भारत के सबसे बड़े बलात्कार काण्ड की कहानी

भारत के सबसे बड़े बलात्कार काण्ड की कहानी

साल १९९५, अजमेर के लोकल अखबार “नवज्योति” में काम करने वाले संतोष गुप्ता लोगो की भीड़ से थक चुके थे, अख़बार के दफ्तर में वैसे तो भीड़ ना रहती पर इस भीड़ के चेहरे पर एक डर था, आँखों में सुखा और होठो पर कपकपाहट लिए आने वाला हर कोई एक तस्वीर ले कर आता और पूछता, “क्या मेरी लड़की उनमे से एक तो नहीं?”

गुप्ता को काम ने नहीं जिम्मेदारी ने थका दिया था. अखबार के में दफ्तर शेरावाली की तस्वीर भी अब उनसे देखि नहीं जाती. डर लगता के कोई आगे आकर पूछ ले, क्या ये भी थी?

इस कहानी की शुरुवात हुई १९९२ में. और खत्म अभी तक नहीं हुई. दीवारों के रंग और खबरें पुरानी होती गई, नई चढ़ती गई, कही कोई पपड़ी निकल आये तो असली रंग याद दिलाता था. आज वो पपड़ी थी इस वारदात के छब्बीस साल बाद फरवरी २०१५ में आखरी गुनहगार अजमेर कोर्ट के सामने आया था. पपड़ी खुल गई.

उसका नाम सुहैल गनी चिश्ती.

अप्रेल १९९२ में गुप्ताने अपने अखबार में लिखे एक आर्टिकल से पुरे अजमेर के साथ देश की नींद उडा दी थी. अजमेर जो ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दर्गा के लिए जाना जाता है, आज उस पर एक अलग रंग छिड़का गया था. कुछ लडकियों की अधनंगी तस्वीरे और अठाराह आरोपियों के नाम उस रिपोर्ट में दर्ज थे. मामला ये था के अजमेर के सोफिया गर्ल्स स्कुल में पढने वाली लगभग सौ से भी ज्यादा लडकियों को ब्लैकमेल कर उन पर बलात्कार किया गया था. और ये करने वाले थे अठारह लोग. उनका मुखिया था फ़ारुक चिश्ती, जो उस वर अजमेर इंडियन यूथ कांग्रेस का प्रेसिडेंट था, और दो प्रमुख आरोपी थे नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती जो अजमेर इंडियन नेशनल कांग्रेस के वाइज प्रेसिडेंट और जॉइंट सेक्रेटरी थे. इन के अलावा कुल १८ लोगो के मान सामने आये. और मोईनुद्दीन चिश्ती के नाम से पहचाने जाने वाले शहर के लिए शर्म की बात तो ये थी की ये लोग चिश्ती थे और इनमे से कई लोगो के घरवाले दरगाह का कारोबार देखा करते थे.

फ़ारुक ने सोफिया सेकंडरी स्कुल पे पढ़ रही एक लड़की को अपने पैसे और ओहदे से खुद पर फ़िदा किया और फार्म हाउस ले गया, वहां उसके साथ जिस्मानी ताल्लुकात बनाते हुए फोटो निकाले और उसे दूसरी लडकियों को वहा ले आने के लिए कहा, और ये धमकी दी की अगर उसने ये नहीं किया, तो ये तस्वीरे अजमेर भर में बाँट दूंगा. दरी हुई सेकंडरी स्कुल की लड़की जिसने अब तक दसवीं भी पास नहीं की थी उसने दूसरी लड़की को फसाया, फ़ारुक के साथ और लोग जुड़ते गए. यहाँ तक की निगेटिव डेवलप करने वाले और फोटो छापने वाले आदमियों ने भी मौके का फायदा उठाया. एक एक कर के ये तादाद सौ तक बढ़ गई.फिर इन्ही लोगो ने वहां के ऑफिसर्स और नेताओ को लड़कियां पहुँचाना शुरू किया.

“नवज्योति” के तत्कालीन संपादक दीनबंधु चौधरी कहते है के प्रशासन को इस पुरे काण्ड की जानकारी थी पर कोई कुछ नहीं कर रहा था, आखिर हमने फैसला लिया ये खबर छाप दी जाए फिर लोग जो करना हैं कर लेंगे. जब खबर बाहर आ गई पुलिस ने हरकत कीपहले आठ लोगो के नाम FIR दर्ज हुआ और फिर अठारह लोगो के नाम सामने आये. अजमेर तिन दिनों के लिए बंद था, तब अजमेर के आय जी रहे ओमेन्द्र भारद्वाज ने कहाँ की उसके बाद और लड़कियां कंप्लेंट ले कर नहीं आई, इसकी वजह शर्म और घरवालो की इज्जत भी हो सकता है. उसी स्कुल में पढने वाली सात आठ लड़कियों ने एक के पीछे एक आत्महत्या करनी शुरू कर दी.इन लड़कियों में कई लड़कियां IAS और IPS ऑफिसर के घर से भी थी. कहां जाता है के लड़कियां बस सौं नहीं.. कई सौ थी.

फिर इस बात पर सियासत शुरू हो गई, ज्यो की बलात्कार की हुई लड़कयाँ ज्यादातर हिन्दू थी, और करने वाले लगभग सभी मुसलमान इस बलात्कार की वारदात ने मजहबी रंग ले लिया और दंगे ना हो इस वजह से ये बात यहीं दबाने की साजिशे शुरू हो गई, जब की उसी वक्त पुरे देश में, बाबरी और मुंबई बम ब्लास्ट की वजह से दंगे भडके हुए थे.

इतनी लड़कियों में से सिर्फ बारा लड़कियां आगे आई और केस फ़ाइल की गई उनमे भी दस पीछे हट गई. पर लडकियों की नंगी फोटोज ने बलात्कार पीड़िता और करनेवालों की पहचान करवा दी.

छः साल बाद केस का फैसला हुआ.

जिनपर केस दर्ज हुए थे उनमे से एक पुरुषोत्तम नाम का हिन्दू था उसने १९९४ में बेल पे छुटने पर आत्महत्या कर दी. फारुक चिस्ती ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया. बाकी अठारह में से सिर्फ आठ गुनाहगारो को बस दस साल की सजा मिली. सुहैल को भी बेल मिल गई अब सुहैल कहां हैं किसी को पता नहीं, फ़ारुक का मानसिक संतुलन शायद ठीक हुआ होगा.

पर आज भी गुप्ता के टेबल पर कोई लड़का अपनी माँ की या कोई आदमी अपनी बीबी की तस्वीर ला रख पूछता है.
क्या ये भी थी?

मकरंद
*All names and places are real, for reference search Ajmer 1992 case.

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