कोई गणित का मास्टर है या क्रिकेट का फैन लेकिन भारत में उसे जिहाद फैलाने का अधिकार नहीं मिलेगा

भारतीय मीडिया की एक महान विशेषता है कि उसके पास किसी अपराधी या आतंकी के अपराध को छुपा देने की रेसिपी है। ये इस प्रकार खबरों को चलाएंगे कि आपको पता भी नहीं चलेगा और आतंकी एक हीरो बना दिया जाएगा।

खबरें कुछ इस प्रकार होंगी,

रियाज नाइकू : गणित का मास्टर जो आतंकी बन गया लेकिन क्यों?

पुलवामा का वो आतंकी जो कभी क्रिकेट का बहुत बड़ा फैन था।

गरीब हेडमास्टर का बेटा क्यों बना हिजबुल कमांडर।

कहने का तात्पर्य यह है कि खबरें इस प्रकार चलाई जाएं कि आतंकियों का आतंकवाद द्वितीयक स्थिति में पहुँच जाए और प्राथमिक स्थिति में उनकी गरीबी, उनका पैशन और उनकी पारिवारिक स्थिति दिखाई दे।

यह सब आज से नहीं है। वामपंथी मीडिया गिरोह द्वारा यह कार्य दशकों से होता आया है लेकिन आज सोशल मीडिया की उपलब्धता और ऑपइंडिया जैसे मीडिया मंचों के कारण इस दुराग्रही मीडिया की सच्चाई हमारे और आपके सामने आ रही है। वास्तव में भारतीय मीडिया कभी भी भारत का हितैषी नहीं रहा है। दशकों से भारतीय मीडिया पर वामपंथियों और भारत विरोधी एजेंडा चलाने वालों का दबदबा रहा है लेकिन आज जब उन्हें राष्ट्रवादियों से अच्छी खासी प्रतिस्पर्धा मिल रही है, तब ये वामपंथी और भारत विरोधी मीडिया दूसरे मीडिया मंचों को गोदी मीडिया या बिकाऊ मीडिया जैसे नामों से पुकारने लगा।

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मीडिया में अब ऐसे लोग नहीं हैं जो अपना भारत विरोधी एजेंडा चलाते हों। फ्रीडम ऑफ स्पीच के नाम पर इन्होने टेलीविजन और प्रिंट मीडिया में जबरदस्त गन्दगी मचा रखी है। अब तो डिजिटल मीडिया का भी समय अपने चरम पर है। यहाँ भी ऐसे लोग सक्रिय हैं जो आए दिन फैक्ट चेक और ग्राउंड रिपोर्ट के नाम पर भारत विरोधी और अंततः हिन्दू विरोधी एजेंडा चला रहे हैं।

ये ऐसे पत्रकार और मीडिया मंच हैं जिनका ध्यान कभी भी इस बात पर नहीं गया कि आतंकियों से लोहा लेते समय वीरगति को प्राप्त होने वाला सेना का जवान भी क्रिकेट का फैन हो सकता है या उसका पिता भी एक गरीब किसान या रेहड़ी-ठेला लगाने वाला एक साधारण सा व्यक्ति हो सकता है। वामपंथी संगठनों से चंदा लेने वाले आपको कभी भी उस माँ की कहानी नहीं बताएंगे जिसका एक बेटा पहले ही आतंकियों से लड़ते हुए उसे छोड़ गया था और अभी उसका दूसरा बेटा भी भारत की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने के लिए निकल गया है। आप कभी भी इन भारत विरोधी पत्रकारों से भारतीय सेना के शौर्य और बलिदान की कहानी नहीं सुनेंगे। सुनेंगे तो मात्र आतंकियों का जीवन परिचय।

आपने सुना होगा कि कई बड़े संगठनों के मुखपत्र होते हैं जैसे आरएसएस का मुखपत्र है पाञ्चजन्य, शिवसेना का मुखपत्र सामना है और भाजपा का कमल सन्देश।

उसी प्रकार आतंकियों के मुखपत्र हैं ये वामपंथी मीडिया समूह जो प्रत्यक्ष रूप से न सही किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से आतंकियों का गुणगान करते रहते हैं। इनके लिए आतंकियों का मानवाधिकार सेना के उन जवानों से बढ़कर है जो दिन रात भारत की रक्षा के अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करते हैं। पाकिस्तान को भारत में अपना एजेंडा चलाने के लिए कभी भी बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। पाकिस्तान का यह कार्य भारत के अंदर रहने वाले पत्रकार और मीडिया हाउस आराम से करते रहते हैं। ये शब्दों का ऐसा जाल बिछाते हैं कि आपको पता भी नहीं चलता और आपके मन में आतंकियों के लिए सहानुभूति उत्पन्न हो जाती है। ये ऐसा चक्रव्यूह रचते हैं कि पाठक, श्रोता अथवा दर्शक उस वैचारिक चक्रव्यूह में घुस तो जाते हैं किन्तु निकलते उनकी मर्जी से ही हैं और अपने अंतःकरण में क्या लेकर निकलेंगे, इसका निर्धारण ये वामपंथी करते हैं।

