बेव सीरीज को उनकी अश्लीलता के लिए कोसा जाता रहेगा

Rasbhari Webseries Featuring Swara Bhaskar

सिर्फ सोचकर देखिएगा कि आपका पंद्रह साल का बेटा या बेटी आपके सामने मां और बहन की गालियां दे रहे हैं और उनके आंखों में जरा भी शर्म तक नहीं है। कैसा लगेगा? क्या यह खुलकर जीने की आजादी के तहत मिली हुई स्वतंत्रता है? समाज में इनका बीजारोपण इतनी तेजी से क्यों हो रहा है? इसका जबाव है सस्ता इंटरनेट और उस पर परोसी जाने वाली बहुत सस्ती, घटिया और दोयम दर्जे की अश्लील वेब सीरीज फिल्में। जिन्हें रचनात्मकता के और फिल्मों के नाम पर परोसा जा रहा है। पॉर्न फिल्मों को अब तक खुले में देखना नैतिक अपराध माना जाता था, लेकिन इन वेब सीरिज ने नैतिकता के इस परदे को भी हटाकर फैंक दिया है।

राह चलते कौन गाली देता है!

रचनाधर्मिता को भारत में हमेशा सम्मान की नजर से देखा जाता रहा है। लेकिन इसकी आड़ में पिछले ढाई-तीन सालों में वेब सीरीजकारों ने समाज में जिस तरह की सड़ांध मचाई है, उसका असर आने वाले कई वर्षों तक रहने वाला है। सिर्फ एटीन प्लस का टैग मात्र लगा लेने से वेब सीरिजकार मानते हैं कि उन्हें वेब सीरिज के नाम पर पॉर्न फिल्म दिखाने का अधिकार मिल गया है। और गालियां…। मां, बहन और बेटी की गालियां तो जैसे इन फिल्मों के कलाकारों के संवाद की हर दूसरी पंक्ति में है। जैसे उन्हें गाली के बिना कोई संवाद बोलने से पूरी तरह मना किया गया है। राह चलते लोगों से कौन गाली देकर बाते करता है? लेकिन वेब सीरिज ‘मिर्जापुर’ या फिर ‘सैक्रेड गेम्स’ देख लीजिए। इन सीरीज की दिलचस्प कहानियों के बावजूद इनमें गाली, सैक्स और हिंसा को इतना ज्यादा ठूंसा गया है कि वे कहानी से कहीं भी तारतम्य नहीं बैठा पाते।

गालियां, सैक्स दृश्य और हिंसा

अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से शुरू हुआ हिंसा, सैक्स और गालियों का सिलसिला सीरिज दर सीरिज लगातार बढ़ रहा है। ऐसा लगता है कि वेब सीरिजकार यह मानकर ही चलते हैं कि हिंदी दर्शकों को मां-बहन की फूहड़ गालियां, बेडरूम और चकलाघरों के खुले सैक्स दृश्य और हिंसा पसंद आती ही होगी! मनोज वाजपेयी की ताजा सीरिज ‘फैमिली मैन’ में उनका दस साल का बेटा अपनी बारह-तेरह साल की बहन और पिता के सामने मां शब्द को अपमानित करने वाली गाली देता है। बलात्कार के दृश्यों को खुलकर दिखाया जाता है। जिस शब्द से ही समाज को घृणा होनी चाहिए, उस पर से सीरिजकारों से लाज का परदा भी हटा दिया है। बेवसीरिज ‘द फॉरगोटन आर्मी’ में दावा तो नेताजी सुभाषचंद्र बोस के संघर्ष पर आधारित कहानी का किया गया था, लेकिन अंग्रेज अधिकारी द्वारा एक भारतीय स्त्री के बलात्कार का खुला दृश्य दिखाकर सीरीजकार क्या संदेश देना चाहते हैं? यह सच है कि आधुनिक समाज में बलात्कार और हिंसा की घटनाओं के अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन समाज ने हमेशा से उनका प्रतिकार किया है। लेकिन सीरिजकार उन्हीं चीजों का महिमामंडन कर दर्शकों की नसों में सनसनी क्यों भरना चाहते हैं?

