धोखा देकर उनके बलोचिस्तान को फिर से गुलाम बना दिया

हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के पहले 11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान आजाद हुआ था। 

जैसा की हम सभी जानते हैं कि भारत और सनातन धर्म इस सृष्टी के आरंभ से ही है! ईरान, अरब, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और पाकिस्तान इत्यादि सभी भारत के हिस्से थे। ‘अखंड भारत’ का यथार्थ दुनिया के प्राचीन भौगोलिक स्थिति से आसानी से देखा जा सकता है!

बलूचिस्तान में माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ हिंगलाज माता का है। बलूचिस्तान में भगवान बुद्ध की सैंकड़ों मूर्तियां पाई गईं। यहां किसी काल में बौद्ध धर्म का अच्छा प्रभाव था। बलूचिस्तान भारत के 16 महा-जनपदों में से एक जनपद संभवत: गांधार जनपद का हिस्सा था। चन्द्रगुप्त मौर्य का लगभग 321 ईपू का शासन पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था। 

वर्ष 711 में मुहम्मद-बिन-कासिम और फिर 11वीं सदी में महमूद गजनवी ने बलूचिस्तान पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के बाद बलूचिस्तान के लोगों को इस्लाम कबूल करना पड़ा। 

अकबर के शासन काल में बलूचिस्तान मुगल साम्राज्य के अधीन था। आइनअकबरी के मुताबिक, 1590 में यहां के ऊपरी इलाकों पर कंधार के सरदार का कब्जा था, जबकि कच्ची इलाका मुल्तान के भक्कड़ सरदार के अधीन था।

अंग्रेजो का बलूचिस्तान पर कब्जा :-

बलूच राष्ट्रवादी आंदोलन 1666 में स्थापित मीर अहमद के कलात की खानत को अपना आधार मानता है। प्रथम अफगान युद्ध (1839-42) के बाद अंग्रेंजों ने इस क्षेत्र पर अधिकार जमा लिया। वर्ष 1876 में रॉबर्ट सैंडमेन को बलूचिस्तान का ब्रिटिश एजेंट नियुक्त किया गया और 1887 तक इसके ज्यादातर इलाके ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गए।

अंग्रेजों से बलूचिस्तान की आजादी का संघर्ष :-

अंग्रेजों ने बलूचिस्तान को 4 रियासतों में बांट दिया- कलात, मकरान, लस बेला और खारन। 20वीं सदी में बलूचों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इसके लिए 1941 में राष्ट्रवादी संगठन अंजुमानइत्तेहादबलूचिस्तान का गठन हुआ। वर्ष 1944 में जनरल मनी ने बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का स्पष्ट विचार रखा। बाद में अंजुमन को कलात स्टेट नेशनल पार्टी में बदल दिया गया।

1939 में अंग्रेजों की राजनीति के तहत बलूचों की मुस्लिम लीग पार्टी का जन्म हुआ, जो हिन्दुस्तान के मुस्लिम लीग से जा मिली। दूसरी ओर एक ओर नई पार्टी अंजुमनवतन का जन्म हुआ जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गई।अंजुमन के कांग्रेस के साथ इस जुड़ाव में खान अब्दुल गफ्फार खान की भूमिका अहम थी।

मीर यार खान ने स्थानीय मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय मुस्लिम लीग दोनों को भारी वित्तीय मदद दी और मुहम्मद अली जिन्ना को कलात राज्य का कानूनी सलाहकार बना लिया और यही पर बलोचो ने सबसे बड़ी गलती कर दी जिसकी कीमत वो आज तक पाकिस्तान की गुलामी करते हुए चूका रहे है

पृष्ठभूमी:-

8 मई 1947 को वीपी मेनन ने सत्ता अंतरण के लिए एक योजना प्रस्तुत की जिसका अनुमोदन माउंटबेटन ने किया।  ब्रिटेन के तत्कालिन प्रधानमंत्री एटली ने इस योजना की घोषणा हाउस ऑफ कामंस में 3 जून 1947 को की थी इसीलिए इस योजना को 3 जून की योजना भी कहा जाता है। इसी दिन माउंटबेटन ने विभाजन की अपनी घोषणा प्रकाशित की। उस दौरान पाकिस्तान के साथ विलय के लिए किसी भी प्रकार का करार पास नहीं हुआ था। अंत में यह निर्णय हुआ कि बलूच एक आजाद मुल्क बनेगा कलात के खान ने बलूची जनमानस की नुमाइंदगी करते हुए बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय करने से साफ इंकार कर दिया था यह पाकिस्तान के लिए असहनीय स्थिति थी। 

