सेक्युलरिज्म का साँड़ अब लाल नहीं अपितु भगवा रंग देखकर खिसियाता है

बचपन से सुनते आ रहे हैं कि लाल कपड़ा पहन के बैल के सामने न जाना नहीं तो दौड़ा के पटक देगा और खिसिया खिसिया के मारेगा। हम भी डरे हुए रहते कि वैसे भी 206 में 20-25 हड्डियां कम ही हैं और जो हैं भी कहीं वो भी काम लायक न रह जाएंगी इसलिए लाल कपड़ा न पहने तो ही अच्छा है। लेकिन किशोरावस्था की चुल्ल कहाँ अनुशासित होने देती है। एक दिन बढ़िया बाल बनाए मिकी माउस वाली लाल टीशर्ट डांटे चले जा रहे थे कि रास्ते में एक ठो साँड़ मिल ही गया। हमारे होश गड़बड़ हो गए। हमसे न भागा जा रहा था और न खड़ा हुआ जा रहा था। डर के मारे हमारे हाँथ-पैर भरतनाट्यम कर रहे थे। हमारी बहादुरी देखकर साँड़ अपनी खीसें निपोरने लगा और हमारे तनिक नजदीक आकर बोला, “काहे डेरा रहे हो? अब हम ये मारपीट, पटकना- सटकना बंद कर दिए हैं। अब हम अहिंसावादी हो गए हैं”।

हमनें कहा कि, “झूठ बोलते हो। हम मुड़ेंगे तो पीछे से धर दोगे”।

साँड़ बमक गया और जोर से बोला, “बाहुबली समझ रहे हो का अपने को कि कटप्पा की तरह हम पीछे से हमला करेंगे। सवा मन के हो, चाहें तो यहीं एक सींग में उठाकर पटक दें”। हमने ईमानदारी से विचार किया तो हमें उस साँड़ का कथन व्यवहारिक लगा किन्तु हमारे अंदर एक जिज्ञासा हिलोरे मारने लगी कि आखिर साँड़ अहिंसक कैसे हो गया? हमने हिम्मत का इंट्रोडक्शन दिया और उससे पूछ लिए,

“काहे भाई? तुम्हे कौन सा भाईचारा निभाना है जो अपनी प्रवृत्ति छोड़ दिए। विचारधारा बदलना तो हम इंसानों का काम है तुम काहे इतने सेंसियर हो रहे हो”?

साँड़ वही पास ही आम के पेड़ की छाया में बैठ गया और हमको भी बैठा लिया। फिर उसने सारा वृत्तांत कह सुनाया।

“2014 में जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं तब से ही कुछ समस्या बढ़ी है। उनके आने से पहले वामी, कामी, पंजा, साइकिल, तराजू-मराजू सबकी दुकान चलती थी। उनके आने के बाद ये सब नल्ले बइठ गए हैं। अब का करें तो बिना सिर पैर तीर चलाए रहते हैं। एक दिन हम एक ठो लाल कुर्ताधारी को चहेट के धर दिए। तुम्हारे जइसन सिंगल हड्डी था तो हम ज्यादा नहीं कूटे लेकिन वो ससु डर के मारे बिछा गया। दूसरे दिन लाल सलाम वाले पोस्टर लिए रैली निकालने लगे।

“मोदी तेरे राज में, सहिष्णुता अब बची नहीं है”

“हिंदुत्व का ये अत्याचार, नहीं सहेंगे नहीं सहेंगे”

“तुम कितने बर्दा छोड़ोगे, हर घर से लाल पहनकर निकलेगा”

“हिंदुत्व की ये तानाशाही, नहीं चलेगी नहीं चलेगी”

