छत्रपति संभाजी महाराज: सनातन धर्म के रक्षक और मुगलों का काल

पहले जीभ काँटा फिर आँखे फोड़ी।

आँखे फोड़ने के बाद उनकी खाल भी उतारी। उसके बाद नमक का पानी डाला गया। फिर भी उन्होने इस्लाम नहीं कबूला। हाथ पाव तोड़कर उनके सर को काँटा गया। फिर भी उन्हें सनातन धर्म ही भाया।

छत्रपती संभाजी महाराज की जय।

ऊपर के पंक्ति में मुझे नाम बताने कि आवश्यकता नहीं आप खुद ही समझ गए होंगे की मैं किस महावीर, महानायक के बारे में बात कर रहा हूँ। छत्रपति शिवाजी महाराज जी के पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज जी के वीर गाथा और उनके बलिदान के बारे में लिखू तो उपन्यास बन जाएगा पर मैं कोशिश करता हूँ उनके बारे में कम से कम शब्दो में आपको बताने का।वैसे शूरता-वीरता के साथ निडरता का वरदान भी संभाजी को अपने पिता शिवाजी महाराज से मानों विरासत में प्राप्त हुआ था।शिवाजी राजे के जेष्ठ पुत्र ने केवल १३ साल की उम्र में १३ भाषाएं सीखी। जिनमे अधिक तर यूरोपियन भाषा है। लेकिन संस्कृत भाषा और प्राकृत मराठी भाषा का दामन नहीं छोड़ा।छत्रपति बनते ही ९ सालो में १२१ लाढ़ाईया लड़ी। लेकिन एक भी नहीं हारे।संभाजी महाराज का जीवन एवं उनकी वीरता ऐसी थी कि उनका नाम लेते ही औरंगजेब के साथ तमाम मुगल सेना थर्राने लगती थी। संभाजी के घोड़े की टाप सुनते ही मुगल सैनिकों के हाथों से अस्त्र-शस्त्र छूटकर गिरने लगते थे।औरंगजेब खुद दिल्ली छोड़ उनके पीछे पीछे भागता रहा। लेकिन हमेशा पीटा।

छत्रपति शिवाजी की रक्षा नीति के अनुसार उनके राज्य का किला जीतने की लड़ाई लड़ने के लिए मुगलों को कम से कम एक वर्ष तक अवश्य जूझना पड़ता। छत्रपति शिवाजी महाराज जी के बाद संभाजी महाराज की वीरता भी औंरगजेब के लिए अत्यधिक अचरज का कारण बनी रही। उन्होंने अपने पिता की जुझारु एवं दूरदर्शी रक्षा नीति को चार-चांद लगाने का कार्य उस समय कर दिखाया कि जब उनका रामसेज का किला औरंगजेब को लगातार पांच वर्षों तक टक्कर देता रहा। औरंगजेब को स्वीकार करना पड़ा कि संभाजी पर विजय पाना तो दूर, उन्हें परास्त करने के लिए प्रभावी नीति चुनौती है। संभाजी महाराज पर नियंत्रण के लिए उसने तीन लाख घुड़सवार और चार लाख पैदल सैनिकों की फौज लगा दी। लेकिन वीर मराठों और गुरिल्ला युद्ध के कारण मुगल सेना हर बार विफल होती गई।औरंगजेब ने बार-बार पराजय के बाद भी संभाजी से महाराज से युद्ध जारी रखा। इसी दौरान कोंकण संभाग के संगमेश्वर के निकट संभाजी महाराज के ४०० सैनिकों को मुकर्रबखान के ३००० सैनिकों ने घेर लिया और उनके बीच भीषण युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध के बाद राजधानी रायगढ़ में जाने के इरादे से संभाजी महाराज अपने जांबाज सैनिकों को लेकर बड़ी संख्या में मुगल सेना पर टूट पड़े।

मुगल सेना द्वारा घेरे जाने पर भी संभाजी महाराज ने बड़ी वीरता के साथ उनका घेरा तोड़कर निकलने में सफल रहे। इसके बाद उन्होंने रायगढ़ जाने की बजाय निकट इलाके में ही ठहरने का निर्णय लिया। मुगल इसी सोच और हताशा में था कि संभाजी इस बार भी उनकी पकड़ से निकलकर रायगढ़ पहुँचने में सफल हो गए, लेकिन इसी दौरान बड़ी गड़बड़ हो गई कि एक मुखबिर ने मुगलों को सूचित कर दिया कि संभाजी रायगढ़ की बजाय एक हवेली में ठहरे हुए हैं। यह बात आग की तरह औरंगजेब और उसके पुत्रों तक पहुँच गई कि संभाजी एक हवेली में ठहरे हुए हैं। जो कार्य औरंगजेब और उसकी शक्तिशाली सेना नहीं कर सकी, वह कार्य एक मुखबिर ने कर दिया। इसके बाद भारी संख्या में सैनिकों के साथ मुगल सेना ने हवेली की ओर कूच कर उसे चारों तरफ से घेर लिया। संभाजी को हिरासत में ले लिया गया।