वामपंथी मीडिया और प्रभाव समूहों की सबसे बड़ी विशेषता है कि ये अपने आपको भयंकर निष्पक्ष समूह के रूप में प्रदर्शित करेंगे किन्तु अंतिम तौर पर ये व्यवस्था विरोधी ही होंगे। भारत किसी भी रूप में अपनी सम्प्रभुता की रक्षा करे लेकिन भारत का एक बड़ा मीडिया समूह मात्र आलोचना ही करता है।

अब ये सोचना आपका कर्तव्य है कि क्या एक आतंकी को भारत में जिहाद फैलाने का अधिकार मात्र इस कारण मिल जाना चाहिए की वह एक गरीब हेडमास्टर का बेटा है। कोई आतंकवादी इस कारण दोषमुक्त किया जा सकता है क्योंकि वह धोनी का अथवा क्रिकेट का बहुत बड़ा फैन है। गणित पढ़ाने वाला मास्टर यदि भारत विरोध में बन्दूक उठाता है तो क्या वह आतंकी या जिहादी कहलाने योग्य नहीं रहा।

इस तर्क से देखें तो कश्मीरी पंडितों को नब्बे के दशक से ही हथियार उठा लेना चहिए था क्योंकि उनसे अधिक अन्याय तो भारत में आज तक किसी ने नहीं झेला। बंगाल और केरल के हिन्दुओं को भी हिंसा का मार्ग चुन लेना चाहिए क्योंकि आज जब लोकतंत्र अपने चरम पर है तब भी इन राज्यों में हिन्दू तुष्टिकरण की भेंट चढ़ रहे हैं। पकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों में भी रक्त पिपासा जागनी चाहिए क्योंकि इन तीनों देशों में तो उनका जीवन नर्क के समान हो चुका है। लेकिन हिन्दू ऐसा कभी नहीं कर सकता क्योंकि हिन्दू वास्तव में सहिष्णु है।    

इन आतंकियों को दोष देने के स्थान पर ये वामपंथी सदैव से ही भारत की कश्मीर नीतियों और सेना के कार्यकलापों पर प्रश्न करते आए हैं। पहले यह बड़ा सरल था लेकिन जब से मीडिया और अन्य प्रिंट साधनों में राष्ट्रवादी और निर्भीक पत्रकार और कार्यकर्त्ता आते जा रहे हैं, वामपंथियों का कार्य कठिन हो गया है।

अब हमें क्या करना चाहिए? हमें करना ये चाहिए कि हम उन तमाम न्यूज और यूट्यूब चैनलों को देखना बंद करें जो भारत विरोध में एक भी अक्षर बोलें। हमें उस डिजिटल और प्रिंट मीडिया का बहिष्कार करना चाहिए जो हमारे राष्ट्र और धर्म पर खबरों के माध्यम से आघात करते हैं। हमारे और आपके दिए हुए चंदे की सहायता से ये टुटपुँजिए फ्रीडम ऑफ स्पीच का गलत लाभ उठाते हैं और भारत की जड़ें खोदते हैं। अपने विवेक का उपयोग कीजिए और पहचानिए कि कौन भारत के हित में है और कौन भारत के विरोध में।

जो भारत के हित में हैं उनका सहयोग कीजिए और जो भारत के विरोध में हैं उन्हें बता दीजिये कि भले ही कोई मास्टर अंग्रेजी पढ़ाए, गणित पढ़ाए अथवा विज्ञान किन्तु यदि भारत की अखंडता पर आघात करेगा तो ठोंक दिया जाएगा। भले ही कोई क्रिकेट, फुटबाल या हॉकी का फैन है लेकिन यदि भारत में जिहाद का सपना लेकर आएगा तो उससे जीवन का अधिकार छीन लिया जाएगा।

ऐसे न जाने कितने बुरहान वानी, रियाज़ नाइकू आए और चले गए लेकिन भारतवर्ष वैसा ही अनवरत अपनी यात्रा में आगे बढ़ रहा है और आगे भी बढ़ता रहेगा। यह प्रभु राम और श्री कृष्ण की कर्मभूमि है। यह मर्यादा में रहकर युद्ध करना भी जानता है तो अधर्म को अधर्म से ही कुचलना भी इसे अच्छी तरह से आता है।

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.
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