पाताललोक के बहाने मृत्युलोक पर हिन्दुओं के प्रति सिनेमाई घृणा का पोस्टमार्टम

अभी हाल ही में पाताललोक नामक एक वेब सीरीज अमेजॉन प्राइम वीडियो पर लॉन्च हुई जिस पर भयंकर विवाद हो रहा है। पहले आप जान लीजिए कि इस वेब सीरीज को लिखा किसने है। इस सीरीज को रचने वाले हैं, सुदीप शर्मा, सागर हवेली, हार्दिक मेहता और गुंजित चोपड़ा। सीरीज के निर्देशक हैं, अविनाश अरुण और प्रसित रॉय। सीरीज के निर्माता हैं, अनुष्का शर्मा और कर्नेश शर्मा।

अब बात करते हैं कि आखिर इस सीरीज में ऐसा क्या है, जिस पर विवाद हो रहा है और इसे बायकॉट करने की मांग की जा रही है।

पाताललोक अपराध की दुनिया पर आधारित एक वेब सीरीज है। यहां अपराधी हैं, पुलिस है, राजनेता और उनके दाएं-बाएं हाथ हैं, आम आदमी है और मुसलमान हैं। आपको लग रहा होगा कि सिर्फ इतना होने पर विवाद क्यों?

वास्तविकता यह है कि पाताललोक इससे भी बढ़कर एक भयानक गन्दगी है। यह एक घृणास्पद प्रोपोगंडा है जो पूर्णतः हिन्दू और ब्राह्मण विरोधी है। इस सीरीज को सनातन का मजाक उड़ाने के लिए बनाया गया है। वेब सीरीज के लिए उपयुक्त सेंसरशिप की कमी के कारण ओटीटी मंचों पर हिन्दू विरोधी एजेंडा पूरी तरह से शुरू हो चुका है। पाताललोक उनमें से एक है। पाताललोक में कई ऐसे दृश्य हैं जहां ब्राह्मण और साधु कुकर्म करते हुए दिखाए जा रहे हैं। मुसलमानों के प्रति हिन्दुओं की घृणा को एकदम लाल हाइलाइटर से हाईलाइट करके दिखाया गया है। राजनीति हिंदुत्व आधारित है। सवर्णों को पूरी तरह से अपराधों में लिप्त दिखाया जा रहा है। कुल मिलकर पूरी सीरीज में यही सब है। हिन्दुओं और ब्राह्मणों का विरोध, सनातन धर्म का उपहास और मुसलमानों के लिए हिन्दुओं की घृणा।

अब आप ये बताइए कि आप ये देखना चाहेंगे? आपकी क्या मजबूरी है जो आप ऐसी गन्दगी को देखना चाहेंगे? क्या आपको वैचारिक विष्टा से घिन नहीं आती?

यह आज से नहीं है। यह दशकों से होता आया है। बॉलीवुड के माध्यम से सदैव ही भारत विरोधी तथा अधिक मात्रा में हिन्दू विरोधी एजेंडा चलाया जाता रहा है। अब भी वही हो रहा है। कुछ दिनों के लिए विरोध होता है, बायकॉट का हैशटैग चलता है और फिर सब सामान्य जाता है। निर्माता अच्छी खासी कमाई कर ले जाते हैं और हिन्दू विरोधी एजेंडा साल दर साल चलता रहता है। ऐसा क्यों होता है, आपको पता है?

मैं बताता हूँ। हमें मनोरंजन की आदत हो गई है। हम वो सब कुछ देखना चाहते हैं जो हमें दिखाया जा रहा है। हमारे अंदर एक विचार घर कर गया है कि हमारे अकेले के न देखने से क्या बदलने वाला है। यही सोचकर सब पैसे खर्च करके ऐसी वेब सीरीज और सिनेमा देखते हैं। हिन्दू है ही ऐसा। उसे धर्म की रक्षा भी करनी है और मनोरंजन भी बनाए रखना है।

