नेपाल के रक्षा मंत्री का खेदजनक बयान

नेपाल के रक्षा मंत्री यशोवर पोखरेल ने हाली में एक बोहोत ही बड़ा बयान दीया है। उन्होंने ये कहा है की “इंडियन आर्मी चीफ ने हाली में जो बयान दिया था, के नेपाल के एक निर्णय के पीछे “तीसरा पक्ष शामिल है”, ये बयान नेपाली गोरखा सैनिको के भावनाओ को बोहत ही दुखी करता है“।

यहाँ पर जो तीसरा पक्ष है वो निश्चित ही चीन है।

नेपाल के रक्षा मंत्री ने आगे ये भी कहा हे की, “इंडिया अभी भी हमारी फ्रेंडली स्टेट हैं और हम चाहेंगे की जो भी हमारे टेरेटरी को लेके विवाद चल रहे हैं यह शांतिपूर्ण राजनीतिक संवाद से हम सुलझा ले“.

अब यहाँ पर हमें सोचना होगा के नेपाल के रक्षा मंत्री कह क्या रहे हैं। नेपाल में जो रहवासी युवा लोग हैं उनके पास दो विकल्प होते हैं अगर वो आर्मी से जुड़ना चाहते हैं, वे नेपाली आर्मी में शामिल हो सकते हैं या फिर इंडियन आर्मी में। आज के समय नेपाल के करीब 30 हजार से भी ऊपर गोरखा इंडियन आर्मी में अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं। ये सब १९४७ से चलता आ रहा है। उस वक्त ब्रिटेन इंडिया और नेपाल का एक संधि समझौता हुआ था जिसके अंदर जो ६ गोरखा रेजिमेंट्स हैं पूर्व में जो ब्रिटिश इंडिया के अंदर थी वो बाद में इंडियन आर्मी का हिस्सा बन गया। तो तबसे लेके अब तक नेपाली नागरिको के पास ये विकल्प है के, वे इंडियन आर्मी में शामिल हो सकते हैं। जैसे एक भारतीय नागरिक आर्मी में भर्ती हो सकता है वैसे ही नेपाली नागरिक भी इंडियन आर्मी में शामिल हो सकता है। इसमें नेपाल का भी फायदा होता है और भारत का भी फायदा होता है, हमको गोरखा जैसे बहादुर सिपाही मिलते हैं और नेपाल को भी फायदा होता है क्यों की नेपाल के आर्मी का जो आकार है वो इतना बड़ा नहीं है। ये जो पूरी प्रणाली हैं ये मना जाता है, इसकी वजह से, बहुत ही मज़बूत नींव पर इंडो नेपाल रिलेशन है।

मगर पिछले कुछ सालो में नेपाल में ये बात उठनी शुरू हुई है की ये जो पूरा समझौता है इसकी समीक्षा की जा रही है। कुछ महीने पहले २०२० में नेपाल की सरकार ने ब्रिटेन सरकार को एक खत लिखा, उस खत में उन्होंने यह कहा के हम १९४७ की संधि को रिव्यु करना चाहते है जिसमें गोरखा सोल्जर्स के बारे में फैसले लिए गए थे।

नेपाल ने जो अप्पति व्यक्त की है वह है उत्तराखंड की सड़क को लेकर। यहाँ पे नेपाली गोरखा का कहीं से भी कोई रिश्ता नहीं था, यहाँ पर केवल बात हो रही थी नेपाली सरकार की, उसमें नेपाल के जो गोरखा है उनका कोई भी उल्लेख नहीं था। तो खुद बा खुद नेपाली गोरखा को इस मुद्दे में लेकर आना और उनको शामिल करना और उनको ये कहना के आपने उनके भावनाओ को दुःख पहुँचाया है, ये उचित नहीं। आने वाले कुछ दिनों में १९४७ के संधि पर ब्रिटेन इंडिया और नेपाल बातचीत कर सकते है।

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