आत्मनिर्भरता का मैला आईना और वर्तमान जीवनशैली

उच्च स्तर हौव्वे के पीछे भागना हमारा चाल ढाल बन चूका है। हम हर उस प्रचार प्रसार का पीछा कर रहे है, जो ऊपर से परोसा जा रहा है। फिल्मी दुनिया और अन्य बड़े लोग, मिडिया, और कॉरपोरेट के भव्य प्रदर्शन और दिग्गभ्रमित करते भय को हम दोनों हाथों से अपना रहे है।

चहुओर से एक साधारण सा चलने वाला जीवन नये युग के ज्ञानियों की भेंट चढ़ रहा है। कुछ वर्ग इन हरकतों से हमारी मानसिकता को जकड़ कर व्यापार कर रहा है। और हम उन पर विश्वास कर अन्धकार की ओर धकेले जा रहे है।

99% बिमारीयाँ है ही नहीं बल्कि वो केवल वंशानुगत हमारे जीवन के बढ़ते क्रम की कमियां है, जो अनन्त काल से ये शरीर उन कमियों से लड़ता हुआ आगे बढ़ रहा है। हम उन शारीरिक कमियों को बिमारी मान कर इन अस्पताल रुपी दुकानों के भेंट चढ़ रहे है।

जबकि होना ये चाहिए की हमारे शरीर का शोधन शारीरिक कर्म, योग और मानसिक ध्यान की सजगता और परिश्रम से करना चाहिए।
हमारी बात आप को अपाच्य और सुगम इसलिए नहीं लगेगी क्यों की हमें सब कुछ जल्दी और सरलता पूर्वक चाहिए। माफ़ कीजियेगा पर ये सच्चाई है।

एक विज्ञापन हमें एयरकंडीशन की ओर लालायत करता है और दूसरा डाइबिटीज का डर दिखाता है। एक हमें मैकडॉनल्ड्स के फास्टफ़ूड की और ललचाता है और दूसरा सफोला डबल फिल्टर्ड ऑइल की सिफारिश करता है। सिगरेट, खैनी, गुटका से कैंसर होता है और वो धड़ल्ले से बिक रहा है। यानी सत प्रतिसत ये बाजारू प्रोडक्ट वो है जिनका हमारे जीवन में कोई विशेष फर्क पड़ने वाला नहीं, फिर भी हम उनके गुलाम है।

आधुनिक शिक्षा,जीवनशैली, हाइजेनिक फ़ूड और वो अनगिनत बीमारियां जिनके नाम तक हमें पता नहीं, हर कोई उनसे झुंझ रहा है। ऊपर से अनगिनत बीमा योजनाए जो जीवन के साथ से मरने के बाद परिवार का क्या होगा तब तक? क्या है हम, और क्यों बन रहे है इस तरह के गुलाम। चलो फिर भी मान लिया की हम सब बुद्धिमान है मर खप के पार हो भी जाएंगे।

लेकिन कभी सोचा आपने हमारी आने वाली पीढ़ी का क्या होगा? हमारे ये नन्हे बच्चे जो नाश्ते के नाम पर मैगी, पोये, मैदे की रोटी, पिज्जा, बर्गर, एसी, मोबाइल और उससे ही ऑन लाईन स्टडी और मनोरंजन और इस सब बकवास का ऑनलाइन पेमेंट भी.. धरातल कहाँ है?

आम की तरह चूस लेंगे हम इनको, 100 में से अगर कोई एक इस पैरामीटर पर सक्सेस भी हो गया तो उन 99 का क्या होगा? ये सब लिख कर हम किसी को डरा नहीं रहा रहे बल्कि आने वाले समय के प्रति आगाह कर रहा रहे है। पेड़ तभी तक हरा भरा होता है जब तक उसकी जड़े जमीन के भीतर तक धसी हुई हो और आज के बच्चो की जड़े हम है। हम अपने बच्चो से प्यार करते हो तो उन्हें तपा कर कुंदन बनाये।

कठोर कर्म की प्राथमिकता, खान पान की शुद्धता, परिवार और संस्कृति का कवच पहना कर उन्हें चट्टान बनाये। ताकि परिश्रम की तपती धूप और मेहनत की लू के थपेड़ों को सहन कर सके, उन्हें इतना आत्मनिर्भर बनाये, ये आज निर्भर होना सीखेंगे तभी कल का भारत आत्मनिर्भर होगा। आत्मनिर्भर भारत का हर कदम आत्मनिर्भर शरीर और स्व की मानसिकता से जुड़ा है। हमे बस अपने आप को ठीक करते चलना है और सनातन का सत्य मक्खन की तरह ऊपर आता जाएगा। जहाँ हम अपने जीवन की सजगता समझ पाएंगे। स्व की आत्मनिर्भरता ही देश और वसुधैव कुटुंब के मार्ग है।

लेखक : वी.पी.एस.राणावत

Abhimanyu Rathore: Non IIT Engineer. Oil and Gas .
Disqus Comments Loading...