जांबाज पुलिस

जांबाज पुलिस की कार्यवाही! IPC का सेक्शन 295A। दोषी कौन है। कोलकाता के गेस्ट हाउस से मदरसा के शिक्षकों को क्यों निकला गया? बुकिंग था कि नही! क्या गेस्ट हाउस में रूम खाली था या नहीं? जाँच का विषय है। निसंदेह धार्मिक आधार पर भेदभाव नही होनी चाहिए। परन्तु जांच होने से पहले ही गिरफ्तारी? सतारुढ़ दल और पुलिस हमेशा से ही इस सेक्शन का फायदा उठती रही है।
सेक्शन दुरुपयोग और जांबाज पुलिस की करवाही पर रचित एक गाथा।

जांबाज पुलिस

अखबार के मुख्य पृष्ठ पर छपे शीर्षक “मदरसा शिक्षकों को गेस्ट हाउस से निकाला” पढ़ कर मैडम जी का खून गरम हो गया।
भद्रलोक संग अभद्र व्यवहार! शालीन व शिष्ट गुरुओं के साथ रंग-भेद! कुलीन विचार व अहिंसा के प्रवर्तकों पर जुल्म! अत्याचार! बस क्या था ? मैडम जी का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुँचा।

“अमार सोनार बंगला! दुष्टों मानुसदेर काज काखूनों बर्दास्त करा जाबे ना! कालप्रिट(culprit)!” –मैडम की दहाड़ से गोरा बाज़ार पुलिस हेडक्वाटर गूंज उठा। आला अधिकारियों के रोंगटें खड़े हो गए। मैडम जी का ऐसा गुस्सा पुलिसवाले पहले कभी नही देखे थे। नथुना फूलकर सेब की तरह लाल हो गया था। गले की तनी हुई नसें भी साफ दिख रही थी। पुनः जोर का चीत्कार– “विरोधीदलेर लोक!बीजेपीर गुंडा! पुट डेम बिहाइंड द बार राइट नाउ!” पुलिस अधिकारी सर झुकाएं कांप रहे थे। सारा बदन पसीने से लथपथ। मानो सांप सूंघ गया हो। काटो तो तनिक भी खून नहीं।

अगले ही पल शहर के सभी थानों के रेडियो वायरलेस और फैक्स मशीन थर्रा उठे। करकराहट में सब कुछ खो गया — “अल्फा! चार्ली! ओवर! पूरी पुलिस फ़ोर्स लगा दो। ओवर! कलप्रिट भागने न पाए! ओवर!”

देखते ही देखते शहर की सड़कें पुलिस वाहन से पट गयी। सायरन की गूंज से सारा शहर सिहर उठा –हुऊऊ…. हुऊऊ…. हुऊऊ……..!
टुऊऊ…टुऊऊ…टुऊऊ…!
कोय ….कोय…. कोय…!
कलप्रिट की छिपने की पूरी कोशिश नाकाम। भागने के सारे रास्ते बंद। और लीजिए! महज चंद घंटो में पुलिस ने शानदार बहादुरी दिखाते हुए चारों दुष्टों को धर दबोची।
कलप्रिट के हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़िया जकड़ दी गयी। धर्मद्रोही! अल्पसंख्यकद्रोही! बापी दास , कलटू हलदर, गौतम सेन और तपन मजूमदार! क्या मजाल की अब ये तनिक भी हरकत कर सके। कलप्रिट निरीह प्राणी की भांति गिड़गिड़ा रहे थे–“सार! टीचरदेर बुकिंग छीलो ना। द्वितीय अतिथिदेर अग्रिम बुकिंग करा हयछीलो।” पर इनकी सुनता कौन? “अमार दोष नाय। आमी निर्दोष।”

“मैडमजी! मिशन सक्सेसफुल! चारों कलप्रिट पुलिस हिरासत में! “–बड़े अधिकरी ने गर्व से बोला।
“दारुण! अनेक भालो ! टीच देम गुड लेशन! सो दैट नो बॉडी विल ट्राय टू डिस्टर्ब कम्युनल हार्मोनी इन बंगाल! मा माटीर मानुस ! जय बंगला! अमार बंगला! सोनार बंगला! विश्व बंगला!” मैडम जी ने फोन रखते हुए लंबी गहरी सांस ली।

मैडमजी का गुस्सा अब शांत हो चुका था। नथुना और तनी हुई नसें सामान्य अवस्था मे आ चुके थे। चेहरे पर खुशी लौट आयी थी।
अखबार और न्यूज़ चैनलों में कोलकाता पुलिस की बहादुरी और हैरतअंगेज कारनामों की सर्वत्र जय जयकार होने लगी। न्यूज़ चैनलों पर घमासान मचा हुआ था। पक्ष विपक्ष में चर्चा जोरों पर थी। “देश की जांबाज पुलिस” रात आठ बजे! NDTV प्राइम टाइम में देखना न भूले– कबीश के साथ! खबर वही जो सच दिखाय! अर्ध्यझूठ को सच बनाय!

“हमारी पुलिस ने वीरता का कार्य किया है! जांबाज अफसरों ने जान पर खेल कर इन गुंडों को आरेस्ट किया है।” TV स्क्रीन पर मंत्री महोदय का इंटरव्यू फ़्लैश हो रहा था। “कलप्रिट पुलिस को चकमा देने की कोशिश कर रहे थे परन्तु हमारे बहादुर जवानों के चंगुल से बच पाना मुश्किल था। मंत्री जी पुलिस की प्रशंसा करते थकते नही। “पुलिस वालों की जितनी भी सराहना की जाय कम है!”

“देखिए! कालप्रिट गेस्ट हाउस के संचालक है। इन लोगों ने मदरसा से आये शिक्षकों को अपने गेस्ट हाउस में ठहराने से मना कर दिया। धार्मिक रंग-भेद का गंभीर मामला है”–अगले “टाइम्स ऑफ कोलकाता” के मुख्य पृष्ठ पर पुलिस कमिश्नर का इंटरव्यू।
“क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट! डेलिब्रेट मालिशस एक्ट! IPC सेक्शन 295A, 298, 406,34 …….में केस दर्ज कर जांच चल रही है।”

पत्रकार के दूसरे प्रश्न के जवाब में कमिश्नर साहब बोले– “बीजेपी और आरएसएस के एजेंट पाए जाने पर सख्त कार्यवाही होगी। बुकिंग था कि नहीं यह जांच का विषय नहीं है! धार्मिक आधार पर भेदभाव बर्दास्त नही होगी। “नो बॉडी विल ट्राय टू डिस्टर्ब कम्युनल हार्मोनी इन बंगाल! मा माटीर मानुस! जय बंगला! अमार बंगला! सोनार बंगला! विश्व बंगला! जय कोलकाता पुलिस।”

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