कोरोना वायरस : विश्व राजनीति के बदलते आयाम

Russian President President Vladimir Putin holds up a glass during a toast at a luncheon hosted by United Nations Secretary-General Ban Ki-moon, Monday, Sept. 28, 2015, at United Nations headquarters. (AP Photo/Andrew Harnik)

विश्व राजनीति में महाशक्तियों के निर्माण अथवा विघटन के पीछे उनका किसी विशेष परिस्थिति (किसी आपदा में, गृह-युद्ध, वैश्विक महामारी, आर्थिक तंगी या आतंकवाद) में प्रदर्शन रहता है. सरल शब्दों में कहें तो समय-समय पर घटित होने वाले विभिन्न घटनाक्रम महाशक्तियों के अस्तित्व और भूमिका में बदलाव लाते हैं जिसके फलस्वरूप निर्माण और विघटन की ये स्वाभाविक प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है एवं इसी दौरान नए एवं छोटे राष्ट्रों का उद्भव भी विश्व पटल पर होता है. वर्तमान विश्व राजनीतिक व्यवस्था में अमेरिका, चीन व रूस ऐसे देश हैं, जो अपने-अपने धुरों की अगुवाई कर महाशक्ति बन कर उभरे हैं. राजनीतिक शब्दवाली में इसे ‘खेमेबाजी’ कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

बहरहाल, इन राष्ट्रों के महाशक्तियों बनने में इनके द्वारा विशेषतया 20वीं सदी में किए गए क्रियाकलाप है. जहाँ एक ओर रूस और अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पनपी परिस्थितियों स्वरूप शीतयुद्ध में परस्पर प्रतिस्पर्धा के दौरान जन्मे तो वहीँ दूसरी ओर चीन ने 20वीं सदी के मध्य में राजनीतिक और आर्थिक परंपरा के साम्यवादी लेकिन नीतियों के जन कल्याणकारी स्वरूप को अपनाया और महाशक्ति बनने की ओर चल पड़ा…चीन के राजनीतिक और आर्थिक उद्भव और विकास की ये यात्रा आज भी शोधार्थियों के लिए काफी रोचक और ज्ञानवर्धक विषय है. इन देशों के अतिरिक्त अन्य देशों ने भी अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से, चाहे पूरी दुनिया को प्रभावित ना किया हो लेकिन कम से कम उन्होंने अपने भूगोल और प्रसार क्षेत्र का दायरा बढाया है.

खैर, वर्तमान दौर भी महाशक्तियों के बनने और बिगड़ने का दौर है. अप्रत्याशित महामारी कोरोना वायरस ने सम्पूर्ण विश्व में कोहराम मचा दिया है. जानकारों की माने तो ये महामारी प्रत्यक्ष रूप में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मानव इतिहास की सबसे भयावह त्रासदी है. अत्याधुनिक तकनीक के दौर में उपजे इन हालातों को विशेषज्ञ इसे अमेरिका और चीन के मध्य लम्बे समय से से चल रहे कथित ‘ट्रेड-वॉर’ में चीन का अमेरिका के खिलाफ अप्रत्यक्ष हमला बता रहे हैं जिसे नासमझदारी से भरे तथाकथित ‘जैव-युद्ध’ का आगाज का फैसला माना जा रहा है. काफी पहले से ही अतिसंवेदनशील चल रहे अमेरिका-चीन संबंधों में खटास का ये दौर, अहम मोड़ है और जिसकी एक झलक अमेरिकियों द्वारा सार्वजनिक तौर पर कोरोना वायरस को ‘चीनी वायरस’ कहना व अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर चीन विरोधी राष्ट्रों के एकजुट होकर खुले अखाड़े बनाने के आह्वान में दिखाई देती है. साथ ही अमेरिका, कोरोना वायरस से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने और चीन का समर्थन करने के कारण, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से भी नाराज चल रहा है. अमेरिका का ये व्यवहार सही है या गलत, ये एक अलग चर्चा का विषय है.

सवाल है की अब आगे क्या? सरकारों द्वारा नागरिकों की सुरक्षा की दृष्टि से लगाए गए ‘प्रतिबन्ध’, जाहिर तौर पर ‘नियंत्रण’ में बदल जायेंगे और इसी कड़ी में सरकार को हमेशा आड़े हाथों लेने वाले मानवाधिकार संगठनों में तेज हलचल पैदा होगी तथा वे सरकार के प्रति और अधिक मुखर हो उठेंगे. वैमनस्य और सतत युद्ध की आशंका से ग्रसित रहने वाले इस बहुध्रुवीय विश्व को पहले की तुलना में अब और सतर्क रहना होगा लेकिन इस दौरान उन्हें अपने नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखना होगा जिसके लिए अंततोगत्वा वे प्रतिबद्ध और कटिबद्ध हैं.

केशव शर्मा
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर

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