बौद्ध मत की वो बातें, जो बताई नहीं जाती (भाग 2)

भारत का अर्थ ही होता है, ‘ज्ञान का रथ’. भारतीय संस्कृति उसी रथ का नाम है. जिसमें अनेकों मत है और प्रत्येक मत ने अपने पूर्ववर्ती मतों से कुछ न कुछ सीखा है. नए मतों से भी पूर्ववर्ती मतों ने सीखा है. ऐसा कहीं और संभव नहीं है. ये केवल और केवल भारत में ही हो सकता है. ऐसा इसीलिए संभव है क्योंकि इस संस्कृति के आधार ग्रंथ वेदों ने ही पूर्ण स्पष्टता के साथ कहा है कि समस्त दिशाओं से सारे अच्छे विचार हमारे पास आए. ऐसी विन्रमता आज के स्वघोषित उदारवादी ज्ञानियों में भी नहीं पाई जाती. मैंने अपने पिछले लेख में बौद्धों के ब्रह्माण्ड का वर्णन किया था. इस लेख में भी उसी को आगे बढ़ाया जाएगा. जिन लोगों ने पहला लेख नहीं पढ़ा है. उन्हें इस लेख से वह रस नहीं प्राप्त होगा, जो हो सकता है. इसलिए पहले पिछला लेख पढ़ ले. वो भी इसी शीर्षक के साथ लिखा गया है.

उन स्वर्गों के ऊपर है, ब्रह्म लोक. इस ब्रह्म लोक में रहते है, ब्रह्मा. आपने कुछ भी गलत नहीं पढ़ा है. बौद्धों के ब्रह्माण्ड में ब्रह्म लोक भी है और उसमें ब्रह्मा भी है. ये ब्रह्म लोक स्वर्ग से ऊपर है. यही विचार हिन्दुओं का भी है. हिन्दुओं में भी ब्रह्म लोक को स्वर्ग से बढ़कर बताया जाता है. जहाँ तक प्रश्न ब्रह्मा का है तो हिन्दू दर्शन का आधार ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश है. बौद्धों के इस ब्रह्म लोक में आपका तन एवं मन पूर्णतया शुद्ध है. उपनिषदों में ब्रह्म का बहुत वर्णन मिलता है. उपनिषदों में भी ब्रह्म के लिंग को लेकर कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिलता है. ये अवश्य है कि जो संकेत मिलता है, उससे यही प्रतीत होता है कि उपनिषदों का ब्रह्मा पुरुष ही होगा. ऐसी ही मान्यता बौद्ध मत की भी है. कॉमरेड और तथाकथित नवबौद्ध इस पर यह कह सकते है कि उपनिषद बौद्ध मत के बाद लिखे गए. पर सत्य यह नहीं है. वास्तव में तथ्य यही है कि बुद्ध के जन्म के पहले ही उपनिषदों को लिपिबद्ध कर दिया गया था.

ब्रह्मा के वर्णन में मिलता है कि उसके मुख की आभा सूर्य और चंद्रमा से भी कई हजार गुना अधिक है. बौद्धों में मात्र एक ब्रह्म लोक नहीं है. वे कई ब्रह्म लोकों के होने को स्वीकार करते है. हर ब्रह्म लोक में कई ब्रह्मा रहते है. इनमें से सबसे बड़े ब्रह्मा को महाब्रह्मा कहा जाता है. वास्तव में कई ब्रह्मा के पीछे कई ब्रह्माण्ड है. ब्रह्माण्ड की सीमा अनंत है. इसलिए ब्रह्म लोक और ब्रह्मा भी अनंत है. यही हिन्दू दर्शन की भी मान्यता है. हर महाब्रह्मा को लगता है कि वो ही सबसे बड़ा है पर ऐसा नहीं है. प्रत्येक ब्रह्म लोक के महाब्रह्मा के ऊपर एक ब्रह्म लोक है. जो नीचे के ब्रह्म लोक है, उनके महाब्रह्मा भी कई सृष्टियों पर राज कर सकते है. इस प्रकार एक बौद्ध लोक (हिन्दुओं के तीन लोक की तरह) में उसके देवता, ब्रह्मा, वर्तमान पीढ़ी के मनुष्य, तपस्वी, ब्राह्मण, मार(एक राक्षस) और राजा रहते है. यहाँ सबसे आश्चर्यजनक यह है कि ब्राह्मण भी रहते है और उन्हें पूरा सम्मान भी दिया गया है. बौद्ध दर्शन में मार के रूप में एक राक्षस भी है. ये कमाल की बात है. कॉमरेड और तथाकथित नवबौद्ध राक्षसों को मूलनिवासी बताते है. इनके अनुसार आर्यों ने यहाँ के मूलनिवासियों को राक्षस बना दिया. क्या अब वे मार (राक्षस) को भी मूलनिवासी कहेंगे? मैं मार को ही आधार बना कर कभी लेख लिखूंगा, अगर बुद्ध जी की कृपा बनी रही.

हिन्दुओं में चार युग की मान्यता है. इन चार युगों को एकसाथ कल्प कहा जाता है. जिन्हें तनिक भी हिन्दू ग्रंथों का ज्ञान है, वे इस तथ्य से भली-भांति परिचित होंगे. वे यह भी जानते होंगे कि हर कल्प का कलियुग के साथ अंत हो जाता है. उसके बाद सतयुग की स्थापना के साथ ही नया कल्प शुरू हो जाता है. भगवान शिव का तांडव नृत्य भी इसे से संबंधित है. बौद्ध मत के अनुसार ब्रह्माण्ड के एक विस्तार और सिकुड़न के एक पुरे च्रक को महाकल्प कहते है. एक महाकल्प में चार कल्प होते है. हिन्दुओं ने युगों को उनके गुणों के हिसाब से बाँट रखा है. वही बौद्धों ने ऐसा बँटवारा नहीं किया है. उन्होंने युगों को सीधे कल्प कह दिया है और कल्प को महाकल्प कह दिया है. समय को लेकर दोनों ही मत एक से विचार रखते है.

इन सब से यही सिद्ध होता है कि दोनों मतों में कितनी अधिक समानता है. वास्तव में बुद्ध एक समाज सुधारक की तरह थे, इसलिए उन्होंने अपने सबसे बड़े सिद्धांत को आर्य सत्य कहा है. वो भारत को पुन: उसकी आत्मा से मिलवाने आये थे. कालांतर में जब बौद्धों ने धर्म (रिलिजन वाला नहीं, सत्य और कर्तव्य वाला) का त्याग किया तो शंकराचार्य जी ने आकर हमारा मार्गदर्शन किया. यहाँ सबसे सबने सीखा है. इसलिए कोई अलग नहीं है. सब एक ही है. पर, कॉमरेडों और तथाकथित नवबौद्धों को यह स्वीकार न होगा. उसका कारण उनकी राजनीति में है. अगर ऐसे तथ्य सामने आ जाए तो उनकी राजनीति और उनका प्रोपेगंडा दोनों ही समाप्त हो जाएंगे. और, हमें वही करना है. अगले लेख में भी ऐसा ही कोई तथ्य सामने लाने का प्रयास करूँगा. बुद्धं शरणं गच्छामि.

Satyavrat: एक आम भारतीय, छात्र , मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ, भारतीय इतिहास, संस्कृति, संविधान और राजनीति में रूचि
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