नेपाल में भारत की कूटनीतिक जीत

गुवाहाटी

नेपाल में भी भारत के सामने अब चीन मात खा गया है। नेपाल में संसद भंग हो गई है जिसके बाद राजनीतिक अनिश्चितता का माहौल है। इसी के साथ ही कम्युनिस्ट पार्टी टूट गई है। नेपाल में इस राजनीतिक संकट का असर उसके पड़ोसी देश भारत और चीन पर भी पड़ा है। विदेश मामलों के जानकारों के अनुसार कम्युनिस्ट पार्टी में दिक्कत चीन के लिए बुरी खबर है। नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ता में आने के बाद से ही भारत विरोधी सेंटिमेंट्स को हवा मिलनी शुरू हो गई थी। एक्पर्ट्स कह रहे हैं कि अगर नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी कमजोर होती है तो भारत के साथ रिश्ते फिर से बेहतर होने की उम्मीद है।

आपको बता दें कि नेपाल में ऐसा चौथी बार हुआ है जब संसद भंग हुई है, क्योंकि नेपाली नेताओं ने कभी कमियों पर चर्चा नहीं की और न ही उसे ठीक करने की कोशिश की। जब पड़ोसी देश से डील करने की बात आती है तो भारत की संस्थागत याददाश्त कमजोर है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अभी भारत अपनी वैश्विक भूमिका की उम्मीद कर रहा है लेकिन छोटे पड़ोसियों से अच्छे संबंध और भरोसे के बिना भारत यह हासिल नहीं कर सकता।

गौरतलब है कि पारंपरिक तौर पर ही नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी और चीन का नजदीकी संबंध रहा है। जब कम्युनिस्ट पार्टी का एकीकरण हुआ तब भी चीन की उसमें अहम भूमिका थी। चीन हमेशा से पार्टी यूनिटी के पक्ष में था क्योंकि यही चीन के हित में भी था। जब कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई तो भारत विरोधी भावनाओं को बढ़ावा भी मिला और यह चीन के पक्ष वाली सरकार थी।

हालांकि यह माना जा रहा है कि नेपाल के राजनीतिक घटनाक्रम से भारत को न फायदा होगा और ना ही नुकसान, क्योंकि ओली सरकार ने जो मैप जारी किया उसके बाद जो भी सरकार आएगी उसके लिए यह वापस करना आसान नहीं होगा। हालांकि चीन का प्रभाव कुछ कम होगा। कम्युनिस्ट पार्टी कमजोर होने से चीन को दूसरी पार्टी से भी संबंध ठीक रखने होंगे और चीन का ज्यादा राजनीतिक प्रभाव नहीं रहेगा।

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