आखिर मैं तो एक माँ थी

हथनी की खबर सुनकर आज सब मौन है। गांवों में फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए लोग फल में विस्फोट भर कर रख देते हैं। ताकि इससे फटने की आवाज से जानवर दूर रहे। ऐसा ही विस्फोट अनानास एक गर्भवती हथनी ने खा लिया। कई दिन तड़पने के बाद वह और उसका गर्भस्थ शिशु इंसानों की इस दुनिया को अलविदा कह गए। उस पीड़ा को महसूस करने की कोशिश करके देखिए…

प्रिय इंसानों, मात्र 15 वर्ष की आयु में पहेली बार मां बन रही थी। उस दिन भूख की वजह से मैं खाने की तलाश में निकली थी। सामने पड़े फल को देखकर मैंने उसे खा लिया। इसके बाद में भीतर से पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो चुकी थी। मेरा झगड़ा चकनाचूर हो चुका था। मुंह जी और सूट सब जख्मी थे। बहुत पीड़ा हो रही थी। इतनी की बर्दाश्त ही ना हो सके, बेजुबान थी, किसी को कैसे बताती कि तन भी जख्मी था और मन भी। यह दर्द में अकेली नहीं खेल रही थी। इसका हिस्सेदार वह अंकुर भी था जो मेरे भीतर पल रहा था। उसकी अंतिम सांस से पहले की तड़प को महसूस किया था मैंने। मेरे भीतर के चित्रों के बीच बेजुबान पड़ा था वह। उसकी असहनीय पीड़ा का अंदाजा सिर्फ मुझे ही था वह लहूलुहान था। आज ना तो कोई शरारत थी ना कोई हरकत।

मेरे अंदर फटे ज्वालामुखी के लावे की जलन को बुझाने के लिए मैं नदी की तरफ भागी। बीच नदी में खड़ी रही पानी मेरी आखरी उम्मीद था। पीती गई, पीती गई। बस, किसी तरह मेरे भीतर की आग बुझ जाए। चैन एक पल का ना था इतना भी नहीं कि आंख कुछ देर बंद रख सकूं। कितनी रातें हो गई थी मुझे जागते और फिर में हमेशा के लिए सो गई। यह मुक्ति बहुत कष्ट दायित्व थी। प्रार्थना है कि तुम्हारे बनाए इस बारूद का शिकार मेरे जैसा और कोई बेजुबान ना हो।

-अभागी हथिनी।

manishgurjar: Student , Poltical Activist , SOCIAL WORKER Delhi University , JNU ,FUTURE-RESEARCHSCHOLAR BORN IN POLTICAL FAMILY , GURJAR
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