साउथ कोरिया में संघ जरूरी क्यों

Bhagwa Dhwaj

आज के मौजूदा दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत की सबसे बड़ी सांस्कृतिक संगठन है। जो देश की परंपरा और रीति-रिवाज़ को संजोये रखने और आने वाले नये पीढियों को उनकी संस्कृति से परिचय कराने की काम कर रही हैं। इतना ही नहीं हमारे स्वयं सेवक भाई विषम परिस्थितियों मे देश के लोगों की मदद करने के लिये हरेक प्रकार से खड़े रहते है। चाहे वो बाढ़ मे राहत सामग्री पहुँचानी हो चाहे आपातकालीन स्थिति मे श्रमदान देनी हो।आज ये संगठन भारत मे ही नहीं भारत के बाहर भी फैली हुई है। भारत के बाहर आर॰एस॰एस॰की एक इकाई हिन्दू स्वयंसेवक संघ (एच॰एस॰एस) विदेशों में कार्य करतीं हैं। एच॰एस॰एस॰ का एक मुख़्य उद्देशय भारत के बाहर रह रहे भारतीय लोगों को संगठित करना और उन तक भारतीय संस्कृति को पहुँचाना हैं।

मैं विग़त 8 महीनो से साउथ कोरिया में रह रहा हूँ। यहाँ भारतीय लोगों की संख्या क़रीब 13 हज़ार हैं। पर एच॰एस॰एस न होने के आभाव में मैंने महसूस किया है, कि भारतीय लोग संगठित नहीं हैं। और संगठित नहीं होने के कारण लोग अपनी संस्कृति से दूर जा रहे हैं। ना ही कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम ठीक ढंग से हो पा रहा हैं, और ना ही लोग ठीक ढंग से भारतीये पर्व को मना पा रहे हैं। मैंने कुछ भारतीय मूल के बच्चों से बात करने की कोशिश की और उनसे भारतीय पर्वों के नाम पुछे पर दो-तीन बच्चों में से एक ही बच्चा होली- दीवाली के अलावा दूसरे पर्वों के नाम बता पाया।फिर मैंने उन बच्चों से होली और दीवाली मानने के पीछे का कारण पूछा तो कोई बच्चा संतोषजनक जवाब नही दे पाया। और मैंने ये भी पाया कि बहुत बच्चे हिंदी ठीक ढंग से बोल नही पा रहे या फिर जिन्हें आती है। वो बोलना नही चाहते। आधुनिक होने का मतलब ये नही हैं, कि हम अपनी भाषा और सभ्यता छोड़ दे। और दूसरे की सभ्यता में खो जायें। वही दूसरी तरफ़ मैंने देखा है, कि भारत में रहने वाले इज़रायली और बाक़ी इस्लामिक देशों के लोग अपनी भाषा और सभ्यता को ले कर कितना जागरुक हैं। यहाँ मेरा बस इतना ही कहना है,कि विश्व के किसी भी कोने में रहे पर अपने भारतीय होने, हिंदी और हिन्दु होने पर गर्व करे। और आधुनिक बने पर संस्कृति को बचायें।

अगर कोई पेड़ की जड़ कमज़ोर हो, और तना कितना भी मजबूत क्यों ना हो। वो पेड़ एक दिन ज़रूर गिर जाता हैं। उसी प्रकार आप कितने भी सफल क्यों ना हों, अगर आप अपने समाज से नही जुड़े हैं, तो अपना पतन एक दिन निश्चित हैं। और वहीं दूसरी तरफ़ कोरोना वैश्विक महामारी के दौर में संघठित नही होने के कारण लोग बहुत ही अकेलापन महसूस कर रहे हैं, और घबराए हुए है। एकता में बल होती है। ये बात उन्हें समझ आ रही हैं।बहुतो के पास जॉब नही है। किसी के पास इण्डियन रेस्टोरेंट और इण्डियन ग्रोस्री की बिज़्नेस है, पर इंडीयन कम्यूनिटी में अच्छी पकड़ नही होने के कारण परेशानियों का सामना कारण पड़ रहा है। यहाँ हम 13 हज़ार भारतीय हो कर भी अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने में विफल होते नज़र आ रहे है।ख़ास कर के हमारे युवा पीढ़ी जो यहाँ पढ़ाई और नौकरी के तलाश में आये है। वो कुछ ज़्यादा ही दिशाहीन नज़र आ रहे है। और उनलोगो पर पश्चिमी सभ्यता हावी होती हुई नज़र आ रही है।

पश्चिमी सभ्यता की ओर झुकाओ उन्हें अपनी भारतीय सभ्यता से दूर ले जाती हुई नज़र आ रही है। उनके हाव- भाव बदले नज़र आ रहे है। उनकी रुचि अपने पर्व को मानने से ज़्यादा पश्चिमी देशों के पर्वों को मानने और पश्चिमी खान- पान और भेष-भूषा में हैं। यह भटकाव आज नही पर आने वाले दिनो में उनपर भारी पड़ेगा और उनके आने वाले पीढ़ी पूरी ढंग से भारतीय सभ्यता से कटी हुई नज़र आयेगी।हम कभी विदेशों में जा कर यह बताने की कोशिश नहीं करते हैं, कि हमारी सभ्यता और साहित्य कितना विशाल हैं।हम ये नही बताते कि हमारा इतिहास इतना समृद्ध था, कि विदेशों से लोग नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने आते थे। हाँ पर विदेशों में जा कर ज़रूर विदेशी साहित्यकार और सभ्यता की तारीफ़ कर आते हैं।मेरे दृष्टिकोण से भारतीय संस्कृति के महिमा को समझने का, चितन करने का एवं एकजुट हो कर भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धांतो को अपनाने का समय आ गया है। और मौजूदा समय में इस कार्य के निर्वहन के लिये साउथ कोरिया में एच॰एस॰एस की स्थापना अतिआवश्यक होती हुई नज़र आ रही हैं।

Hemant Raj: M.A Korean literature, Dongseo university, Busan, South Korea
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