क्या हुआ… बड़े डरे डरे से नज़र आ रहे हो कही मज़हबी नारे सुन कर आ रहे हो?? लगता है कोई अख़बार पढ़ लिया है? मियां पड़ोसी… से भी कतराए जा रहे हो फटाके ही तो फूटे है…. कोई बम नही ख़ामख़ा… शोर मचाये जा रहे हो माना थोड़ी बारूद ज्यादा हो गई थी तुम तो अब्दुल पे उंगली उठाये जा रहे हो? बड़े पढ़े लिखे जान पड़ते हो जनाब फिर क्यू….. यू दुम दबा के भागे जा रहे हो? क्या कहा… शहर जल रहा है फिर भी भाईचारे का पाठ पढ़ाये जा रहे हो? अच्छा! तो ये सियासत की चाले है तो इसीलिए घर से भगाये जा रहे हो?? सुना है… कल मदरसों से असलहे मिले है अफवाह है!.. किसे समझाये जा रहे हो?? अरे…. बिरयानी तो खूब पसंद थी तुम्हे क्या बात है…आज खीर खाए जा रहे हो? अब तो मुस्कुरा दो… बहत्तर हूरे मिलने वाली है ख़ामख़ा मुह लटकाये जा रहे हो.. -- शिवम तिवारी "शांडिल्य"
सहिष्णुजन पर व्यंग
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