15 फरवरी, 1689 का यह काला दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज है। संभाजी की अचानक हुई गिरफ्तारी को लेकर औरंगजेब और पूरी मुगलिया सेना हैरान थी। संभाजी का भय इतना ज्यादा था कि पकड़े जाने के बाद भी उन्हें लोहे की जंजीरों से बांधा गया। बेडि़यों में जकड़ कर ही उन्हें औरंगजेब के पास ले जाया गया। इससे पूर्व उन्हें ऊंट की सवारी कराकर काफी प्रताडि़त किया गया।

संभाजी महाराज को जब ‘दिवान-ए-खास’ में औरंगजेब के सामने पेश किया गया औरंगजेब के सामने संभाजी राजे और कवराज बंदी अवस्था में खड़े थे। औरंगजेब से आज तक किसीकी हिम्मत नहीं हुई थी नजर से नजर मिलाने की। लेकिन संभाजी राजे सर बिना नीचे झुकाए उसके नजर से नजर मिला रहे थे। इस पर संभाजी के साथ कैद कवि कलश ने कहा-‘हे राजन, तुव तप तेज निहार के तखत त्यजो अवरंग।’ “आखे निकाल दो इस काफीर कि” औरंगजेब गुस्से से बोला और उसने कपडे से बंधा हुआ मुह खोलने का आदेश दिया।

“सुवर् के औलाद, हम मराठा शेर जैसे जीते है और शेर जैसे मारते है।” मुह के ऊपर का कपड़ा खुलते हुए गुस्से से बोले। औरंगजेब का आज तक ऐसा अपमान किसीने नहीं किया था। औरंगजेब गुस्से से लाल हो गया।

“आखे निकालने से पहले इसकी जबान काट डालो और ये सजा पहले इस कवी पर आजमाओ” औरंगजेब निकल गया पर जाने से पहले उसने एक धूर्त चाल चली। उसे लगा जब कविराज पर ये सजा आजमाई जाएगी तब संभाजी राजे का दिल टूट जायेगा और स्वयं के प्राणों की रक्षा हेतु वह इस्लाम कबूल कर लेंगे, लेकिन औरंगजेब को मालूम नहीं था ये शेर का छावा था अपने धर्म पर मर मिटने वाला । उसे मृत्यु का भय नहीं था।

कविराज की पहले जबान काटी गई। आँखें निकाली गयी। यही सजा बाद में संभाजी राजे को दी गयी। इतनी कठिन सजा भुगतने के बाद भी दोनों के मुख से एक भी आवाज नहीं निकली। यह देखकर इखलास खान भड़क गया। उसने नए जल्लाद की फ़ौज बुलाई और उन्हें आदेश दिया,”देखते क्या हो उखाड़ दो इनकी खाल और डालो नमक का पानी इन काफिरों पर” इखलास चिल्लाया। जल्लाद आगे बढे। दोनो की खाल उखड़ी गई।

इस घटना के बाद से ही संभाजी ने अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसके बाद सतारा जिले के तुलापुर में भीमा-इन्द्रायनी नदी के किनारे संभाजी महाराज को लाकर उन्हें लगातार प्रताडि़त किया जाता रहा और बार-बार उन पर इस्लाम कबूल करने का दबाव डाला जाने लगा। आखिर में उनके नहीं मानने पर संभाजी का वध करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए 11 मार्च, 1689 का दिन तय किया गया क्योंकि उसके ठीक दूसरे दिन हिन्दू वर्ष प्रतिपदा थी। औरंगजेब चाहता था कि संभाजी महाराज की मृत्यु के कारण हिन्दू जनता वर्ष प्रतिपदा के अवसर पर शोक मनाये। उसी दिन सुबह दस बजे संभाजी महाराज और कवि को एक साथ गांव की चौपाल पर ले जाया गया। पहले कवि कलश की गर्दन काटी गई। उसके बाद संभाजी के हाथ-पांव तोड़े गए, उनकी गर्दन काट कर उसे पूरे बाजार में जुलूस की तरह निकाला गया।