4 अगस्त 1947 को लार्ड माउंटबेटन, मिस्टर जिन्ना जो बदकिस्मती से बलू‍चों के वकील थे, सभी ने एक कमीशन बैठाकर तस्लीम किया और 11 अगस्त को बलूचिस्तान की आजादी की घोषणा कर दी गई। 

जिन्ना की सलाह पर यार खान 4 अगस्त 1947 को राजी हो गया कि ‘कलात राज्य 5 अगस्त 1947 को आजाद हो जाएगा और उसकी 1938 की स्थिति बहाल हो जाएगी।’ उसी दिन पाकिस्तानी संघ से एक समझौते पर दस्तखत किया गया। इसके अनुच्छेद 1 के मुताबिक ‘पाकिस्तान सरकार इस पर रजामंद है कि कलात स्वतंत्र राज्य है जिसका वजूद हिन्दुस्तान के दूसरे राज्यों से एकदम अलग है। 

लेकिन अनुच्छेद 4 में कहा गया कि ‘पाकिस्तान और कलात के बीच एक करार यह होगा कि पाकिस्तान कलात और अंग्रेजों के बीच 1839 से 1947 से हुए सभी करारों के प्रति प्रतिबद्ध होगा और इस तरह पाकिस्तान अंग्रेजी राज का कानूनी, संवैधानिक और राजनीतिक उत्तराधिकारी होगा।’ 

अनुच्छेद 4 की इसी बात का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने कलात के खान को 15 अगस्त 1947 को एक फरेबी और फंसाने वाली आजादी देकर 4 महीने के भीतर यह समझौता तोड़कर 27 मार्च 1948 को उस पर औपचारिक कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के बचे 3 प्रांतों को भी जबरन पाकिस्तान में मिला लिया था। इस समझौते कोस्टैंडस्टिल समझौता भी कहा जाता है। बलूच इस निर्णय को अवैधानिक मानते हैं, तभी से राष्ट्रवादी बलोच पाकिस्तान की गुलामी से मुक्त होने के लिए संघर्ष छेड़े हुए हैं

बलूचिस्तान पाकिस्तान के 4 प्रांतों में से एक है। यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है जो लगभग 44% हिस्से को कवर करता है। बलूचिस्तान को ‘ब्लैक पर्ल’ या ‘काला मोती’ भी कहा जाता है. तेल, गैस, तांबे और सोने जैसी प्राकृतिक संपदाओं की यहां भरमार है।

बलोचो को आजादी की जंग

पहली बगावत निसार खान और अब्दुल करीम खान ने कर दी। 1948 में बलूच राजकुमार अब्दुल करीम खान के नेतृत्व में विद्रोह की शुरुआत हुई और गोरिल्ला पद्धति से पाकिस्तानी सेना के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया गया। 1958-59, वर्ष 1958 में स्वयं खानकलात ने पाकिस्तान से छुटकारा पाने केलिए विद्रोह का बिगुल बजाया! खान-ए-कलात के गिरफ्तार होते ही पुरे बलोचिस्तान में हिंसा फ़ैल गयी!

खान-ए-कलात के समर्थन में ज़रक्जई कबीले के सरदार बाबू नवरोज़ ने सशस्त्र विद्रोह शुरू किया! टिक्का खान ने कुरान पर एतबार दिखला कर नवरोज़, उसके बेटों और भतीजों से आत्मसमर्पण करवा लिया! नवरोज़ के बेटों और भतीजों को हैदराबाद जेल में फांसी पर लटका दिया गया जब कि नब्बे वर्ष की आयु में नवरोज़ की मृत्यु भी हैदराबादजेल में ही हुई! टिक्काखान ने ज़राक्जई, अचकजई, मर्री और बुगती कबीलों पर भीषण अत्याचार किये! बलोच  इतिहासकारों केअनुसार टिक्काखान ने एकहज़ार से अधिक बेगुनाह बलोच नागरिकों की हत्या की!  1962-63 में तीसरा विद्रोह व 1973-77 चौथा विद्रोह खासा गंभीर रहा! इन्हें भी पाकिस्तानी सेना द्वारा निर्दयता से कुचल दिया गया!

