भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों का सच

भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें कैसे निर्धारित की जाती है?

भारत में 2010 से पेट्रोल और 2014 से डीजल की कीमतों को विनियमित किया गया. इससे पहले कीमतों को तय करने मैं भारत सरकार का बड़ा योगदान रहता था. इतना ही नहीं, 2017 से अंतरराष्ट्रीय स्तर के कीमतों के आधार पर, पेट्रोल और डीजल की कीमतें हर रोज तय होने लगी. इस वज़ह से 2017 से, तेल की कीमतों में रोज़ाना हमें बदलाव नजर आने लगता है.

ये इसलिए किया गया कि अचानक होने वाले भारी कीमतों की बदलाव से जो पहले ग्राहकों को नुकसान होता था, उससे उन्हें बचाया जा सके. सारे प्रगत देशों में तेल की कीमतें अन्तरराष्ट्रीय तेल बाजारों पे ही तय की जाती है.

देश को एक कदम प्रगती की और ले जाने के लिए और तेल की कीमतों में से राजकीय हस्तक्षेप कम करके पारदर्शकता लाने के लिए, विनियमित करना बहुत जरूरी था.

तेल की कीमतें हर राज्य में अलग अलग क्यू है?

तेल का बुनियादी भाव भले ही तेल कंपनियों द्वारा निर्देशित किया जाता होगा, पर उसपे लगने वाला राज्य का कर अलग अलग है. जैसे आज (29 June, 2020) का, उदाहरण देखें तो, कॉंग्रेस शासित राज्य महाराष्ट्र के मुंबई में पेट्रोल की कीमत 87.19 Rs. है और दूसरी तरफ बीजेपी शासित राज्य गुजरात के गांधीनगर में कीमत 78.08 Rs है. केंद्र सरकार का कर पूरे देश के लिए समान होता है पर हर राज्य का जो कर (VAT) राज्य सरकार लगाती है वो अलग होता है. इस वज़ह से कीमतों में बदलाव नजर आता है.

अचानक से तेल की कीमतों में बढ़त क्यू देखने को मिली है?

जब भारत में COVID -19 की वज़ह से 82 दिन का भारी लॉकडाउन लगाया था. तब तेल कंपनियों को भारी नुकसान झेलना पड़ा था.

एक सर्वे के अनुसार लॉकडाउन के दिनों में 90% तेल की मांग घट गई थी.इस वज़ह से, तेल कंपनियां किंमते बढ़ा रही है.

केंद्र की तिजोरी पर भी उस वक़्त भारी नुकसान पहुंचा था. लॉकडाउन में गरीब जनता के लिए कई सारी लाभदायक योजनाओं के वज़ह से और अभी चल रहे देश की सीमाओं के सुरक्षा की दृष्टि से केंद्र सरकार ने भी एक्साइज ड्यूटी हाल ही में बढ़ाई है.

इसलिए ये बहुत जरूरी है कि राज्य सरकार अपने राज्यों में VAT कम कर के जल्द से जल्द ग्राहको को थोड़ा बढ़ती हुई कीमतों से बचाए. गुजरात, आंध्र प्रदेश, ओरीसा और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में कीमतों को कम रखने के लिए राज्य सरकार विशेष योगदान कर रही है.

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