हिंदू धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाना कहां तक उचित है??

भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। लेकिन इस स्वतंत्रता के आधार पर आप किसी धर्म की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा सकते जैसा तनिष्क ने किया। जैसा कि विज्ञापन से साफ़ था कि ये लव जिहाद को प्रोत्साहन देगा। अभी हमारे सामने ढेरो ऐसे उदाहरण मौजूद है जहां हिन्दू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर खास समुदाय द्वारा उनका शोषण किया जाता है तथा धर्म परिवर्तन ना करने पर वीभत्स तरीके से मार दिया जाता है। हाल ही में लखनऊ तथा गाजियाबाद में घटी घटना इसके जीवंत उदाहरण हैं।

जरा आप विचार करिए कि विज्ञापन में दिखाए गए पात्रों के धर्म एक दूसरे से बदल दिए जाएं तो क्या देश में अभी शांति रहती। क्या तनिष्क के शोरूम सुरक्षित रहते। क्या लिबरल तब भी अभिभ्यक्ती की स्वतन्त्रता की बात करते। तो मैं बता दूं ऐसा कुछ नहीं होता, भारत में हिंसक प्रदर्शन चालू हो जाते, तनिष्क के स्टोर तोड़ दिए जाते तथा लिबरल बिलाप करना शुरू कर देते की देश में असहिष्णुता बढ़ गया है। तनिष्क ने विज्ञापन वापस ले लिया क्यूंकि उसे घाटे का दर था और ये सही भी था उसको तीन हजार करोड़ का शेयर मार्केट में नुकसान हो गया था।

लेकिन तनिष्क ने जो पत्र जारी किया उसके अंतिम पंक्ति में उसने धूर्तता दिखाई, उसने कहा कि कर्मचारियों के सुरक्षा के लिए उसे ऐसा करना पड़ा। उसके कर्मचारियों को किस्से डर था जबकि विरोध एकदम शांतिपूर्ण था कहीं कोई हिंसक प्रदर्शन नहीं हुआ। गुजरात से मारपीट की खबर आई पर वो भी झूठी निकली। हिन्दू धर्म की महान परिपाटी रही है कि हम अहिंसावादी रहे हैं। हम वसुधैव कुटुंबकम् और सर्व धर्म सद्भाव को मानने वाले लोग हैं। कुछ लोग हमारे इसी सहिष्णुता का फ़ायदा उठाते हैं तथा हिन्दू धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अवसर ढूंढ़ते रहते हैं क्यूंकि हमसे कोई खतरा नहीं होता है क्यूंकि हम अहिंसावादी रहे हैं हम किसी पर पहले हमला नहीं करते हैं।

हमेशा से होता आया है कि कंपनियां हिन्दू त्योहारों के अवसर पर विज्ञापन के माध्यम से विवाद पैदा करती हैं ताकि उनके प्रोडक्ट को प्रसिद्धि मिल सके पर इसबार उल्टा हो गया। हमें ऐसे प्रोडक्ट या कंपनी को विख्यात नहीं कुख्यात बनाना पड़ेगा ताकि कंपनियां ऐसे विज्ञापन पास करने से पहले दस बार सोचे।

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