“वीरता ही शांति की पूर्व शर्त होती है, निर्बल कभी शांति स्थापित नहीं कर पाते”

गालवान में हुई भारत-चीन सैनिकों की हिंसक झड़प के बाद से ही सीमा पर तनाव बना हुआ था। इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने लेह के दौरे पर जाकर चीन ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को एक बार फिर से ये सन्देश दे दिया है कि भारत अब अपनी नीतियों को बदल चुका है और सिर्फ अपनी सुरक्षा करने में ही नहीं बल्कि दुश्मन को सबक सिखाने में भी माहिर है और भविष्य में उत्पन्न होने वाली हर परिस्तिथि के लिए भी तैयार है।

प्रधानमंत्री ने लेह में मौजूद भारतीय जवानों को संबोधित करते हुए कहा, “वीरता ही शांति की पूर्व शर्त होती है। निर्बल कभी शांति स्थापित नहीं कर पाते। हम कृष्ण को बांसुरी और सुदर्शन दोनों रूपों में पूजते हैं।”

प्रधानमंत्री के इन शब्दों को आसान भाषा में समझा जाए तो ये भारतीय सनातन परंपरा की उसी धार्मिक सीख की ओर इशारा करते हैं जिसमें कहा गया है “अहिंसा परमो धर्म:, धर्म हिंसा तदैव च:” यानि अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है किन्तु शांति/धर्म की स्थापना के लिए यदि हिंसा की जरूरत हो, तो वो करना भी धर्म ही है।

प्रधानमंत्री ने कहा “शांति कभी निर्बलों द्वारा स्थापित नहीं की जा सकती” अर्थात् शांति स्थापित करने का कार्य वीरों का है। जिसके लिए उन्हें अधर्म/अराजकता/शत्रु का विनाश करना पड़ता है। हिंसा के विरुद्ध भयावह प्रतिहिंसा करनी ही पड़ती है।

उन्होंने कहा हम कृष्ण को बांसुरी और सुदर्शन दोनों रूपों में पूजते हैं। संदेश साफ है कि भारत शांति का पक्षधर है लेकिन शांति स्थपित करने के लिए वो सब करेगा जो हमारी भारतीय सनातन संस्कृति कहती है और जो इतिहास में हुआ है। महाभारत का युद्ध हो या रामायण की बात की जाए दोनों ही युद्ध शांति की स्थापना के लिए हुए। दोनों युद्धों से पूर्व अधर्मियों से धर्म के मार्ग पर आने की विनती की गई। किन्तु अंत में युद्ध से ही शांति को स्थापित किया गया।

प्रधानमंत्री मोदी का लेह दौरा सिर्फ एक सामान्य कूटनीतिक संदेश नहीं है बल्कि चीन को एक चेतावनी है। यदि भविष्य में भारतीय सेना की लेह में कोई बड़ी कार्यवाई भी होती दिखे तो आश्चर्य नहीं होगा।

Abhishek Singh: Columnist : Politics. National Issues. Public Policies.
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