एनकाउन्टर

छोड़ देते हैं तो खादी बदनाम
और मार देते हैं तो खाकी बदनाम।

इस देश में जाने अनजाने में अपराधियों के कितने वकील (गैर- पेशेवर, क्योंकि पेशेवर तो अफजल के case भी लड़ लेते हैं) तैयार हो जाते हैं। Encounter इसलिये किया कि कईयों का नाम बाहर न आ पाये! पहले नहीं कर सकते थे क्या, खुद ही मिले हुए लगते हैं! ब्राह्मणवाद का असली चेहरा! वगैरह वगैरह।

कोई पत्रकार encounter के बाद की माँ की संवेदनाओं की coverage चाहता है तो कोई बीवी-बच्चों के चेहरे के क्षत-विक्षत हालात। हद तो तब होती है जब चार दिन के गली मोहल्ले के सोशल मीडिया पत्रकार अपनी चारानी छाप रिपोर्टिंग के अनुभव का हवाला देकर सीधे निष्कर्ष निकाल कर रख देते हैं फिर बाद में भले ही पोस्ट डिलीट करनी पड़े। भई, घर में बैठकर बकैती काटना बहुत आसान है और सिस्टम में रहकर ऐसे हालातों और दबावों से जूझते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना बहुत मुश्किल क्योंकि सरकारी तंत्र में दूबे जैसे लोगों के मुखबिरों और रक्षकों के अलावा और भी लोग है जो खाकी और खादी को सेवा मानते हैं। पहले अपने भीतर झांकिए क्योंकि हर शहर और समाज अपनी भौगोलिक सीमाओं में अनेकों अपराधियों और असमाजिक तत्वों को सहता है और उनका संरक्षण और महिमामंडन करने वाले सबसे पहले अपराधी यही घोर चिंतनशील और पाखंडी समाज और इसके लोग होते हैं जिनके हर कार्यक्रम और उद्घाटन समारोह के मुख्य और विशिष्ट अतिथि यही माफिया लोग होते हैं।

इस तरह जब एक दो कोडी का बदमाश खादी और खाकी की मर्यादाहीन नजरों से गुजरता है तो वे पारदर्शी आंखें उस दो कोडी के बदमाश को तराश कर बना देती है एक कुख्यात अपराधी। फिर देवों से मनवांछित वर प्राप्त कर दैत्य सदैव आतंक मचाते ही आये हैं। और जब सब कुछ हाथ से निकल जाता है तो जाति, धर्म और सिस्टम को कोसने वालों की फौज प्रभावी हो जाती है जो किसी समय में इन अपराधियों की रॉबिनहुडई की मुरीद हुआ करती थी।

Aman Acharya: एक लेखक जो रहता नहीं बीहड़ में लेकिन जानता है बगावत करना।
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