शिक्षा की भारतीय पद्धति

education

भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। क्यों? क्यों कि भारत समृद्ध सुखी सुशिक्षित और सुसंस्कारी था। यहाँ की शिक्षा पद्धति व्यवहार और कौशल से परिपूर्ण थी, साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक कार्य नैतिकता और धार्मिकता से सम्पन्न करना सिखाया जाता था। जब प्रत्येक को अपनी रूचि योग्यता और स्तर अनुरूप कार्य मिल जाता था तो वह अपने सम्पूर्ण मनोयोग से उसे कुशलता से सम्पन्न करता था, क्योंकि उसे नैतिकता संयम और त्याग का पाठ साथ ही पढ़ा दिया जाता था।

अतः समाज में निष्ठा और ईमानदारी की कभी कमी नही रहती और भ्रष्टाचार लालच कृतघ्नता का सर्वथा अभाव परिलक्षित होता

परन्तु विदेशी आक्रान्ताओं ने अपनी कुटिल चाल नीति और स्वार्थ संदर्शों में लिप्त होकर हमारी ऋषि मुनियों द्वारा शोधित पालित शिक्षा प्रणाली को छिन्न भिन्न कर समाज को कौशलहीन, दिशाहीन, संस्कृति हीन, चरित्रहीन, आत्मबल हीन और स्वाभिमानहीन बना दिया।

हमारे यहाँ घोषित नई शिक्षा नीति को रोजगारोन्मुखी बनाने का प्रयास किया जा रहा है वह आशान्वित व गौरवान्वित भारत निर्माण की दिशा में सर्वोत्कृष्ट कदम साबित होगा।

वामपंथी तथा तथाकथित विदेशी इतिहासकारों ने भारतीय जनता के मन मस्तिष्क में हीन भावना पैदा करने की दृष्टि से ऐतिहासिक तथ्यों व परिदृश्यों का तोड़ मरोड़ कर मन गड़न्त व्याख्या कर लेखन किया । नई शिक्षा नीति नई अवधारणाओं के साथ स्वर्णिम भारत का पुनर्निर्माण अवश्य करेगी।

लेखक – डा . कमल किशोर वर्मा

डाॅ. कमल किशोर वर्मा: दार्शनिक लेखक एवं कवि, भारतीय संस्कृति एवं परंपरा चिंतक
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