संभाजी महाराज जी ने अपने प्राणों का बलिदान कर हिन्दू धर्म की रक्षा की और अपने साहस व धैर्य का परिचय दिया। उन्होंने औरंगजेब को सदा के लिए पराजित कर दिया।देश धरम पर मिटने वालाशेर शिवा का छावा था।महा पराक्रमी परम प्रतापीएक ही शंभू राजा था।।तेजपुंज तेजस्वी आंखेंनिकल गयीं पर झुका नहीं।दृष्टि गयी पर राष्ट्रोन्नति कादिव्य स्वप्न तो मिटा नहीं।।दोनों पैर कटे शंभू केध्येय मार्ग से हटा नहीं।हाथ कटे तो क्या हुआसत्कर्म कभी तो छूटा नहीं।।जिह्वा कटी खून बहायाधरम का सौदा किया नहीं।शिवाजी का ही बेटा था वहगलत राह पर चला नहीं।।वर्ष तीन सौ बीत गये अबशंभू के बलिदान को।कौन जीता कौन हारापूछ लो संसार को।।मातृभूमि के चरण कमल परजीवन पुष्प चढ़ाया था।है राजा दुनिया में कोईजैसा शंभू राजा था।।’ -द. वा. आंबुलकरछत्रपति संभाजी महाराज का इतिहास वामपंथियों ने दबा दिया।इसका एक प्रमुख कारण है। क्योंकि छत्रपति शिवाजी महाराज के देह त्याग के बाद औरंगजेब ने अपना धर्म परिवर्तन का कार्य तीव्र कर दिया था।एक बात तो स्पष्ट है कि जो कार्य औरंगजेब और उसकी सेना आठ वर्षों में नहीं कर सके, वह कार्य एक भेदिये ने कर दिखाया

संभाजी महाराज जी ने अपने प्राणों का बलिदान कर हिन्दू धर्म की रक्षा की और अपने साहस व धैर्य का परिचय दिया। उन्होंने औरंगजेब को सदा के लिए पराजित कर दिया।देश धरम पर मिटने वालाशेर शिवा का छावा था।महा पराक्रमी परम प्रतापीएक ही शंभू राजा था।।तेजपुंज तेजस्वी आंखेंनिकल गयीं पर झुका नहीं।दृष्टि गयी पर राष्ट्रोन्नति कादिव्य स्वप्न तो मिटा नहीं।।दोनों पैर कटे शंभू केध्येय मार्ग से हटा नहीं।हाथ कटे तो क्या हुआसत्कर्म कभी तो छूटा नहीं।।जिह्वा कटी खून बहायाधरम का सौदा किया नहीं।शिवाजी का ही बेटा था वहगलत राह पर चला नहीं।।वर्ष तीन सौ बीत गये अबशंभू के बलिदान को।कौन जीता कौन हारापूछ लो संसार को।।मातृभूमि के चरण कमल परजीवन पुष्प चढ़ाया था।है राजा दुनिया में कोईजैसा शंभू राजा था।।’ -द. वा. आंबुलकरछत्रपति संभाजी महाराज का इतिहास वामपंथियों ने दबा दिया।इसका एक प्रमुख कारण है। क्योंकि छत्रपति शिवाजी महाराज के देह त्याग के बाद औरंगजेब ने अपना धर्म परिवर्तन का कार्य तीव्र कर दिया था।

छत्रपति संभाजी महाराज ने औरंगजेब का हर धर्म पर्वतन का प्रयत्न असफल कर दिया । और बहुत लोगो को तलवार की धार पर मुस्लिम बनने से रोक दिया। शायद इसी लिए उन्हें शालेय किताबो से दूर कर दिया गया।

संभाजी महाराज के जाने से मराठा साम्राज्य बिखरा नहीं उल्टा और बड़ा हुआ।लगभग पूरा भारत जीतने वाले स्वदेशी मराठा साम्राज्य ने अफ़ग़ानिस्तान तक अपनी सीमाओं को बढ़ाया।आपको स्कूलों में यह सिखाया गया होगा के मुगलों के गिरने से अंग्रेज़ ताकतवर हुए।सच बात तो यह है के मुग़ल स्वराज के वजह से सिर्फ दिल्ली तक सिमट कर रह गए थे।स्वराज गिरा इसी लिए अंग्रेजो की ताकत बढ़ी।मुग़ल तो कब के कमजोर हो गए थे।छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन को यदि चार पंक्तियों में संजोया जाए तो यही कहा जाएगा कि:

देश धरम पर मिटने वाला, शेर शिवा का छावा था।

महा पराक्रमी परम प्रतापी, एक ही शंभू राजा था।।’आखिर में इतना कहता हूं के “खुदको बादशाह ए हिंदुस्तान कहलवाने वाला औरंगजेब मृत्यु शैय्या में बोला था के ऐ अल्लाह तूने मेरे एक भी बेटे को क्यों ऐसा नहीं बनाया। अगर मेरा एक भी बेटा उस शिवा (छत्रपति शिवाजी महाराज) का बेटा संभा(छत्रपति संभाजी महाराज) की तरह होता तो मै चैन से मरता।”
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