हिंदु प्रतीकों का अपमान

समाज पर मनोवैज्ञानिक असर

इसके अलावा वेब सीरिजों में धार्मिक प्रतीकों के साथ दुर्व्यहार बहुत सामान्य सी बात हो गई है। विशेषकर हिंदू प्रतीकों के साथ सीरिजकार जिस तरह का व्यवहार करते हैं, वह सभ्य समाज के लिए असहनीय है। और इसमें कोई मर्दानगी जैसा भी महसूस नहीं होना चाहिए। हिंदू देवी-देवताओं के अश्लील चित्रण के कई मामलों की अदालतों में शिकायतें भी की गई हैं, जिन पर अदालतों ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। सनातन परंपराओं से जुड़े प्रतीक चिह्नों के साथ भद्दा मजाक पहले भी फिल्मों में होता रहा है। असल में तथाकथित आडंबरों के खिलाफ रचनात्मकता दिखाने के लिए फिल्मकार हिंदु प्रतीक चिह्नों को निशाना बनाते रहे हैं। असल में भारतीय लोगों की सहिष्णुता के कारण वे फिल्मकारों के सबसे आसान निशाना होते रहे हैं। और अब वही काम वेब सीरिजकार कर रहे हैं। सीरिजकारों को समझना होगा कि रचनात्मकता के नाम पर वे अपने ही समाज का इस तरह तिरष्कार नहीं कर सकते।

असल में फिल्मकारों की तरह सीरिजकारों को भी अपनी फिल्मों को वास्तविक दिखाने का चस्का लगा हुआ है और इसके चलते अनावश्यक गालियां उनके संवादों का हिस्सा बन रहे हैं। गालियां समाज का हिस्सा है लेकिन सीरिजकारों ने जैसे गालियों का ट्रेंड ही स्थापित कर दिया है। सभी वेब सीरिज में उन्हें ग्लैमराइज किया जा रहा है। ऐसा लगता है कि वेब सीरिज में आपस में कोई स्पर्धा है कि कौनसी सीरिज ज्यादा से ज्यादा गालियां दे सकती है। कोई भी सीरिज उठाकर देख लीजिए हर पांचवे संवाद में मा-बहन की गालियां धडल्ले से बोली जाती हैं। आश्चर्य की बात है कि महिला पात्रों से सीरिजकार गालियां बुलवा डालते हैं। समाज में लड़कियों, औरतों और मासूमों के साथ यौनिक अत्याचार की बढ़ती घटनाओं को भले ही इन वाहियात सीरिज के असर से सीधे-सीधे नहीं जोड़ा जाए, लेकिन हम इन सीरिज के मनोवैज्ञानिक असर और उसके रिएक्शन से इनकार भी नहीं कर सकते कि इनका समाज पर कितना बुरा असर होता होगा!  

वेब सीरिजकारों से बेहतर की उम्मीद

वेब सीरिज पर बहुत सी अच्छी फिल्में भी बन रही हैं और उन्होंने अपनी कहानियों के लिए दर्शकों को गुदगुदाया है। ऐसा नहीं है कि एटीन प्लस टैग वाली सीरिज की कहानियां दिलचस्प नहीं है। ये कहानियां इतनी दिलचस्प है कि इन्हें देखना बहुत मजेदार लगता है, लेकिन कहानी के बीच में जबरन ठूंसा गया सैक्स, हिंसा और गालियां पूरी सीरिज के स्वाद को बेस्वाद कर देता है। कई बार ऐसा लगता है कि इन सीरिज को सिर्फ इसीलिए ही बनाया गया कि वे दर्शकों को सैक्स, हिंसा और गालियों से रूबरू से करवा सकें। सीरिजकारों को समझना होगा कि फिल्में समाज का दर्पण होती हैं, लेकिन जब दर्पण ही यह तय करने लग जाए कि समाज को कैसा होना चाहिए, तो समाज का ढांचा बिगड़ने का खतरा हो जाता है और ऐसे में इन सीरिज के नियमन, इन पर नियंत्रण के स्वभाविक स्वर उठने लगते हैं।

कई संगठन और राजनैतिक दल वेब सीरिज के नियमन का मुद्दा उठा चुके हैं। कई सीरिजों के विरूद्ध अदालतों में याचिकाएं डाली गई हैं। केंद्र सरकार ने भी डिजीटल मीडिया के नियमन की बात कही है। लेकिन अभी तक इन पर किसी भी तरह की कार्यवाही होना शेष है। देश में कई ओटीटी प्लेटफॉर्म विदेशी हैं, जिन पर यूरोपीयन और अमरीकन सीरीज, शोज और लाइव कार्यक्रम धडल्ले से दिखाए जाते हैं। इन पर अभी तक सेंसरशिप नहीं है। ऐसे में केंद्र को हस्तक्षेप कर उनके नियमन की दिशा में जरूर कदम उठाना चाहिए।

उम्मीद करनी चाहिए कि वेब सीरिजकार समाज को अपनी रचनात्मकता से बेहतरीन, दिलचस्प और विचारोत्तेजक कहानियां देंगे। उन्हें और ज्यादा जिम्मेदार रचनाकार की तरह व्यवहार करना चाहिए। उन्हें विश्वास होना चाहिए कि उनकी उन कहानियों को लोग जरूर पसंद करेंगे। क्योंकि हर अच्छी और सकारात्मक चीज को समाज में पसंद किया जाता है।

Kumar Narad: Writer/Blogger/Poet/ History Lover
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