मंदिरों के देश में न्याय मांगते मंदिर

भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है, इस देश में कई मंदिर ऐसे हैं जो अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं वो सदियों पुराने हैं। शासक बदले, साम्राज्य बदला पर मंदिरें अपने स्थान पर खड़ी रहीं। ये चीज़ें तब बदली जब इस देश पर इस्लामी आक्रांताओं की नज़र पड़ी और भारत में कत्लेआम का सिलसिला शुरू हुआ, वो एक के बाद एक राज्य फतह करते गए और रास्ते में आने वाले हज़ारों मन्दिरों को तोड़ते गए।

रामजन्मभूमि विवाद का मामला जो कि अब सुलझ गया है के बारे में तो हम सभी जानते हैं पर देश में ये एक अकेला मामला नहीं है ऐसे और भी कई विवादित स्थल हैं जिनका विवाद सुलझाना अभी भी बाकी है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ प्रमुख मंदिरों के बारे में जो आज मस्जिद का रूप लिए हुए हैं और न्याय मांग रहे हैं।

काशी विश्वनाथ

इस सूची में पहला नाम आता है काशी विश्वनाथ मंदिर का जिसे औरंगज़ेब के आदेश पर तोड़ दिया गया था और इसके जगह पर मस्जिद बना दी गयी थी जिसकी दीवारों पर आज भी मंदिर के अवशेष दिखते हैं।आज का विश्वनाथ मंदिर अपने मूल स्थान पर नहीं बना है। वाराणसी में ही स्थित आलमगीर मस्जिद भी इसी ‘हाईजैक’ का उदाहरण है।

कृष्ण जन्मभूमि मंदिर

इस सूची में दूसरा नाम आता है कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का, जहाँ पर कभी मंदिर हुआ करता है वहाँ पर आज मंदिर ना हो कर शाही मस्जिद बनी हुई है, कृष्ण मंदिर ठीक इसके बगल में है पर वो जन्मस्थान पर नहीं हैं। औरंगज़ेब ने मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनवाई थी।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में स्थित अटाला मस्जिद पहले एक मंदिर हुआ करता था जिसे इब्राहिम नायीब बारबक ने सन 1364 में तुड़वाकर मस्जिद बनाई थी जिसे आज अटाला मस्जिद के नाम से जानते हैं।

आदिनाथ मंदिर

पश्चिम बंगाल के मालदा में स्थित अदीना मस्जिद पहले आदिनाथ मंदिर था जो भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित था जिसे तुड़वाकर मस्जिद बना दिया गया, मस्जिद की दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं की नक्काशियां मौजूद हैं जो इसके मंदिर होने का प्रमाण देती है।

मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने की ये सूची यहीं खत्म नहीं होती है अजमेर का ढ़ाई दिन का झोपड़ा, धार का भोजशाला, जामा मस्जिद अहमदाबाद, बीजा मंडल मस्जिद विदिशा ये कुछ और उदाहरण हैं। अब बात करते हैं कि इस विवाद के निपटारे के लिए कोई प्रयास किया गया या नहीं?

पूर्ववर्ती सरकारों को ये अंदेशा था कि आगे चलकर हिंदू संगठन ये मुद्दा उठाएंगे इसलिए 1991 में उपासना स्थल अधिनियम लाया गया जिसमें ये प्रावधान था कि 15 अगस्त 1947 तक जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में थे वो उसी स्वरूप में रहेंगे, क्या ये कानून पक्षपाती नहीं है?

टीवी इंटरव्यू में मौलानाओं को आप ये अक्सर कहते हुए सुनेंगे कि इस्लाम में मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाना हराम है, तो क्या वो एक हराम मस्जिद में नमाज़ पढ़ना पसंद करते हैं?

देश में आपसी भाईचारे, गंगा जमुनी तहजीब की बात होती है तो क्या मंदिर तोड़ कर बने मस्जिद में नमाज़ पढ़ना गंगा जमुनी तहजीब का उदाहरण है या इस्लामी आक्रांताओं के गुणगान करने का? क्या मुस्लिमों को स्वेच्छा से इन स्थानों को इनके असली हकदार को नहीं दे देनी चाहिए?

अब समय है कि क्रूर आक्रमणकारियों द्वारा इतिहास में किये गए कुकृत्यों को साफ कर के मस्जिदों पर अपना दावा छोड़ कर एकता का उदाहरण पेश करना चाहिए, नहीं तो मंदिर के ऊपर बने मस्जिद की मौजूदगी के बाद भी इस देश मे धर्मनिरपेक्षता, आपसी भाईचारे और गंगा जमुनी तहजीब का बात करना एक भद्दा मजाक होगा।

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