पहले हमको समझ नहीं आया कि का हो रहा है और हम लालय लाल देखकर तमतमा उठे लेकिन हमारा एक ठो मित्र हमको समझाया कि इस समय अग्रेशन दिखाए तो पूरा आरोप मोदी जी पर लगेगा। अब तो ये हालात हैं कि किसी अपोजीशन वाले को कूकुर भी चाब दे तो पूरा आरोप मोदी पर लगा देते हैं। हम थोड़ा निराश हुए लेकिन फिर हम निर्णय लिए कि अब किसी को नहीं दौड़ाएंगे। हमारे कारण प्रधानमंत्री पर आरोप लगे, हिंदुत्व गरियाया जाए, ये हमसे सहन नहीं होगा। हमारी बर्दा संसद में यह निर्णय लिया गया कि अब हम सब हिंसा का त्याग कर देंगे। इसलिए हम तुमको नहीं दौड़ाए”।

हमें उस बर्दा, मतलब साँड़ की बात झकझोर गई। हमारे भीतर भयंकर प्रश्न उठने लगे। इन्ही प्रश्नों पर विचार करने के लिए हम अपने मित्र के गृह निवास की ओर जा रहे थे। उस दिन हम बढ़िया हनुमान जी वाली टीशर्ट पहने थे, भगवा रंग की और “मुझे चढ़ गया भगवा रंग रंग” गुनगुनाते चले जा रहे थे। रास्ते में एक ठो और साँड़ बैठा था। उतना हष्ट-पुष्ट नहीं था। सींग न होती तो दूर से गदहा लग रहा था, लेकिन था साँड़ ही। पहले बैठा रहा लेकिन जब हम उसके थोड़ा नजदीक पहुंचे तो खिसिया के दौड़ पड़ा। उस दिन पवनसुत सहाय हुए और हम उलटे पाँव भागकर उससे अपनी जान बचा पाए। हमको भागता देखकर वही अहिंसक साँड़ हमारे पास आया और बोला,

“अब कौन दौड़ा लिया तुमको? तुम्हारी कुंडली हमको सही नहीं लग रही है”।

हम झल्लाहट में बोले, “उस दिन तो तुम बताए कि बर्दा संसद में तय हुआ है कि तुम साँड़ लोग अब अहिंसा के मार्ग पर चलोगे। लेकिन अभी हमको एक साँड़ दौड़ा लिया।  आज न भागते तो तुम भी आज से तेरा दिन बाद हमारे घर भोज में पधार जाते”।

वो साँड़ हंसने लगा और बोला, “हम लोग तो अहिंसक हो गए हैं लेकिन जो तुमको दौड़ाया है वह सेकुलरिज्म का साँड़ है। वह कभी भी बमक सकता है लेकिन तुम तो भगवा पहने हो, ऐसे में उसका बमकना निश्चित है। उसे भगवा से भयंकर एलर्जी है”।

हमको भयानक आश्चर्य हुआ कि अब ये क्या नया रोग है? भगवा पहनने से भला किसको एलर्जी होगी? हमारे भीतर का सुधारक जाग गया। हमने कहा, “हम उस सेक्युलर साँड़ से कुछ बातचीत करना चाहते हैं।

“तुम बिना पीट जाए न मानोगे। क्या बात करनी है?” वह फुसकारकर बोला।

“हम उसको सत्य और धर्म के मार्ग पर वापस लाना चाहते हैं”।

हमारी तोते जैसी शकल देखकर वो साँड़ जोर से हंसने लगा और बोला, “ओ विवेकानंद ! अब उसके सामने गए तो वो तुमको बिना मारे नहीं छोड़ेगा। ये हमसे नोट करके ले लो और फिर वो तुमको भगवा टीशर्ट में भी देख लिया है तो तुमको किसी भी कपड़े में पहचान लेगा”।

लेकिन हम अपने संकल्प पर अडिग थे। हमने उसकी एक न सुनी। दो चार मोटिवेशनल बातें करके हमने उसको अपने साथ चलने के लिए भी मना लिया। वो कुछ देर सोचता रहा और बोला, “तुमको वो भगवा कपड़ों में देखा है तो तुम कोई भी कपड़ा पहन लो, वो तुमको दौड़ाएगा लेकिन अगर हरा पहन लिए तो कम से कम तुम उसके क्रोध से बच जाओगे। फिर जो बात करना चाहो वो कर लेना”।

