साधु, सुशांत और सीबीई

हाल कुछ महीनों से अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु का मामला काफी सुर्खियों में है। आत्महत्या से शुरू हुई बात से लेकर हत्या के आरोप के बीच ये मामला काफी पेचीदा हो गया है। दो राज्य सरकार के बीच राजनीतिक कश्मकश जोरो पर है। इस जोर जबर्दरती में मामला उच्चतम न्यायालय तक जा पहुंचा कि पूरे मामले पर सीबीई जाँच हो।

जरिएइस पूरी उठापटक में भारत की जनता ने भी सोशल मीडिया के ज़रिए सीबीई की जाँच की माँग की और हमारे देखते देखते आज न्यायालय ने जाँच का फैसला सुना दिया।

पर इस लेख से उसी भारत की जनता से सवाल करना चाहता हूं…. जिसने पालघर में हुए साधुओ की हत्या के मामले में ऐसा ज़ोर क्यों नहीं दिखाया?? यहाँ तक की उस मामले में साधुओं की तरफ से वकील की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है, पर शांति बनी रही।

जैसे कंगना रनोट ने अर्नब के इंटरव्यू में बॉलीवुड को हाशिए पर लिया ..ठीक ऐसा कई लोगो ने पालघर हत्याकांड के समय भी किया। पर जनता की चुप्पी बनी रही।

सुशांत सिंह राजपूत एक उम्दा कलाकार थे। पवित्र रिश्ता के मानव से लेकर दिल बेचारा के मैनी तक हर क़िरदार उन्होंने बखुबी से निभाया। भारत की जनता के चहेते थे, तो रोष भी जायज है पर न्याय पर तो उन साधुओं और उस मामले में लगे वालिक साहब का भी अधिकार था। पूरे मामले का वीडियो फुटेज तक मौजूद था पर रोष कम, जांच की माँग कम … क्यों???

क्योंकि वो सिर्फ साधारण मानव थे, पवित्र रिश्ता के मानव नहीं। या फिर साधु हिंदू थे तो पंथ आड़े आ गया, जो एक अभिनेता के न्याय के लिए सुरक्षित रहा।

हम में से बहुत लोग सेक्युलर शब्द सुनते ही आगबबूला हो जाते है पर इस तरह के मुद्दे पर इच्छा अनुसार चुप्पी हमे भी उन्हीं सेकुलरिज्म के दंभी लोगो की कतार में खड़ा कर देती है जिन्हें हम गरियाने में एक टक कसर नही छोड़ते।

पूछता है भारत, कह कर कुछ आवाज़े आई तो 100 से ज्यादा एफ आई आर कर उन्हें शांत किया जाने लगा। आज भले ही हम चुप्पी साधे बैठे रहे पर कल हमारे घर मे सोता भारत हम से पूछेगा जरूर कि हम किस मानव के लिए खड़े हुए औऱ किस के लिए नहीं। वो हमारे चयनात्मक रवैये पर जरूर सवाल करेगा।

Abhimanyu Rathore: Non IIT Engineer. Oil and Gas .
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