असली गांधी और नकली गांधी का आंतरिक लोकतंत्र

आजकल लिबरलो द्वारा लिबेरलिज्म का पाठ सबको पढ़ाया जा रहा है और ये उम्मीद करते है की भारत की जनता लिबरल हो और उनकी नागरिक स्वतंत्रता बनी रहे। इसी क्रम में वो किसी भी घटना में अपने गिद्ध दृष्टि का उपयोग करके सरकार को फासिस्ट होने का तमगा दे देते है।
इसी क्रम में वो विभिन्न कार्यक्रमो में कहीं सेकुलरिज्म को ढूंढती है तो कही राजनीतिक पार्टियों में लोकतंत्र को ढूंढते है लेकिन ये इतिहास की सबसे पुरानी पार्टी में लोकतंत्र की बात भी नही करते है।

इतिहास के पन्नो में देखे तो कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र ऐसा था की 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू करने के लिए भी प्रस्ताव पर मतदान हुआ, जिसमे 1886 मत आंदोलन करने के पक्ष में आये और 884 मत विपक्ष में आये। इसी तरह से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्ध में गांधी जी ने सहयोग करने का प्रस्ताव रखा था जिसे कांग्रेस ने जनवरी 1942 में अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार से तत्कालीन कांग्रेस में प्रत्येक सदस्य का मत महत्वपूर्ण होता था और उसे प्रत्येक कार्यक्रम में हिस्सेदारी का मौका मिलता था, जबकि आज के कांग्रेस में पूर्व मंत्री रह चुके कपिल सिब्बल जैसे लोगो के बातो का भी कोई महत्व नही रह गया।

वस्तुतः अतीत में कांग्रेस में इतना लोकतंत्र था की असली वाले गांधी जी भी उसके सामने कुछ न थे और वो प्रत्येक कार्यकर्ता के सहमति और असहमति को मानने के लिए मजबूर थे लेकिन वर्तमान में कांग्रेस के स्वघोषित गाँधी परिवार ने तो लोकतंत्र का मायने ही बदल दिए है, अब यहां सहमति ही सदस्यता की गारंटी है और असहमति का एक ही रास्ता है जो ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गज नेताओ को भी बाहर फेंक देता है।

समय के साथ कांग्रेस को यह समझना चाहिए की अतीत में जनता निजी स्वतंत्रता की प्राप्ति की चाहत में ही लोकतंत्र के गुणों को अपनाये हुए थी और कांग्रेस उनके इस अभिलाषा को व्यक्त भी करती थी, इसीलिए वो आम जन की कांग्रेस बनी हुई थी जबकि इसी समय के अन्य पार्टियां जैसे की मुस्लिम लीग में नागरिक स्वतंत्रता और आंतरिक लोकतंत्र का अभाव था जिसके कारण ही विभाजन के बाद के पाकिस्तान और भारत में अंतर स्पष्ट दिखाई देता है क्योकि बिना आंतरिक लोकतंत्र के निरंकुशता जन्म लेती है जिससे नागरिक स्वतंत्रता के हनन होने की संभावना बढ़ जाती है जिसका पाकिस्तान में खुल कर हनन होता है और इतना होता है की उन्हें पता भी नही होता की उनके भी कुछ अधिकार है।

इसी प्रकार यदि कांग्रेस बिना आंतरिक लोकतंत्र लाये चाहती है की वो भारत की सत्ता हाथ में ले-ले तो भारतीयो को यह समझ लेना चाहिए की इसी निरंकुशता के कारण पाकिस्तान जैसी नागरिक स्वतंत्रता भी मुफ्त में मिल जाएगी।

वर्तमान की भाजपा के संगठन को देखे तो यह अतीत की कांग्रेस वाले लोकतंत्र को अपनाये हुए प्रत्येक कार्यकर्ता का सम्मान करती है, इसी का परिणाम है कि मामूली से मामूली कार्यकर्ता भी मोदी जी की तरह प्रधानमंत्री बनने की क्षमता रखता है और चुनावो में इसका परिणाम भी प्रतीत होता है।

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