मिले न मिले हम- स्टारिंग चिराग पासवान

रामविलास पासवान की वापसी का इंतज़ार बिहार NDA का हर नेता कर रहा था। बिहार में सत्ता पक्ष और विपक्ष के लगभग सभी शीर्ष नेता रामविलास जी से छात्र राजनीती के दिनों से जुड़े रहे है। सब जानने को उत्सुक थे की उनके सुपुत्र चिराग पासवान की अकल्पनीय चुनावी रणनीति पर राम विलास जी का क्या मत है। हर कोई उत्सुक था की आखिर क्या रामविलास जी चुनावी जीत की गारंटी देता गठबंधन इतनी आसानी से छोड़ देंगे। पर रामविलास पासवान जी नहीं आये। बिहार के लोगो की सेवा का और मौका देने के बजाये विधाता ने बिहार के इस लाल को अपनी सेवा में बुलाना ही उचित समझा। एक जुझारू नेता लम्बी जद्दोजेहद के बाद मौत के सामने अपनी अपनी लड़ाई हार गया। रामविलास को उनके विरोधी मौसम वैज्ञानिक कहते थे। ऐसा माना जाता था की राम विलास जी चुनाव से पहले जनता का इरादा भांप जाते थे। दो बार सबसे अधिक वोट से चुनाव जितने का गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स रामविलास जी के नाम था।

आज के परिपेक्ष्य में बिहार का चुनाव कई मायनो में अलग है। मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पारम्परिक राजनीती वाली रणनीति का अनुसरण कर रहे है तो वही युवा चिराग और तेजस्वी विरासती जनाधार को नए भविष्य का सपना दिखने का प्रयास कर रहे है। पप्पू यादव जैसे नेता एक क्षेत्र में सीमीत जरुर है पर उनका कमोबेश असर बिहार की हर सीट पर पड़ना तय है। विगत कुछ वर्षो में आपदाओ के समय उनके प्रयासों को अच्छी खासी प्रसंसा मिली है। पुष्प प्रियम चौधरी को शहरी सीटों पर नज़रअंदाज़ करना असंभव है। भले ही उनके कई उम्मीदवारों की अनुभवहीनता की वजह से उम्मीदवारी खारिज हो गयी हो पर जो मैदान में है वो अपने क्षेत्र के प्रबुद्ध और समर्थवान लोग हैं।

पुष्प प्रियम की बातें बिहार के युवाओ को लुभा भी रही है। उनका सारा जोर आर्थिक विकास पर है और यही बिहार जैसे गरीब राज्य की सबसे बड़ी जरुरत है।

जेडीयू के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का फैसला चिराग पासवान ने लिया है। बिहार के चुनाव को समझने वाले ये जानते है की जातीय समीकरण हर सीट पर निर्णायक भूमिका निभाता है। हर सीट पर कमोबेश हर पार्टी बहुसंख्यक जाती वाली पार्टी के ही उम्मीदवार उतारती है। फिर भी बड़ी राष्ट्रिय पार्टियों के उम्मीदवार वोटो का रुझान अपने पक्ष में झुकाने में सफल होते है क्यूंकि उनके पारम्परिक वोटर होते है। इसका फायदा उन पार्टियों को भी मिलता जो गठबंधन के उम्मीदवार होते है। एलजेपी ने घोषणा की है कि वो हर सीट पर जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारेंगे। हालाँकि उन्होंने भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है। चिराग के फैसले ने राजद की रह आसान कर दी है। बिहार में अनुमानित लगभग 17 % स्वर्ण 15 % यादव 7 % बनिया 15 % मुस्लिम वोटर 2020 चुनाव में वोट डालेंगे। बचे हुए लगभग 46 % वोट चुनाव नतीजों को आसानी से पलटने का माद्दा रखते है। जिन सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार खड़े है उन सीटों पर स्वर्ण, बनिया और बटे हुए यादव तथा दलित पिछड़ा वोट भाजपा की राह आसान बनाएंगे। लेकिन जिन सीटों पर जेडीयू के उम्मीदवार खड़े है वहां एलजेपी वोट बांटेगी। वोटो का विभाजन लगभग 150 सीटों पर असर डालेगा। 243 में से 40 सीटें सुरक्षित हैं।

निश्चित रूप से बिहार विधानसभा का चुनाव त्रिशंकु परिणाम लाने वाला होगा। नितीश का मुखर विरोध कर रहे चिराग पासवान सरकार बनाने की स्थिति में राजद के साथ जाने की निति भी अपना सकते है। इन संभानाओं के बीच नितीश कुमार का साथ निभाना भाजपा के लिए महंगा हांथी पालने जैसा है। निश्चित रूप से अकेले चुनाव लड़ना भाजपा के लिए ज्यादा अच्छे परिणाम देने वाला होता।

10 नवंबर को नतीजे आने पर बिहार का राजनितिक समीकरण निश्चित रूप से बदलेगा। यह देखना दिलचस्प होगा की क्या इस बदलाव का असर केंद्र की सरकार पर भी होगा। चिराग जीते तो केंद्र में मंत्री बनेंगे। अगर भाजपा डूबी तो केंद्र की राजनीती कर रहे बिहारी नेता अपने सुर जरूर बदलेंगे। वैसे भी नितीश को पसंद करने वाले भाजपाई केंद्र में कम ही हैं।

.. .. .. .. .. .. .. .. ……. बाकी त जे है से हइये है।

@graciousgoon

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