समीक्षा : शी जिनपिंग अपनी नाकामी छुपाने के लिए दुनिया से बैर मोल ले रहे है

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वो आदमी हैं जिसके पास चीन तथा इसके सभी संस्थानों पर पूरा नियंत्रण है। पूरे चीन पर जिनपिंग का एकछत्र राज होता है और उसे चीन के अंदर चुनौती देने वाला कोई नहीं है। ऐसे में एक सवाल उठता है कि आखिर जिनपिंग क्यों सभी देशों से बैर मोल ले रहे हैं और चीन की समस्याएं बढ़ा रहे हैं। आखिर क्यों चीन की सेना हर तरफ अतिक्रमण करने की कोशिश में लगी हुई है, और अपने सभी पड़ोसियों से दुश्मनी मोल ले रही है। अक्सर कोई देश देश दूसरे देश पर कब्जा करने की नियत से हमला इसलिए करता है ताकि वह अपनी जनता का समर्थन प्राप्त कर सके। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि वह देश मुद्दों को भटका सके जो उसे डरा रहे हो। चीन विस्तार बात क्यों कर रहा है

क्या इस विस्तारवाद के पीछे कोई ऐसी बात है जो शी जिनपिंग को डरा रही है? इसको जानने के लिए हमें कुछ साल पहले के समय में जाने की जरूरत है। शी जिनपिंग ने 2013 में चीन की सत्ता संभाली थी और तब से लेकर अब तक वह चीन के राष्ट्रपति बने हुए हैं। जब उन्होंने ने सत्ता संभाली थी तब उनका मिशन दुनिया के सामने यह साबित करने का था कि 21वीं सदी चीन की है।

 इसके लिए चीन के राष्ट्रपति ने 3 वायदे किए थे, जिनमें पहला 2020 तक गरीबी हटाना, दूसरा चीन को तकनीकी सुपर पावर बनाना और तीसरा मिशन बेल्ट और रोड प्रोजेक्ट का था। शी जिनपिंग का सत्ता में उदय  इन्हीं तीन वायदों के चलते हुआ था। हालांकि कुछ समय के लिए ही सही, पर चीन इन तीनों ही मामलों में असफल होता दिख रहा है। 

7 साल में गरीबी हटाने में विफल रहे जिनपिंग

चीन के लिए सब कुछ सही चल रहा था, पर वुहान में जन्मे  वायरस की वजह से सब कुछ अलग-थलग पड़ गया है। चीन कम से कम अगले कई सालों तक गरीबी नहीं हटा पाएगा। चीनी वायरस की वजह से उत्पन्न महामारी की वजह से मार्च तक 1 करोड़ 80 लाख चीनियों को बेरोजगार होना पड़ा। ऐसे में जिनपिंग का 2020 में गरीबी हटाने का वादा पूरा नहीं होने वाला है। कोरोनावायरस की वजह से लगे झटके की वजह से चीन अब जीडीपी का टारगेट तक भी नहीं सेट कर रहा है।

टेक्निकल सुपर पावर का सपना अधूरा रह जाएगा

दूसरे वायदे की बात करें तो चीन के टेक सुपरपावर बनने में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाली कंपनी हुआवेई थी। इस कंपनी ने जेडटीई के साथ मिलकर दुनिया के सभी देशों में मजबूत पकड़ बना ली थी। हालांकि चाइना के इस मिशन को झटका तब लगा जब अमेरिका ऑस्ट्रेलिया जापान और न्यूजीलैंड जैसे देशों ने हुआवेई पर पाबंदी लगा दी। इसके तुरंत बाद भारत में 59 चीनी एप्स की छुट्टी कर दी गई। यूरोपियन यूनियन ने भी हुआवेई को बैन करने के लिए तत्परता दिखाई है। ब्रिटेन भी इसपर विचार कर रहा था। कई सारे देश भी इस तरह के प्रतिबंध लगाने के बारे में सोच रहे हैं ऐसे में चीन का टेक्निकल सुपर पावर बनने का सपना, सपना ही रह जाएगा।

रोड एंड बेल्ट परियोजना की नाकामी

चीन का सबसे महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट भी लटकता हुआ नजर आ रहा है। महामारी की वजह से चीन के कई सारे प्रोजेक्ट कैंसिल होते जा रहे हैं। कई देशों ने चीन से मिले लोन की समीक्षा करने को कहा है। इजिप्ट ने फरवरी में एक पावर प्लांट का प्रोजेक्ट कैंसिल कर दिया था, जिसके बाद बांग्लादेश ने एक कोल प्रोजेक्ट को कैंसिल किया। पाकिस्तान भी चीन के द्वारा दिए गए लोन की भरपाई के लिए आसान शर्तें मांग रहा है, वही तंजानिया ने भी 75 हज़ार करोड़ के एक पोर्ट प्रोजेक्ट को कैंसिल कर दिया है। 

नाइजीरिया के प्रतिनिधि चीन के लोन की समस्या की मांग कर रहे हैं और सुनने में आ रहा है कि ज्यादातर अफ्रीकी देश चाह रहे हैं कि चीन उनके लोन माफ कर दे। गौरतलब है कि चीन ने अपने विस्तारवादी नीति के तहत पाकिस्तान की तरह ही अफ्रीकी देशों को कर्ज के जाल में फंसाने के लिए लगभग 11 लाख करोड़ का लोन दिया हुआ है। यह चीन के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है।

नाकामी छुपाने के लिए विस्तारवाद की नीति अपना रहे जिंगपिंग

 मतलब साफ है कि जिनपिंग अपने मंसूबों पर बुरी तरह नाकाम रहे हैं। जब वह सत्ता में आए थे तो वह चीन को सभी देशों का समर्थन प्राप्त था, लेकिन अब उल्टी गंगा बहती दिख रही है। चीन का हर मसले पर विरोध होता दिखाई दे रहा है। चीन की अब वह छवि नहीं रह गई जब उसके राष्ट्रपति का हर मंच पर बड़ी गर्मजोशी के साथ स्वागत होता था और उसके हर कदम का कोई विरोध नहीं किया जाता था।

 चीन की छवि अब एक वायरस बनाने वाले, पड़ोसियों की जमीन हथियाने वाले, मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले और अल्पसंख्यकों पर जुल्म ढाने वाले देश की है। यह सब सीधे सीधे तौर पर शी जिनपिंग और लोकतंत्र का गला घोटने वाली कम्युनिस्ट पार्टी के लिए खतरे का संकेत है। शायद इसीलिए शी जिनपिंग अपने देश की जनता का ध्यान भटकाने के लिए दूसरे देशों में हस्तक्षेप कर रहे हैं।

Utkarsh Mishra: उत्कर्ष मिश्र बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में अध्ययनरत हैं। खेल व राजनीतिक विषयों पर इनकी समीक्षा कई पोर्टल पर पब्लिश हुई है। इन्होंने स्पोर्ट्सकीड़ा के साथ क्रिकेट और रेसलिंग के लेखन और समीक्षा पर 2 वर्ष तक काम किया है। वह sportsjagran.com पर भी लिखते रहते हैं।
Disqus Comments Loading...