कब तक चुप रहूँ

आर्यभाषा को कहके दूषित और कर्कश
आर्यभाषी को कहके असभ्य
“तहजीब” की बाजारू खिचड़ी की पूजा करने वाले
बाल्यकाल से आर्यभाषी हूं! कब तक चुप रहूँ?

मजहबी शमशीर चलाके
धर्म और धार्मिक स्थलों का केवल नाश चाहके
खास हुकूक की अपेक्षा करने वाले
कृतयुग से वैदिक हूं! कब तक चुप रहूँ?

इतिहास का झूठा ज्ञान बांटके
सांस्कृतिक दासता का दर्स देके
औरंगजेब, अब्दाली, बाबर को महान बताने वाले
श्रीराम का वंशज हूं! कब तक चुप रहूँ?

स्वतंत्र्य को स्वराज्य ना बनाके
अवयान हेतु मेरी मत को द्वितीय स्थान देके
निर्मूल “मतनिरपेक्षता” के पंडित बनके फिरने वाले
धर्म और सधर्मियों की वाणि हूं! कब तक चुप रहूँ?

मुझे काट के, मार के, मेरा उत्पीडन कर मुझे भगाके
मेरी पवित्र भूमि के टुकड़े कर के
अपना काफिर मुक्त “अर्ज ए पाक” बनाने वाले
भारत को पुण्यभूमि मानता हूं! कब तक चुप रहूँ?

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