 मको उस साँड़ की बात बहुत सही लगी। दूसरे दिन हम एकदम गाढ़ा हरा रंग का कुर्ता पहने। हमारे पास तो था नहीं लेकिन पिताजी अपने लिए बनवा लिए थे, तिरंगा से प्रेरित होकर। साइज में बहुत बड़ा था लेकिन उसको पहन के एकदम वामपंथियों वाला फीलिंग हुआ। हम उस अहिंसक साँड़ के पास गए तो वो हमको देखकर बोला, “बहुत सही काम किए हो। हरा रंग और ढीले ढाले कुर्ते का तगड़ा नेक्सस है। बहुत सही खेल गए। अब चलो”।

हम उसके साथ चल तो दिए लेकिन अन्दरय अंदर हमारी सांस फूल रही थी लेकिन हमको विश्वास था कि ये अहिंसक प्राणी हिंसक भी हो सकता है, आवश्यकता पड़ने पर। खैर हम पहुंचे उस सेक्युलर साँड़ के पास। वो अभी भी वहीँ पड़ा हुआ था।

हमारा पहला ही प्रश्न था,

“तुम मेहनत नहीं करते हो और यहीं पड़े रहते हो तो तुम्हारा पेट कैसे भरता है?”

उसने बड़ा ही खूबसूरत जवाब दिया,

“जब सब फ्री में मिल रहा है तो क्या जरुरत अपने शरीर को कष्ट देने की?”

हमने कहा, “सही है। हम तुमसे कुछ तर्क वितर्क करने आए हैं। तुम उस दिन हमको दौड़ा लिए थे इसलिए आज हम अपना बॉडीगार्ड साथ लाए हैं। चुपचाप हमारे प्रश्नों के उत्तर दे देना, लेकिन हमारी एक शर्त है”।

उसने गर्रा कर पूछा, “क्या?”

हमने उसे वाद विवाद के नियम समझाए।

“जिस तरह की तुम्हारी प्रवृत्ति है, तुम गाली गलौच नहीं करोगे। तुम पर्सनल छींटाकशी नहीं करोगे। हमको गोदी मीडिया का बताकर बहस से नहीं भागोगे। गप्प नहीं मारोगे। विक्टिम कार्ड नहीं खेलोगे”।

“तब तो ये कर चुका बहस”।

अहिंसक साँड़ अपनी पूँछ हिलाते हुए बोला।

हमारा इंटरव्यू चालू हुआ।

“तुम उस दिन हमको दौड़ा क्यों लिए थे? सिर्फ इसलिए कि हम भगवा पहने हुए थे? क्या समस्या है भगवा से?”

वह तिलमिला उठा और बोला, “भगवा इज ऐन इम्पोजीशन आफ हिंदुत्व आन अस। दिस इज द कांस्पीरेसी आफ हिन्दू राष्ट्र। वी विल नाट टालरेट इट। वी विल फाइट। आवाज़ दो कि हम आज़ाद हैं”।

हमने कहा, “खींच के रपेट देंगे यहीं, सारी अंग्रेजी धरी रह जाएगी। आवाज़ दो कि हम आज़ाद हैं। ये ससु जेएनयू नहीं है और तुमसे कौन बोला कि भगवा तुम्हारे ऊपर हिंदुत्व का इम्पोजीशन है?”