इसके बाद कुछ ऐसा वर्ग है जो इस बात पर विश्वास करता है कि बिना देखे किसी के बारे में कोई राय नहीं बनानी चाहिए। यह वर्ग सबसे बड़ा मूर्ख है क्योंकि यह आज भी वामपंथ और कट्टर इस्लाम का नेक्सस नहीं समझ पाया। इसे पता है कि लगभग 75% फिल्में और वेब सीरीज किसी न किसी रूप में हिन्दू विरोधी या भारत विरोधी होती हैं। प्रत्यक्ष दृश्य न हुए फिर भी प्रोपोगंडा तो चलाया ही जाता है, लेकिन इस वर्ग को सब कुछ देखकर राय बनानी है।

कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि पैसे तो सब्सक्रिप्शन लेते समय ही दे दिए जाते हैं। मैं मानता हूँ कि अधिकांश लोग सब्सक्रिप्शन ले चुके हैं लेकिन विरोध के भी हजार तरीके हैं। सब्सक्रिप्शन रेन्यु मत कराइए। नए लोगों को सब्सक्रिप्शन लेने से रोकिए। ऐसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर दबाव बनाइए जिससे वो ऐसे कंटेंट को बैन कर सकें। भारत एक विशाल उपभोक्ता बाजार है और ये बात आपको भी पता है कि एक बहिष्कार के आंदोलन से भारतीय किसी को भी घुटनों पर ला सकते हैं। रिव्यु देने के लिए ऐसा घिनौना कंटेंट मत देखिए। रिव्यु देने के लिए अजीत भारती है। उससे बेहतर और सटीक रिव्यु आप नहीं दे सकते। व्यवस्था बनाइए जिससे एक व्यक्ति यह बता सके कि अमुक सीरीज या फिल्म देखने लायक है या नहीं। उसके बाद तय कीजिए कि क्या देखना है और क्या नहीं।

आर्थिक बहिष्कार बहुत प्रभावी होता है। हम ये पहले भी कर चुके हैं। हमारे बहिष्कार की मार आमिर और शाहरुख झेल चुके हैं। लेकिन किसी वैधानिक सेंसरशिप के अभाव में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर हिन्दू विरोधी कंटेंट लगातार प्रसारित हो सकता है। इस कंटेंट का विरोध करना हमारा पहला कर्त्तव्य है। हम में से कई ऐसे योग्य व्यक्ति हैं जो हमारी समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं, विरोध के नए रास्ते बना सकते हैं लेकिन हमें संगठित होकर विरोध करना होगा। आज विरोध नहीं करेंगे तो ऐसे कंटेंट इसी कोरोना वायरस की तरह बाजार में बिखर जाएंगे। हमारे युवा वर्ग के मस्तिष्क तक पहुंचेंगे और उनका मस्तिष्क तर्क को आधार बनाकर सोचना प्रारम्भ करेगा और कहेगा कि एक वेब सीरीज कैसे हिन्दू धर्म पर आक्षेप कर सकती है? यह युद्ध तात्क्षणिक नहीं है अपितु दीर्घकालिक है। हो सकता है कि विरोध में कुछ नुकसान भी झेलना पड़ जाए लेकिन अंततः हम अपने भारत के भविष्य के लिए यह नुकसान सहेंगे।

इसलिए विरोध कीजिए। अपनी सहिष्णुता को अपनी कमजोरी मत बनने दीजिए। आपको पता है कि इन निर्माता और निर्देशकों की इतनी औकात नहीं है कि ये किसी दूसरे मजहब जैसे ईसाई अथवा इस्लाम के विरोध में ऐसा कंटेंट बना सकें क्योंकि ये चार्ली हेब्दो और कमलेश तिवारी को नहीं भूले हैं। लेकिन हमारे लिए वो ऐसा कर सकते हैं क्योंकि हम इनके गुलाम की तरह हैं। ये जो हमें दिखाएंगे, हम वैसा ही देखेंगे। जिस रूप में दिखाना चाहेंगे, उस रूप में हम इनकी गन्दगी को स्वीकार करेंगे। ये सब बंद कीजिए। हथियार बिना उठाए भी युद्ध जीते जाते हैं। वैचारिक रूप से सुदृढ़ बनिए। अपना बुरा भला पहचानिए। अपनी शक्ति को संगठित कीजिए और फिर देखिए कि ये बिना रीढ़ वाले लोग कैसे आपके समक्ष झुकते हैं।  

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.
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