क्य बिहार विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों और भूमिहारों की नाराज़गी एनडीए गठबंधन को भारी पड़ी है?

‌सवर्णों की आबादी बिहार में पंद्रह प्रतिशत के आसपास है लेकिन सरकार बनाने में इनका काफी योगदान रहता है। इसका कारण है कि स्वर्ण वोटर काफी मुखर होते हैं और इनका अपने इलाके में काफी प्रभाव रहता है। सवर्ण खासकर ब्राह्मण और भूमिहार बीजेपी के कोर वोटर रहे हैं, बीजेपी के स्थापना से लेकर अभी तक इसके साथ जुड़े हुए हैं। लेकिन बिहार बीजेपी में इन दोनों समाज को जिस तरह नजरअंदाज किया जा रहा था, उससे ये समाज काफी दुखी था।

पिछले लोकसभा चुनाव में जहां ब्राह्मण वर्ग को दो टिकट मिले थे वहीं भूमिहारों को तीन टिकट दिया गया था, जो अपेक्षाकृत काफी कम था। वहीं बात की जाए तो राजपूत वर्ग को एनडीए द्वारा सात टिकट दिए गए थे तथा यादव वर्ग को भी ब्राह्मण और भूमिहारों से ज्यादा टिकट मिला था। राजपूत और यादव एनडीए के कोर वोटर नहीं माने जाते हैं। यादव जहां राजद के कोर वोटर माने जाते हैं वहीं राजपूत अपनी सुविधनुसार विरोध या सपोर्ट करते हैं। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा मात्र ग्यारह ब्राह्मण प्रत्याशियों को टिकट दिया गया जबकि बाईस राजपूतों को टिकट दिया गया। भूमिहारों से ज्यादा यादवों को टिकट दिया गया जिससे भूमिहार वर्ग में काफी नाराज़गी थी।

भूमिहारों को उनके पारंपरिक सीटों से बेदखल कर दिया गया तथा इसकी जदयू के खाते में डाल दिया गया। बगहा से सिटिंग विधायक आरएस पांडेय का टिकट काट दिया तथा पूरे चंपारण में किसी ब्राह्मण को टिकट नहीं दिया गया, जिससे वहां के ब्राह्मण वर्ग में काफी नाराज़गी थी। सीवान और छपरा में किसी ब्राह्मण प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया गया जबकि पहले से जिरादेई से ब्राह्मण को टिकट मिलता रहा है। जिसको लेकर ब्राह्मण समाज में काफी रोष व्याप्त था। जिसका खामियाजा एनडीए को इस क्षेत्र में उठाना पड़ा हैं। भूमिहार वर्ग की नाराज़गी नीतीश कुमार से भी थी।भाजपा को यह समझना होगा की ब्राह्मण और भूमिहार इसके कोर वोटर हैं इनकी नाराज़गी पार्टी को महंगी पड़ सकती है। इन्हें संगठन और सरकार में उचित प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए ताकि ये अपने आप को ठगा महसूस ना करें।

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