“हम जानते हैं, तुम सब हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हो और संविधान हमें धर्मनिरपेक्षता की सुविधा देता है”। अंग्रेजी बोलने से उसकी हाँफी छूट गई जिससे वो हिंदी में बतियाने लगा।

“यही संविधान तो हमको भी छूट देता है कि हम चाहे भगवा पहने, ओढ़ें या अपने घर दुकानों में लगाएं लेकिन तुमको क्या समस्या होती है? इट्स माई च्वॉइस”। हम भी उस पर क्रॉस प्रश्न दाग दिए। 

“फिर भी तुम लोग फ़ासिस्ट हो। आरएसएस फ़ासिस्ट है। हिटलर की सरकार है। तुम सब मिलकर लोकतंत्र ख़त्म कर देना चाहते हो। मूडी मस्ट रिजाइन। तानाशाही नहीं चलेगी”। इससे पहले कि वो फिर गोहार मारता हम अपनी आँख दिखाए और वो सेकुलरिज्म का साँड़ चुप हो गया। हम भी साइज के हिसाब से ज्यादा टेलर दे रहे थे।

“ये जो फ़ासिस्ट फ़ासिस्ट करते रहते हो खुले आम, फ़ासिस्ट सरकार होती तो गोल हो गए होते अभी तक। लगता है फ़ासिस्ट सरकार देखे नहीं हो। आरएसएस से तुमको क्या समस्या है? दशकों से तो गरिया रहे हो और उधर से एक ठो आदमी तुमको पलट कर जवाब नहीं देता। कैसा फ़ासिस्ट है आरएसएस?”

“संविधान हम सब को बराबरी से रहने का अधिकार देता है। हम संविधान को बचाकर रहेंगे। आरएसएस को सफल नहीं होने देंगे”।

“ठीक है। हम तुमको 108 गुरिया की एक ठो माला दे देंगे, उसमे तुम संविधान संविधान जपते रहना लेकिन ये तो बताओ कि इस सरकार से तुमको क्या समस्या है?” हमने सोचा कि होगी कोई समस्या, अनाज या घरबार को लेकर। लेकिन जब वो मुँह खोला तो हम अपना सिर पीट लिए।

“इस सरकार में फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन नहीं है। हमें बोलने नहीं दिया जा रहा है। हमारी आवाज़ को दबाया जा रहा है। बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे”।

हमने इस बार उसे नारा लगाने दिया। जब दो चार नारा लगाने के बाद वो हांफ गया और उसके फेफड़ों से सीं सीं की आवाज़ आने लगी तब हमने कहा, “सांस ले लो भाई, नहीं तो कहीं तुम्हारे लब आज़ाद हो गए तो तुम्हारे कामरेड बोलने लगेंगे, मूडी मस्ट रिजाइन, मूडी मस्ट रिजाइन”।

“और कौन सा तुम्हारा फ्रीडम आफ स्पीच का हनन हो रहा है। तब से गरियाये पड़े हो, मोदी को, हिंदुत्व को और इनका समर्थक चुपचाप बैठा सुन रहा है। तुमसे 3 गुना बड़ा है, चाहे तो तुमको पटक दे, लेकिन ये सहिष्णु है”।

“ये भी बताओ कि हो तो तुम भी बर्दा, मतलब साँड़ ही न, लेकिन ये सेकुलरिज्म का कीड़ा तुमको कहाँ काट लिया। अपनी जात के साथ बढ़िया मिलजुल कर रहो। चारा खाओ, घूमो फिरो। याद रखना कि एक दिन इसी सेकुलरिज्म की भेंट चढ़ जाओगे और किसी बूचड़खाने में तुम्हारी हड्डियां मिलेंगी”।

हम उसको मोटीवेट कर ही रहे थे कि अचानक उसके दो चार कामरेड आ गए और वह उनके साथ तफरी करने चल दिया। जाते जाते हमारे अहिंसक मित्र ने सेक्युलर को सलाह दे डाली, “अगर दोबारा इस पर हमला किया तो हम तुम्हे आज़ाद ही कर देंगे। फिर चाहे ये भगवा पहने या पीला या जय श्री राम का पर्दा लपेट के घूमे”। 

उसके बाद से वो सेक्युलर साँड़ हमें देखकर अपना रास्ता बदल लेता और हम भी चिल्लाते हुए निकलते, “मुझे चढ़ गया भगवा रंग रंग”।       

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.
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