मौजूदा संघर्ष का दौर 2003 से शुरू हुआ। इसमें सबसे प्रमुख संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को बताया जाता है जिसे पाकिस्तान ने प्रतिबंधित घोषित कर रखा है। मर्री, मेंगल, बुगती और ज़राक्जई कबीलों और पख्तूनों द्वारा शुरू किया गया असहयोग आन्दोलन शीघ्र ही सशस्त्र संघर्ष में बदल गया! बलोचिस्तान पीपल्स लिबरेशन फ्रंट के बैनर के नीचे मीर हज़ार मर्री के नेतृत्व में यह बहुत बड़ा विद्रोह साबित हुआ! इसमें लगभग 25-30,000 हज़ार की संख्या में सशस्त्र बलोच विद्रोहियों ने पाकिस्तान के दांतों से पसीने निकल दिए!पाकिस्तान ने इस विद्रोह में लगभग 20,000 बलोचियों को शहीद किया! इतनी बड़ी संख्या में अपने ही देशवासियों की हत्या किये जाने की यह अपने किस्म की अनोखी मिसाल थी!

नवाब अकबर शाहबाज खान बुगती (12 जुलाई 1927–26 अगस्त 2006) बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग एक देश बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। वे चौथे गवर्नर भी थे! 26 अगस्त 2006 को बलूचिस्तान के कोहलू जिले में एक सैन्य कार्रवाई में अकबर बुगती और उनके कई सहयोगियों की हत्या कर दी गई थी बड़े पैमाने पर मानवाधिकार का हनन हुआ। मानवाधिकार समूहों के मुताबिक वहां फर्जी मुठभेड़ों में लगातार मौतों और लापता लोगों की तादाद आज भी बढ़ रही है।  

बलोचो को एक और बड़े नेता मीर हजारा खान बजरानी मर्री कबीले से संबंध रखते हैं। उनके विरुद्ध पाकिस्तान की आईएसआई ने लगातार मोर्चा खोल रखा है। एक और बलूच नेता गुलाम मोहम्मद बलूच, जिन्होंने बीएनएम का गठन किया था, ने बलूचिस्तान की आजादी के लिए अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष किया।

आंदोलन उस वक्त और  तेज हो गया, जब बेगैरत पाकिस्तान ने ग्वादर बंदरगाह चीन के हवाले कर दिया। बलूच लोगों अपनी ही सरजमी के लिये हुये ईस समझौते से बाहर रखा गया है। नापाक पाकिस्तानियों  ने बलूच लोगो से बहुत बड़ा धोखा किया जिससे ईन लोगों की आर्थिक दशा बहुत ही खराब है।

साछरता दर 20% भी नहीं, पीने का पानी 10% लोगो तक, ईनकी खनीज संपदा का 10% हिस्सा भी ईन पर खर्च नही होता, 60% जनता भुखमरी की शिकार, सड़क, बीजली, इन्फ्रासट्रक्चर 10% भी नहीं,स्वास्थ्य सुविधाएं 5% भी नहीं और विकास के चिन्ह आपको कही नही दिखाई देंगे। अत: स्पष्ट है कि बलूचिस्तान में आज भी लोग बुनियादी सुविधाओं से दूर हैं। 

ग्वादर पोर्ट डेवलपमेंट के नाम पर इस भरपूर संपदा पर चीन ने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया है। इसी क्षेत्र के चगाई मरुस्थल में 2002 में एक सड़क परियोजना शुरू की गई, जो चीन के साथ तांबा, सोना और चांदी उत्पादन करने की पाकिस्तान की योजना के अंतर्गत की गयी  है। इससे जो भी लाभ होता है उसका 75 फीसदी चीन ले लेता  है और 25 फीसदी पाकिस्तान पर ये बलूचिस्तान को इसमें से कुछ भी नहीं देते। 

ग्वादर बंदरगाह की सुरंग: चीन सामरिक दृष्टि से भारत और अन्य देशों से निपटने के लिए एक 200 किमी लंबी सुरंग ग्वादर बंदरगाह के पास बना रहा है। सच्चाई ये है कि, यह बलूचिस्तान के विकास नहीं, भारत पर दबाव बनाने की चीन व पाकिस्तान की ही मिलीजुली रणनीति का एक हिस्सा है। यह सुरंग अरब सागर में बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन में काशघर से जोड़ेगी। पाकिस्तानीयों ने जिस प्रकार बलोचो की आजादी छिन ली उसी प्रकार ठिक वैसे ही जुल्म ढा रहे हैं जैसा कभी वो पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बंग्लादेश के लोगो पर ढाते थे! 

नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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