयों को गैंग के हैं, खान गैंग के हैं या स्युडोसेक्युलर हैं तो आप कितनी भी

1:-भड़काऊ पोस्ट डालें,

2:-अपमान करने वाले पोस्ट डालें,

3:-धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाने वाली पोस्ट डाले या

4:-अश्लील पोस्ट डाले!

फेसबूक, ट्वीटर, ईंस्टाग्राम व व्हाट्सअप जैसे सोशल मिडीया के मालिक अपने आँख, कान, मुँह व पता नहीं क्या क्या बंद करके बैठ जाते हैं और जो प्रतिक्रिया होती है उनसे उन्हें कोई सरोकार नहीं होता! परंतु यदि आप देशभक्त/राष्ट्रवादी हैं तो आपकी सामान्य सी पोस्ट भी इन सफेदपोशों को हजम नहीं होती वो या तो आपको चेतावनी देते हैं या फिर आपका एकाउंट ही सस्पैंड कर देते हैं। भाई ब्लैक लाइव्स मैटर तो व्हाइट लाइव्स मैटर क्यों नहीं

क्या अपने राष्ट्र, उसकी सुरछा, उसकी अखंडता व उसकी संप्रभुता के बारे में सोचना, समझना, बात करना व उसके अनुसार व्यवहार करना व यथोचित प्रबंध करना अपराध है।

मैं एक बार पुनः ये जिज्ञासा प्रकट करना चाहता हूँ  की यदि कोई व्यक्ति अपने देश के प्रति समर्पण की भावना रखते हुए, अनावश्यक प्रवासियों के घुसपैठ पर आवाज उठता है और उन्हें रोकने को वकालत करता है तो फिर इसमें गलत क्या है? इतिहास गवाह है की सबसे ज्यादा प्रवासी एक ही मज़हब से निकलते हैं और शरण पाने के लिए वे कम्युनिस्टों के साशन वाले देशों या उन देशों में नहीं जाते जंहा उनका मज़हब उस देश का राष्ट्रीय मज़हब होता है, अपितु वे इसके उलट उन देशों की ओर पलायन करते हैं जहाँ उनके मज़हब के लोग अल्पसंख्यक अवस्था में होते हैं, उदाहरण के लिए म्यंमार से भागे रोहंगिया पड़ोस के चीन, पाकिस्तान व् बांग्लादेश में न जाकर भारत में शरण पाने के लिए भागे भागे चले आये। इसी प्रकार सीरिया, यमन, जार्डन या अफ्रीकी देशों के मुसलमान कभी सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत, तुर्की या बहरीन इत्यादि देशो में न जाकर फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन या इटली जैसे देशों में शरण क्यों लेते हैं?

जब अमेरिका के सबसे महान राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रम्प इस मामले में आवाज उठाते हैं और राष्ट्रवादी अमेरिकी उनका साथ देते हैं तो इसे नफ़रत फ़ैलाने वाला या नस्लवाद फ़ैलाने वाला कार्य मान लिया जाता है।

इन्ही  इलेक्ट्रानिक मीडिया या सोशल मिडिया  का लाभ उठाकर सफेदपोशो द्वारा “अबू बकर अल बगदादी” जैसे बलात्कारी, लुटेरे, चोर व् उचक्के को एक “स्कालर” बताया जाता है, ओसामा बिन लादेन जैसे मासूम इंसानो का खून पीने वाले दरिंदे को इंजीनियर बताया जाता है, सैकड़ो मासूम लोगो की हत्या करने वाले चोर, गद्दार व भगोड़े दावूद इब्राहिम को एक पुलिस वाले का लड़का बताया जाता है। तो क्या ये जायज़ है?

कौन भूल सकता है पेरिस के उस टीचर की गला रेत कर की गयी हत्या, जो किसी और ने नही अपितु एक शरण पाने वाले मुस्लिम चरमपंथी ने की थी और उसके बाद जो घटनाये हुई उससे आप भलिभाती अवगत है।

अब प्रश्न ये उठता है की क्या वाक् अभिव्यक्ति का अधिकार केवल इन सफेदपोशो को है, उन लोगो के पास नहीं जो वास्तव में केवल अपने देश, अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता व् अपनी भाषा को  सुरछित रखना चाहते हैं। अतः अमेरिका के सबसे महान राष्ट्रपति ने और उनके राष्ट्रवादी समर्थको ने कुछ भी ऐसा कार्य नहीं किया जिसे अपराध की श्रेणी में रखा जा सके।

यदि ब्लैक लाइव्स मैटर तो व्हाइट लाइव्स आल्सो मैटर

मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ की उन चारो बलिदानियों की आत्मा को शांति प्रदान करे, क्योंकि उन्होंने अपने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है।

नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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